Mother s Sacrifice Jumps into Well to Save Son Both Tragically Drown ममता की मिसाल बनी मां, लेकिन प्रशासन-जनप्रतिनिधियों की बेरुखी ने बढ़ाया दर्द, Simdega Hindi News - Hindustan
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ममता की मिसाल बनी मां, लेकिन प्रशासन-जनप्रतिनिधियों की बेरुखी ने बढ़ाया दर्द

सिमडेगा के कोनमेंजरा धांगरटोली गांव में एक मां ने अपने दो साल के बेटे को कुएं में गिरते देख बिना सोचे-समझे कूद गई। तैराकी न जानने के बावजूद उसने अपने बेटे की जान बचाने की कोशिश की, लेकिन दोनों गहरे...

Newswrap हिन्दुस्तान, सिमडेगाSun, 21 Sep 2025 11:25 PM
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ममता की मिसाल बनी मां, लेकिन प्रशासन-जनप्रतिनिधियों की बेरुखी ने बढ़ाया दर्द

सिमडेगा, ठेठईटांगर थाना क्षेत्र के कोनमेंजरा धांगरटोली गांव में शनिवार की शाम घटी घटना ने हर किसी की आंखें नम कर दीं। गांव की मीना सोरेंग ने अपने महज़ दो साल के बेटे निलेश को कुएं में गिरते देखा तो बिना एक पल सोचे-समझे खुद भी कुएं में छलांग लगा दी। मीना जानती थी कि उसे तैरना नहीं आता, फिर भी उसने अपने बच्चे की जिंदगी बचाने के लिए अपनी जान की परवाह नहीं की। लेकिन किस्मत ने मां-बेटे दोनों का साथ नहीं दिया और गहरे पानी में डूबकर दोनों ने दम तोड़ दिया। ग्रामीणों ने साहस दिखाते हुए लगभग आधे घंटे तक मशक्कत कर मां-बेटे को कुएं से बाहर निकाला।

आनन-फानन में दोनों को सदर अस्पताल लाया गया, लेकिन चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया। इस घटना से पूरे गांव में मातम का माहौल है और हर कोई यह कहते नहीं थक रहा कि मां की ममता से बड़ा कोई बलिदान नहीं। मीना सोरेंग का यह साहस और ममता की कहानी गांव-समाज के लिए मिसाल बन गई। जब-जब ममता की बातें होंगी, यह घटना लोगों को याद दिलाएगी कि एक मां अपने बच्चे के लिए किस हद तक जा सकती है। अपनी सांसों की परवाह किए बिना बेटे की सांसों के लिए कुएं में कूद जाना, यह बलिदान मानवता के इतिहास में दर्ज होने योग्य है। यह घटना केवल एक हादसा नहीं, बल्कि ममता, साहस और सिस्टम की बेरुखी की कहानी है। एक तरफ मां ने बेटे के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी। वहीं दूसरी तरफ जिम्मेदारों की चुप्पी और लापरवाही ने इस त्रासदी के घाव को और गहरा कर दिया। इधर रविवार को मां-पुत्र का अंतिम संस्कार किया गया। प्रशासन और जनप्रतिनिधियों में दिखी बेरुखी घटना के बाद भी प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधियों का रवैया निराशाजनक रहा। ग्रामीणों का कहना है कि अब तक न तो प्रशासन की कोई ठोस मदद मिली और न ही किसी जनप्रतिनिधि ने पीड़ित परिवार का हाल जाना। मदद के नाम पर केवल शव लाने के लिए एंबुलेंस दी गई। दो-दो मौतों के बावजूद संवेदना प्रकट करने तक कोई जिम्मेदार चेहरा गांव में नहीं दिखा। ग्रामीणों ने कहा कि यह सिर्फ एक परिवार की नहीं बल्कि पूरे गांव की त्रासदी है। मां-बेटे की मौत ने हर किसी को झकझोर दिया है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर हमारे जनप्रतिनिधि और प्रशासन कब संवेदनशील होंगे? जब मां-बेटे की सांसें थम चुकीं, तब भी मदद का हाथ आगे नहीं बढ़ा, यह व्यवस्था पर बड़ा प्रश्नचिह्न है।

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