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हिन्दुस्तान पूर्वोदय सम्मेलन 2018: मधुमिता और निक्की ने बताई अपनी संघर्ष की कहानी, पढ़ें 10 खास बातें

झारखंड की दो बेहद कम उम्र की बेटियों ने हॉकी और तीरंदाजी के क्षेत्र में दुनिया भर में भारत का नाम रोशन किया। ये दो युवतियां हैं - मधुमिता कुमारी और निक्की प्रधान। मधुमिता जकार्ता में हुए 18वें एशियन...

हिन्दुस्तान पूर्वोदय सम्मेलन 2018: मधुमिता और निक्की ने बताई अपनी संघर्ष की कहानी, पढ़ें 10 खास बातें
लाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीMon, 08 Oct 2018 05:46 PM
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झारखंड की दो बेहद कम उम्र की बेटियों ने हॉकी और तीरंदाजी के क्षेत्र में दुनिया भर में भारत का नाम रोशन किया। ये दो युवतियां हैं - मधुमिता कुमारी और निक्की प्रधान। मधुमिता जकार्ता में हुए 18वें एशियन गेम्स की रिकर्व टीम इवेंट में रजत पदक जीतने वाली भारत की महिला ऑर्चरी टीम में शामिल थीं। वहीं, निक्की प्रधान 18वें एशियन गेम्स में 20 साल बाद रजत पदक जीतने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम का हिस्सा थीं। झारखंड की राजधानी रांची में सोमवार को आयोजित 'हिन्दुस्तान पूर्वोदय सम्मेलन 2018' में दोनों ने अपने संघर्ष की कहानी और आगे के लक्ष्य साझा किए। यहां जानें दोनों की 10 बड़ी बातें- 

1. मधुमिता कुमारी ने कहा - मेरे माता-पिता ने आर्थिक तंगी के बावजूद हर कदम पर किया मेरा सपोर्ट किया। मधुमिता ने तीरंदाजी में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश के प्रतिनिधित्व करने से पहले अपने संघर्ष के दिनों की कहानी सुनाते हुए बताया कि वह झारखंड के ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले एक बहुत ही सामान्य परिवार से आती हैं। उन्होंने बताया कि करियर की शुरुआत में आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ा। उनके पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि तीरंदाजी के लिए धनुष और तीर खरीद सकें। क्योंकि ऑर्चरी एक मंहगा खेल है। धनुष का एक सेट करीब 3 लाख रुपये का आता है। लेकिन मेरे पिता ने हार नहीं मानी और मुझे खेल जारी रखने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहीं से भी व्यवस्था करके मेरे लिए संसाधन जुटाए।

2. हॉकी खिलाड़ी निक्की प्रधान ने बताया कि उन्हें पहली बार तब हॉकी खेलने का जुनून सवार हुआ जब उन्होंने अपने स्कूल में 5 हॉकी खिलाड़ियों को सम्मानित होते हुए देखा। निक्की को फिर देश के लिए खेलने, पोडियम पर खड़े होकर तिरंगे को देखने का जुनून सवार हुआ। 

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3. निक्की प्रधान ने कहा कि पहली बार जब 2012 में बैंकॉक में हुए जूनियर एशियन चैम्पियनशिप के लिए उनका भारतीय टीम में चयन हुआ तो उन्हें कई दिनों तक नींद नहीं आई। वह यही सोचती रहीं कि हवाई जहाज में कैसे बैठूंगी और कैसे विदेश में जाकर लोगों बातचीत करुंगी। फिर सपोर्ट स्टाफ और अन्य सीनियर खिलाड़ियों से सहयोग मिलने के बाद सबकुछ सामान्य हो गया। 

4. निक्की ने कहा कि मैं भारत के लिए हॉकी खेलना चाहती थी और यह सपना 18वें एशियन गेम्स में रजत पदक के साथ पूरा हुआ। अब 2020 टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करना अगला लक्ष्य है।

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5. मधुमिता ने उम्मीद जताई कि साल 2024 के ओलंपिक में ऑर्चरी को भी शामिल कर लिया जाएगा। वह देश के लिए खेलों के इस सबसे बड़े महाकुंभ में पदक जीतना चाहती हैं। 

6. मधुमिता ने अपनी सफलता का सारा श्रेय झारखंड स्थित 'सिल्ली ऑर्चरी एकेडमी' के चीफ पैट्रन सुदेश सर और अपने कोचों प्रकाश राम-शिशिर महतो को दिया। उन्होंने कहा कि लोग मूर्ति देखकर उसकी तारीफ करते हैं लेकिन उसे बनाने वाले मूर्तिकार को भूल जाते हैं। सुदेश सर, प्रकाश राम सर और शिशिर महतो सर ने मुझे बनाया है और मैं आज जो भी हूं इन तीनों की वजह से ही हूं।

7. निक्की प्रधान ने 18वें एशियन गेम्स में गोल्ड मेडन नहीं जीत पाने का अफसोस जाहिर किया। लेकिन वह इस बात से खुश थीं कि भारत की महिला टीम ने 20 साल बाद एशियन गेम्स में रजत पदक जीता। 

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8. निक्की ने कहा कि अगर भारतीय महिला हॉकी टीम एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतती तो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर लेती। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अब हमें क्वालीफिकेशन मुकाबले खेलने पड़ेंगे। 

9. निक्की प्रधान बेंगलुरु में हॉकी इंडिया द्वारा लगाए गए कैंप में टीम के अन्य सदस्यों के साथ तैयारी कर रही हैं।

10. दोनों खिलाड़ियों ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पोडियम पर खड़े होकर भारत का राष्ट्रगान सुनना और तिरंगे को लहराते देखने का जो एहसास होता है वह सभी संघर्षों को भुला देता है। हम इसी सम्मान के लिए, देश के लिए और तिरंगे के लिए खेलते हैं।

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