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विहंगम योग जीने की कला की कला सिखाता है

विहंगम योग रांची संत समाज की ओर से रविवार को योग पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। होटल बीएनआर चाणक्या में आयोजित इस संगोष्ठी बतौर मुख्य अतिथि दिल्ली से आए विहंगम योग के प्रचारक गोपाल ऋषि मौजूद थे।...

विहंगम योग जीने की कला की कला सिखाता है
हिन्दुस्तान टीम,रांचीMon, 09 Apr 2018 02:42 AM
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विहंगम योग रांची संत समाज की ओर से रविवार को योग पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। होटल बीएनआर चाणक्या में आयोजित इस संगोष्ठी बतौर मुख्य अतिथि दिल्ली से आए विहंगम योग के प्रचारक गोपाल ऋषि मौजूद थे। उन्होंने कहा कि योग का वास्तविक अर्थ है- आत्मा का परमात्मा से मिलना। उन्होंने योग कला प्राप्त करने के लिए गुरु को महत्वपूर्ण बताया। कहा कि मानव जीवन में भटकाव का कारण मन है। ऐसे में मन को वश में करने के लिए गुरु के शरण में जाकर योग और अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को सीखना होगा। मौके पर विहंगम योग मासिक पत्रिका के संपादक सुखनन्दन सिंह सदय ने विहंगम योग पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कुछ लोग अध्यात्म के नाम पर लोगों को गुमराह कर उन्हें अंधकार की ओर ले जा रहे हैं, जरूरत है सही गुरु की तलाश कर उनके शरण मे जाकर ज्ञान को प्राप्त करने की। उन्होंने आत्मंथन पर जोर देते हुए कहा हम दुनिया को जानना चाहते हैं, लेकिन खुद को जानने का कभी प्रयास नहीं करते। खुद को जानने के लिए अध्यात्म और योग की राह पर चलना होगा। उन्होंने बताया कि विहंगम योग जीने की कला के साथ-साथ मरने की कला भी सिखाता है। विहंगम योग की साधना से बड़ी संख्या में लोग लाभान्वित हुए हैं और उनकी जीवनशैली में काफी सुधार हुआ है। विहंगम योग की नियमित साधना से निरोग रहने में भी मदद मिलती है। कार्यक्रम का समापन शांति पाठ से हुआ। पूरे आयोजन में शोभा राम यादव, विष्णुकांत खेमका, निरंजन प्रसाद, गजेंद्र सिंह, उमेश चंद्र यादव, अनिल शर्मा, अखिलेश शर्मा व डॉ पंकज दूबे का विशेष योगदान रहा।

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