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झारखंड कांग्रेस में प्रदेश नेतृत्व बदलने की चर्चा तेज, आलाकमान को किस बात का डर

झामुमो के साथ गठबंधन में कांग्रेस को आदिवासी वोट मिलता दिख रहा है, लेकिन ओबीसी वोट पर अभी भी संशय है। पार्टी प्रदेश नेतृत्व के लिए ओबीसी नेता तलाश रही है, लेकिन उसे सर्वमान्य नेता नहीं मिल रहा है।

झारखंड कांग्रेस में प्रदेश नेतृत्व बदलने की चर्चा तेज, आलाकमान को किस बात का डर
Devesh Mishra निर्भय, रांचीMon, 12 Aug 2024 01:15 AM
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देश के तीन राज्यों के साथ-साथ झारखंड विधानसभा चुनाव की घोषणा अगले महीने की जा सकेगी। सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी तैयारी में जुटे हैं। इस बीच झारखंड कांग्रेस में प्रदेश नेतृत्व को बदलने की चर्चा तेज हो गई है। प्रदेश नेतृत्व में बदलाव हुआ तो कांग्रेस अलाकमान राज्य के वोट बैंक देखते हुए आदिवासी या फिर ओबीसी श्रेणी के नेता को प्रदेश अध्यक्ष बना सकते हैं।

आलाकमान को किस बात का डर
कांग्रेस नामों पर मंथन कर रही है, लेकिन पार्टी में ही उसके विरोध के आसार भी दिख रहे हैं। पार्टी को सर्वमान्य नेता नहीं मिल पा रहा है, जिनका विरोध न हो। ऐसे में आलाकमान सशंकित है कि अगर पार्टी नेतृत्व में बदलाव किया गया तो इसके फायदा की जगह नुकसान न उठाना पड़ सके।

सुखदेव और कालीचरण पर कांग्रेस खेल सकती है दांव
कांग्रेस प्रदेश नेतृत्व के लिए सांसद सुखदेव भगत या सांसद कालीचरण मुंडा पर दांव खेल सकती है। लोकसभा चुनाव में ये दोनों नेता पहली बार सांसद बने हैं। दोनों नेताओं का पार्टी में विरोध अन्य नेताओं की अपेक्षा कम है। अपने-अपने क्षेत्र में आदिवासी वोटों को एकजुट करने में वे सफल भी हुए हैं। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने सुखदेव भगत की संसद में आवाज बनने की तारीफ भी की है। वे प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष भी रह चुके हैं। राहुल गांधी का भरोसा झारखंड के अन्य नेताओं से ज्यादा उन पर है। ऐसे में उन्हें प्रदेश नेतृत्व की कमान फिर से दे दी गई तो इसमें कोई अचरज नहीं होगा। वहीं, सांसद कालीचरण मुंडा भी बड़े दावेदार हैं। कांग्रेस लगातार उन पर भरोसा जता रही थी। पूर्व में भी लोकसभा-विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाया गया था, लेकिन सफलता इस बार मिली। ऐसे में पार्टी उन्हें पर प्रदेश का कमान सौंपने पर विचार कर सकती है।

लोहरदगा-खूंटी लोकसभा में कांग्रेस के दो-दो विधायक
सुखदेव भगत लोहरदगा से और कालीचरण मुंडा खूंटी से सांसद हैं। इन लोकसभा सीटों पर 2004 के बाद कांग्रेस के सांसद बने हैं। इन लोकसभा सीट में छह-छह विधानसभा हैं। दोनों में कांग्रेस के दो-दो विधायक हैं। वहीं, झामुमो के पांच और भाजपा के तीन विधायक हैं। इनके प्रदेश नेतृत्व करने से दूसरे आदिवासी बहुल इलाकों में कांग्रेस को फायदा मिल सकता है।

ओबीसी में नहीं मिल रहा सर्वमान्य नेता
झामुमो के साथ गठबंधन में कांग्रेस को आदिवासी वोट मिलता दिख रहा है, लेकिन ओबीसी वोट पर अभी भी संशय है। पार्टी प्रदेश नेतृत्व के लिए ओबीसी नेता तलाश रही है, लेकिन उसे सर्वमान्य नेता नहीं मिल रहा है। मंत्री बन्ना गुप्ता, विधायक प्रदीप यादव, कार्यकारी अध्यक्ष जलेश्वर महतो, पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष केशव महतो कमलेश ओबीसी नेता हैं। इनके प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने से आलाकमान को विरोध का भी डर सता रहा है। 

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