मूल वास्ताविक स्वरूप में इको म्यूजियम बनाने की जरूरत : डॉ गीता
वर्तमान में मूल स्वरूप में रहने वाली इको म्यूजियम बनाने की जरूरत है। ताकि अपनी संस्कृति-परंपरा को आने वाली पीढ़ी के लिए जानने-समझने के लिए संरक्षित...
रांची, संवाददाता। वर्तमान में मूल स्वरूप में रहने वाली इको म्यूजियम बनाने की जरूरत है। ताकि अपनी संस्कृति-परंपरा को आने वाली पीढ़ी के लिए जानने-समझने के लिए संरक्षित रखा जा सके। ये बातें रांची विवि इतिहास विभाग की डॉ गीता ओझा ने बुधवार को डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान में अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस पर कहीं।
संग्रहालय विज्ञान व जनजातीय संस्कृति संरक्षण विषय पर हुई कार्यशाला में डॉ गीता ने कहा, अब खुद के इतिहास पर शोध कर इतिहास लिखने की जरूरत है। रिफ्रेंस के रूप में अंग्रेज लेखकों को सही नहीं मान लेना है। अन्य स्रोतों की भी मदद ले सकते हैं। सेंट्रल यूनिवर्सिटी की डॉ ममता सीमा मिंज ने कहा, सभी संस्कृतियों का अपना महत्व होता है। लेकिन आदिवासी संस्कृति में खुद का सृजन देखने को मिलता है। जिसे वे खुद के अनुभव से तैयार करते है और यह पीढ़ी दर पीढ़ी बिना तर्क विर्तक के चलता आ रहा है। उन्होंने कहा, मानव कल्याण के लिए जनजातीय संस्कृति को बचाने की जरूरत है।
वहीं, डॉ अलखदेव प्रसाद ने कहा कि संग्रहालय से ही जनजातीय संस्कृतियों की रक्षा हो सकती है। आज के परिदृश्य में जनजातीय समाज को पुराने तरीकों से रखा नहीं जा सकता है। इसलिए उनकी चीजों, ज्ञान को संग्रहालय के माध्यम से बचाए रखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि गांवों में जाकर जो चीजें प्रचलन में नही हैं, उन्हें संग्रहित करने की जरूरत है। इसमें इंदिरा कला केंद्र के संजय झा ने भी विचार रखे। कार्यक्रम में संचालन टीआरआई के उपनिदेशक राकेश रंजन उरांव ने की। मौके पर संस्थान के निदेशक रणेंद्र सहित अन्य मौजूद थे।