चमत्कार: एचआईवी पॉजीटिव होने के बावजूद महिलाओं से जन्मे नेगेटिव बच्चे
एचआईवी पॉजीटिव होने के बाद कई महिलाओं ने नेगेटिव बच्चों को जन्म दिया। जमशेदपुर में इसके कई उदाहरण हैं। बिरसानगर निवासी अरविंद और मालती (दोनों काल्पनिक नाम) को वर्ष 2009 से ही एचआईवी था। वर्ष 2010 में...
एचआईवी पॉजीटिव होने के बाद कई महिलाओं ने नेगेटिव बच्चों को जन्म दिया। जमशेदपुर में इसके कई उदाहरण हैं। बिरसानगर निवासी अरविंद और मालती (दोनों काल्पनिक नाम) को वर्ष 2009 से ही एचआईवी था। वर्ष 2010 में जब मालती गर्भवती हुई तो उन्हें डर था कि कहीं उनकी वजह से बच्चे को भी एचआईवी न हो जाए। प्रिवेंशन ऑफ पैरेंट टू चाइल्ड ट्रांसमिशन (पीपीटीसीटी) के तहत मालती का इलाज शुरू हुआ। अंतत: मई 2011 में उन्हें एक बेटी हुई, जो नेगेटिव थी। आज बच्ची सात साल की है और पूर्णत: स्वस्थ है।
इसी तरह मानगो निवासी उबैदुर व नफीसा (दोनों काल्पनिक नाम) को वर्ष 2013 से एचआईवी था। वर्ष 2015 में नफीसा के गर्भवती होने पर पीपीटीसीटी के तहत इलाज शुरू हुआ। बाद में एमजीएम में एक बेटा हुआ, जो नेगेटिव है।
पीपीटीसीटी दे रहा अभयदान
झारखंड एड्स कंट्रोल सोसाइटी (जेसेक्स) के पूर्व संयुक्त निदेशक सह एचआईवी मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. मतिन अहमद ने बताया कि गर्भावस्था के दौरान ही मां का पीपीटीसीटी के तहत इलाज शुरू कर दिया जाता है। इसमें कई तरह की जांच की जाती है और एआरटी का कोर्स भी चलाया जाता है। शुरुआत में पॉजीटिव मां से हुए प्रत्येक बच्चे में एचआईवी मिलता है, क्योंकि दोनों के एंटीजेन एक होते हैं। 18 माह के बाद बच्चे का एचआईवी टेस्ट होता है, तब पता चलता है कि नवजात को एचआईवी है या नहीं। फिलहाल पीपीटीसीटी के कारण गर्भवती से नवजात में एचआईवी ट्रांसफर होने के मामले नगण्य हैं। दरअसल, प्रसव से पहले मां की नियमित जांच होती है और एआरटी से संबंधित दवाएं मां की स्थिति के अनुसार दी जाती है। प्रसव के बाद जन्म से 72 घंटे के भीतर नेवरापेन का ड्रॉप दिया जाता है। इसके अलावा 18 माह तक डॉक्टरी परामर्श पर बच्चे के वजन के अनुसार, जेडोविडिन और सीटी-एक्स सिरप का डोज दिया जाता है। जिसे प्रत्येक 12 घंटे में लेना होता है।