EXCLUSIVE: जानें झारखंड में कैसे नक्सली बन जाते हैं बच्चे, मां ने बताई दास्तां
क्या करती साहब, ´बच्चे छोटे थे तभी पति का देहांत हो गया। दो बच्चों के परवरिश की जिम्मेदारी मेरे ऊपर थी। बच्चों को पालने के लिए हरियाणा जाकर मजदूरी की, गांव में अनाज उपजाया तो सगे-संबंधी लूट ले...
क्या करती साहब, ´बच्चे छोटे थे तभी पति का देहांत हो गया। दो बच्चों के परवरिश की जिम्मेदारी मेरे ऊपर थी। बच्चों को पालने के लिए हरियाणा जाकर मजदूरी की, गांव में अनाज उपजाया तो सगे-संबंधी लूट ले गए। बच्चे भूखे रहते थे। बच्चों की खातिर दूसरी शादी की तो पहले पति के रिश्तेदारों ने घर से निकाल दिया। कैसे देख पाता यह सब मेरा बेटा।
पिछले दिनों झारखंड के दो जिलों खूंटी और पश्चिमी सिंहभूम की सीमा पर मुठभेड़ के दौरान घायल हुए बाल उग्रवादी की मां ने कहा कि हरियाणा काम करने गई थी तो बेटे की जान-पहचान गांव में आने वाले नक्सलियों से हो गई। कोई समझाने-बुझाने वाला नहीं था तो वह नक्सली दस्ते में शामिल हो गया। उस समय वह अपनी मौसी के पास अड़की प्रखंड के बीहड़ों में बसे लोंगा गांव में ही रहता था। कुछ दिनों तक दस्ते में रहने के बाद उसे पुलिस ने पकड़ लिया और रिमांड होम भेज दिया। मौसी और सौतेले पिता ने उसे कानूनी लड़ाई लड़ छुड़वाया। अब वह सही रास्ते पर था।
नक्सलियों ने जबरन फिर उसे साथ ले गए
इस बीच 28 जनवरी को वह अपने गांव जा रहा था, तब नक्सली संगठन पीएलएफआई का दस्ता उसे तिरला में मिला। हार्डकोर उग्रवादी दीत नाग उसे जबरन अपने साथ साथ ले गया। इसी दौरान 29 जनवरी की सुबह मुठभेड़ हुई और बाल उग्रवादी को भी गोली लगी। जिसके बाद चार घंटे तक वह पहाड़ी के गड्ढ़े में डर से छुपा रहा। इसके बाद पुलिस ने उसे पकड़ लिया।
कुछ साल पहले तक स्कूल जाता था
बाल उग्रवादी तीन चार साल पहले तक सुरूंदा के स्कूल में छठी कक्षा में पढ़ता था। मां के हरियाणा काम करने जाने के बाद उसकी मौसी उसे चतराडीह गांव में रखकर पढ़ाती थी। इसी दौरान वह नक्सली संगठन में शामिल हो गया था।
पुलिस ने कराया इलाज
मुठभेड़ में घायल बच्चे को पुलिस के जवानों ने गोद में उठाया। एम्बुलेंस पर चढ़ाकर उसे अस्पताल भेजा। रिम्स में इलाज के बाद वह अब वह स्वस्थ है। उसे अब खूंटी में न्यायिक हिरासत में रखा गया है।
मां को अखबार से पता चला कि बेटा घायल है और पकड़ा गया
बाल उग्रवादी की मां और उसके दूसे पति ने कहा कि वे बच्चे से मिलना चाहते हैं। उन्हें गांव के लोगों ने अखबार पढ़कर यह बताया था कि मुठभेड़ में उनका बेटा घायल हो गया है। उसके बाद वह बेचैन हैं। उन्हें यह डर सता रहा है कि पता नहीं पुलिस वाले क्या-क्या सवाल पूछेंगे। उन्हें लगता है कि बेटे से मिलने के लिए पैसे भी खर्च होंगे। इस डर से वे अपने बच्चे से मिलने की कोशिश नहीं कर रहे।