हाथियों की मौत पर झारखंड हाईकोर्ट सख्त, वन विभाग से पांच साल का ब्योरा मांगा
राज्य में हाथियों की मौत और जंगलों से वन्य जीवों के गायब होने पर झारखंड हाईकोर्ट ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है। अदालत ने सरकार से हाथियों और दूसरे वन्य जीवों को संरक्षित रखने और जंगलों में वापस लाने की...
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राज्य में हाथियों की मौत और जंगलों से वन्य जीवों के गायब होने पर झारखंड हाईकोर्ट ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है। अदालत ने सरकार से हाथियों और दूसरे वन्य जीवों को संरक्षित रखने और जंगलों में वापस लाने की कार्ययोजना मांगी है। चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने सरकार से यह पूछा है कि पिछले पांच सालों में कितने हाथियों की मौत हुई है। कितनों का पोस्टमार्टम हुआ है और कितनों की विसरा जांच रिपोर्ट आयी है। दो सप्ताह में पूरी रिपोर्ट कोर्ट ने पेश करने का निर्देश दिया है। लातेहार में दस दिनों में दो हाथियों की मौत के बाद स्वत:संज्ञान लिए गए मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह निर्देश दिया। अगली तिथि को वन सचिव को अदालत ने कोर्ट में हाजिर होने का निर्देश दिया है। कोर्ट के पूर्व निर्देश के आलोक में गुरुवार को पीसीसीएफ और लातेहार के डीएफओ हाजिर हुए।
सुनवाई के दौरान अदालत ने अधिकारियों से कहा कि जानवरों के बिना जंगल नहीं हो सकता। राज्य सरकार बताए कि जानवरों को जंगल में वापस लाने के लिए क्या कार्ययोजना बनी है। हमने विकास करते समय जंगलों का ध्यान नहीं रखा। जिसका दुष्परिणाम है कि जंगल में आज जानवर नहीं हैं। तीन-तीन दिन तक जानवरों के शव पड़े रहते हैं और उनको खाने वाले एक भी जानवर जंगल में नहीं है। इतनी दयनीय स्थिति है और वन विभाग के अधिकारी कह रहे हैं कि 629 हाथी अभी राज्य में है जो काफी है। यह अफसोसनाक है।
जंगलों में अवैध खनन का मामला भी उठा
सुनवाई के दौरान अधिवक्ता हेमंत सिकरवार ने जंगलों में अवैध खनन का मुद्दा उठाया। उन्होंने अदालत को बताया कि जंगलों में अवैध खनन भी किया जा रहा है। इस कारण भी वन्य जीव पलायन कर रहे हैं और उनकी संख्या कम हो रही है। अदालत ने इस पर सहमति जतायी और कहा कि जब जंगल में खनन होगा तो वहां जानवर कैसे रह सकते हैं।