यहां महंगाई भी सस्ती है: आठ आने में भरपेट खाना, 10 चाय के एक रुपये, 1963 से अब तक
जरा सोचिए, यदि आज की आसमान छूती महंगाई के दौर में भी आठ आना में भरपेट खाना मिले तो कैसा लगेगा। आप एक शब्द में कहेंगे- असंभव। पर, आपकी रांची में ही यह संभव है। एचईसी (भारी अभियंत्रण निगम) के कैंटीन की...
जरा सोचिए, यदि आज की आसमान छूती महंगाई के दौर में भी आठ आना में भरपेट खाना मिले तो कैसा लगेगा। आप एक शब्द में कहेंगे- असंभव। पर, आपकी रांची में ही यह संभव है। एचईसी (भारी अभियंत्रण निगम) के कैंटीन की मेज पर परोसे जाने वाले खाने में आठ आने में दाल-भात, सब्जी, अचार से भरी थाली मिल जाती है।
कैंटीन में खाने की मात्रा भी इतनी होती है कि आसानी से पेट भर जाता है। यहां आठ आने में ही नाश्ता भी मिलता है। 10 पैसे में ही चाय भी मिलती है। आलूचाप, समोसा और नमकीन के लिए भी केवल 10 पैसे ही चुकाने पड़ते हैं। यहां करीब 700 कर्मचारी हर दिन भोजन करते हैं।
एचईसी प्रबंधन इस कैंटीन के जरिए अपने कम पगार वाले कर्मचारियों के जीवन के दुश्वारियों को कम करता है। यही कारण है कि वित्तीय बोझ लगातार बढ़ने के बावजूद 2015 के बाद से कैंटीन सामग्री की दरों में कोई इजाफा नहीं किया है। 2015 में भी 52 सालों बाद सिर्फ प्रति प्लेट खाने में 10 पैसे की बढ़ोतरी की गई थी। 1963 से शुरू कैंटीन में यहां 40 पैसे में भात-दाल, सब्जी, अचार का एक प्लेट मिल रहा था।
एक दिन पहले कटाना पड़ता है कूपन
कैंटीन में भोजन करने के लिए एक दिन पहले ही कूपन कटाना पड़ता है। चूंकि 50 पैसे और 10 पैसे के सिक्कों का प्रचलन खत्म हो गया है, इस कारण कर्मचारी एक बार में ही 10-15 दिनों का कूपन कटा लेते हैं। बिना कूपन कटाए भोजन नहीं मिल सकता। कैंटीन की सुविधा शाम पांच बजे तक ही मिलती है।
कैसे संचालन करता है प्रबंधन
एचईसी के तीनों प्लांटों और मुख्यालय में कैंटीन चलते हैं। इसके लिए एक कमेटी का गठन किया गया है। इस कमेटी में प्रबंधन, श्रमिक संगठन के प्रतिनिधि शामिल रहते हैं। कैंटीन कमेटी राशन की व्यवस्था, जरूरत की सामग्री का लेखा-जोखा तैयार करती है। कमेटी की रिपोर्ट पर प्रबंधन विचार करने के बाद राशन के लिए राशि जारी करता है।
हर माह करीब सात लाख रुपए खर्च
कर्मचारियों की इस किफायती व्यवस्था को बनाए रखने के लिए एचईसी प्रबंधन को हर माह करीब सात लाख रुपए कैंटीन पर खर्च करने पड़ते हैं। इसे लेकर कई बार उच्च प्रबंधन में व्यवस्था परिवर्तन की बात भी उठी है, परंतु कर्मचारियों की जरूरत को समझते हुए इसे बनाए रखना ही उचित समझा गया। सच्चाई तो यह है कि सुबह में छह बजे से ढाई और सुबह आठ से शाम पांच बजे तक के शिफ्ट में काम करनेवाले कर्मचारियों के लिए इसके अलावा कोई उपाय भी नहीं है। आधे घंटे के लंच ब्रेक में घर या बाहर जाकर खाना नामुमकिन है। वहीं घर से लाया गया खाना भी प्लांट के अंदर की गर्मी में इतनी देर तक सही नहीं रह सकता।
सरकार गरीबों को पांच रुपए में कराती है भोजन
झारखंड में गरीबों को सस्ती दर पर भोजन कराने के लिए मुख्यमंत्री दाल-भात योजना चल रही है। इसके तहत पांच रुपए में दाल-भात और सब्जी खिलाई जाती है। इसका संचालन महिला स्वंयसेवी संस्था करती है। शहर के प्रमुख इलाकों में यह केंद्र संचालित है। लेकिन, एचईसी के कर्मचारियों को इससे भी सस्ता भोजन मिल रहा है।
कैंटीन में कामगारों को सस्ती दर पर भोजन मिले, इसके लिए यह व्यवस्था यूनियन ने शुरू कराई थी। 1963 से यह व्यवस्था चल रही है। कैंटीन में गुणवत्तापूर्ण भोजन कामगारों को मिलता है। 50 पैसे में भोजन करानेवाला संभवत: यह देश का एकमात्र कैंटीन है।
-राणा संग्राम सिंह, महासिचव, हटिया प्रोजेक्ट वर्कर्स यूनियन
कर्मचारियों के हितों को ध्यान में रखते हुए प्रबंधन अपने कर्मियों को इतनी सस्ती दर पर भोजन उपलब्ध करा रहा है। एक कल्याणकारी कंपनी होने के कारण मजदूरों का हित देखना प्रबंधन का दायित्व है। कैंटीन कमेटी सुचारू रूप से संचालन कर रही है।
-एचईसी प्रबंधन