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आओ राजनीति करें: सुशासन तो शिक्षा से आएगा, शिक्षा नहीं तो पंगु पीढ़ी तैयार होगी: ऋता शुक्ल

शिक्षाविद् व वरिष्ठ साहित्यकार डॉ ऋता शुक्ल ने कहा कि देश की आजादी के बाद मेरा जन्म हुआ। कई चुनाव देखे हैं। शिक्षा को लेकर जो परिकल्पना और आकांक्षाएं थीं, वे अब तक पूरी नहीं हुईं। सियासत की आंख...

आओ राजनीति करें: सुशासन तो शिक्षा से आएगा, शिक्षा नहीं तो पंगु पीढ़ी तैयार होगी: ऋता शुक्ल
प्रमुख संवाददाता,रांची Sun, 10 Feb 2019 07:35 PM
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शिक्षाविद् व वरिष्ठ साहित्यकार डॉ ऋता शुक्ल ने कहा कि देश की आजादी के बाद मेरा जन्म हुआ। कई चुनाव देखे हैं। शिक्षा को लेकर जो परिकल्पना और आकांक्षाएं थीं, वे अब तक पूरी नहीं हुईं। सियासत की आंख शिक्षा की तरफ नहीं है। अभी शिक्षा को पंगु बना दिया गया है। कहीं आरक्षण है तो कहीं राजनीति की चालें, इनमें शिक्षा गुम हो गई है। नौजवान तीन-चार वर्ष प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करते हैं और उनकी परीक्षा स्थगित कर दी जाती है। पढ़ने-पढ़ानेवाले शिक्षक राजनीतिक कुचक्र में फंस जाते हैं। सुशासन तो शिक्षा से आएगा। शिक्षा नहीं तो बौनी और पंगु पीढ़ी तैयार होगी।

आप शिक्षा में परिवर्तन की बात करते हैं तो सरकारी शिक्षा तंत्र को मजबूत कीजिए। वहां सिर्फ अंडे और खिचड़ी न खिलाएं। सरकारी स्कूलों में जो बच्चे पढ़ रहे हैं, वहां उनका मार्गदर्शन करनेवाला कोई नहीं है। शिक्षा का वर्गीकरण हो गया है। एक तरफ गरीब, निम्न वर्ग का बच्चा है, जो प्रतिभाशाली तो है, पर फीस नहीं दे सकता। दूसरा अमीर वर्ग का बच्चा है, साधन संपन्न, जो डोनेशन देकर सीट खरीद सकता है। राज्य में इतने निजी विश्वविद्यालय, इंजीनियरिंग कॉलेज खुले, इनमें अमीरों के लाडले पढ़ रहे हैं। आखिर एक गरीब बच्चा क्यों अच्छी शिक्षा नहीं पा सकता। क्या किसी राजनीति पार्टी में इस बात को लेकर बेचैनी है?

शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण बनाने की बात करते हैं और स्कूल, विश्वविद्यालयों में घंटी आधारित शिक्षक नियुक्त कर दिए हैं। विश्वविद्यालय, कॉलेजों में हर वर्ष शिक्षक सेवानिवृत्त होते जा रहे हैं, नई नियुक्ति हो नहीं रही। 
वातानुकूलित कमरों में बैठक कर शिक्षा के आंकड़े दिखाने से क्या होगा? शिक्षा समता और संस्कार देती है और सबसे बढ़कर सामर्थ्य देती है। लेकिन हमारी शिक्षा पद्धति बेरोजगारों की फौज खड़ी कर रही है। मेरा मानना है कि राजनीतिज्ञों को शिक्षा मंत्रालय नहीं सौंपिए। देशभर में शिक्षाविदों और बौद्धिक लोगों की समितियां बनाएं, उन्हें शिक्षा पर काम करने दें। 
(लेखिका हिन्दी की वरिष्ठ साहित्यकार व रांची विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग की पूर्व निदेशक हैं।) 

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