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आओ राजनीति करें: मंत्रियों-अधिकारियों के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ेंगे तब आएगी शिक्षा में समानता

महिलाओं की सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ीं बुनियादी जरूरतों को समझे बिना उनके सशक्तीकरण की बात करना बेमानी है। अब तक सरकारें महिलाओं के लिए सिर्फ योजनाएं ही बनाती रही हैं, लेकिन धरातल पर इनकी...

आओ राजनीति करें: मंत्रियों-अधिकारियों के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ेंगे तब आएगी शिक्षा में समानता
रांची, प्रमुख संवाददाताThu, 21 Feb 2019 11:26 AM
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महिलाओं की सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ीं बुनियादी जरूरतों को समझे बिना उनके सशक्तीकरण की बात करना बेमानी है। अब तक सरकारें महिलाओं के लिए सिर्फ योजनाएं ही बनाती रही हैं, लेकिन धरातल पर इनकी हकीकत कुछ और है। बेटियों को स्कूल जाने के लिए सरकार ने साइकिल तो दी, पर उनकी सुरक्षा का जिम्मा कौन लेगा? इसके लिए शासन और प्रशासन ने क्या व्यवस्था की है? तमाम राजनीतिक पार्टियों को इस पर संवेदनशील होना होगा। हिन्दुस्तान अभियान ‘आओ राजनीति करें: अब नारी की बारी’ के तहत बुधवार को हिन्दुस्तान टीम डीएवी बरियातू स्कूल पहुंची। यहां शिक्षिकाओं ने महिला सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़ी व्यावहारिक दिक्कतों पर चर्चा की। साथ ही, बेहतरी के सुझाव भी दिए। उन्होंने राजनीतिक दलों से यह अपेक्षा भी की कि वे महिला प्रत्याशियों को अधिक संख्या में इस बार चुनाव में उतारें।
 

बेटियों का वर्ग विभाजन न करें
शिक्षिकाओं ने लड़कियों की शिक्षा के लिए चलाई जा रहीं विभिन्न योजनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि ये गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करनेवालों के लिए चल रही हैं। जबकि, मध्यवर्गीय परिवारों में लड़कियों की पढ़ाई काफी दिक्कत से हो रही है। इन परिवारों में बेटियों की शिक्षा पहली प्राथमिकता नहीं है, बल्कि उन्हें इतना ही पढ़ाया जाता है कि उनकी शादी हो जाए। इन परिवारों में बेटे-बेटियों में भेदभाव सबसे अधिक होता है, लेकिन इनके लिए कोई भी योजना नहीं है। शिक्षिकाओं ने चिंता जताई कि अब तक किसी भी सरकार ने इन व्यावहारिक दिक्कतों की तरफ ध्यान नहीं दिया। उनका कहना था कि इसी तरह सरकार स्कूली छात्राओं को साइकिल दे रही है, लेकिन वे घर से स्कूल सुरक्षित आ-जा सकें, यह कब संभव होगा। उन्होंने स्कूल-कॉलेजों के पास मौजूद चाय-पान की गुमटियों की ओर भी ध्यान दिलाया, जो परेशानी का सबब बने हुए हैं। यहां होनेवाली अड्डेबाजियों से खासी परेशानी होती है। 


मंत्रियों व अधिकारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ें
शिक्षा में समानता की चर्चा करते हुए शिक्षिकाओं ने कहा कि सरकारी और निजी स्कूल तभी बराबरी में आ पाएंगे, जब मंत्रियों और अधिकारियों के लिए यह अनिवार्य कर दिया जाए कि उनके बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ें। इससे सरकारी स्कूलों के हालात तो सुधरेंगी ही, सभी वर्ग के बच्चों के लिए भी समान शिक्षा सुनिश्चित हो सकेगी। उनका कहना था कि सरकारी स्कूल शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं। उन्हें जनगणना से लेकर तमाम तरह के कार्य में लगा दिया जाता है, तो बच्चे पढ़ेंगे कैसे? सरकारी स्कूलों के बच्चे अगर पढ़ाई में पिछड़ रहे हैं, तो इसके सरकारें दोषी हैं। एक तरफ सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात करती है और दूसरी तरफ शिक्षकों की नियुक्ति नहीं करती। शिक्षकों को न्यूनतम भत्ता भी नहीं मिलता। उन्होंने पारा शिक्षकों, शिक्षक मित्र और आंगनबाड़ी सेविकाओं को प्रशिक्षित करने पर जोर दिया, ताकि शिक्षा का उद्देश्य सही मायनों में पूरा हो सके।
 

स्कूलों में भी बनें पालनाघर
शिक्षिकाओं ने किसी भी स्कूल में क्रेश (पालनाघर) न होने का मुद्दा उठाया। उनका कहना था कि अधिकांश स्कूलों में खासकर नर्सरी कक्षाओं में शिक्षिकाएं ही होती हैं, लेकिन उनके बच्चे कैसे पलें, इसपर आज तक किसी भी राजनीतिक पार्टी का ध्यान नहीं गया। सरकारी हों या निजी, किसी भी स्कूल में क्रेश की व्यवस्था नहीं हैं। जबकि, मौजूदा समय में ज्यादातर एकल परिवार हैं और बच्चों को आया के भरोसे छोड़ना पड़ता है। उनका सुझाव था कि अगर स्कूलों में क्रेश होंगे, तो काफी सहूलियत होगी। इसके साथ ही, उन्होंने हर कार्यस्थल पर क्रेश की व्यवस्था अनिवार्य करने की मांग की। उनका कहना था कि अगर नेतृत्व में अधिक संख्या में महिलाएं होंगी, इस तरह की व्यावहारिक दिक्कतों की तरफ ध्यान जाएगा और सरकारें इन्हें दूर करने का प्रयास करेंगी। उन्होंने इस लोक सभा चुनाव में तमाम राजनीतिक पार्टियों से बराबर की संख्या में महिला प्रत्याशियों को चुनाव में उतारने की अपील की।
 

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