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बाजारवादी व्यवस्था युवाओं को मूल संस्कृति से दूर कर रही

संस्कृत भारती झारखंड की ओर से आयोजित संस्कृत सप्ताह के तहत मंगलवार को ऑनलाइन व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। इसमें संस्कृत महाविद्यालय रांची के प्राध्यापक डॉ शैलेश मिश्र बतौर मुख्य वक्ता मौजूद...

बाजारवादी व्यवस्था युवाओं को मूल संस्कृति से दूर कर रही
हिन्दुस्तान टीम,रांचीTue, 04 Aug 2020 10:33 PM
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संस्कृत भारती झारखंड की ओर से आयोजित संस्कृत सप्ताह के तहत मंगलवार को ऑनलाइन व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। इसमें संस्कृत महाविद्यालय रांची के प्राध्यापक डॉ शैलेश मिश्र बतौर मुख्य वक्ता मौजूद थे।उन्होंने कहा कि आज साहित्य के नाम पर समाज को गलत दिशा की ओर प्रवृत्त करने वाली बाजारवादी परंपरा का विकास हो रहा है, जो हमारे देश के सशक्त भविष्य के लिए बाधा है। बाजारवादी के स्थान पर संस्कृतिवादी होने की आवश्यकता है। साहित्य से लोकमंगल, सहृदयता,समाज की विकृतियों का निराकरण,आनंद, भाषिक क्षमता, यशादि का विकास होता है। साहित्य से जीवन दर्शन का ज्ञान होता है।संस्कृति का रक्षक साहित्य है। साहित्य आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है, सदाचरण सिखाती है। आज समाज को अपने संस्कार- संस्कृति की रक्षा करनी है, तो हमारे प्राचीन साहित्य ग्रंथों रामायण, महाभारत, उपनिषद आदि की शरण लेने की जरूरत है।गूगल मीट पर हुए इस कार्यक्रम का संचालन पप्पू यादव ने किया। मंगलाचरण अजीत नारायण व शांति मंत्र पाठजगदंबा ने किया। इसमें 47 शिक्षक, छात्र व छात्राएं शामिल हुए।

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