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बेटी को समय से सेंटर पहुंचाने के लिए पिता ने 12 घंटे तक बाइक चलाई

बाइक के अलावा उनके पास दूसरा और कोई विकल्प नहीं था, आमदनी इतनी थी नहीं कि वे कोई निजी गाड़ी रिजर्व कर...

बाइक के अलावा उनके पास दूसरा और कोई विकल्प नहीं था, आमदनी इतनी थी नहीं कि वे कोई निजी गाड़ी रिजर्व कर...
1/ 3बाइक के अलावा उनके पास दूसरा और कोई विकल्प नहीं था, आमदनी इतनी थी नहीं कि वे कोई निजी गाड़ी रिजर्व कर...
बाइक के अलावा उनके पास दूसरा और कोई विकल्प नहीं था, आमदनी इतनी थी नहीं कि वे कोई निजी गाड़ी रिजर्व कर...
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बाइक के अलावा उनके पास दूसरा और कोई विकल्प नहीं था, आमदनी इतनी थी नहीं कि वे कोई निजी गाड़ी रिजर्व कर...
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हिन्दुस्तान टीम,रांचीTue, 01 Sep 2020 11:22 PM
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नालंदा जिले के रहने वाले धनंजय कुमार अपनी बेटी काजल को जेईई मेन की परीक्षा दिलाने के लिए 12 घंटे तक लगातार बाइक चलाकर तुपुदाना स्थित परीक्षा केंद्र पहुंचे थे। उन्होंने बताया कि बाइक के अलावा उनके पास दूसरा और कोई विकल्प नहीं था। गाड़ियां चल नहीं रही थीं और आमदनी इतनी थी नहीं कि वे कोई निजी गाड़ी रिजर्व कर सकते। उन्होंने बताया कि उनकी बेटी बोकारो थर्मल में अपनी मां के पास रहती है। पेशे से किसान धनंजय ने बताया कि उनके सिवा कोई और उनकी बेटी को बोकारो थर्मल से परीक्षा केंद्र तक नहीं पहुंचा सकता था तो उन्हें यह रिस्क लेना पड़ा। उन्होंने कहा कि बेटी के भविष्य से बड़ा कोई काम एक पिता के लिए नहीं हो सकता है।

नालंदा से रांची वाया बोकारो पहुंचे :

धनंजय ने बताया कि जब उनकी बेटी से सेंटर च्वाइस पूछा जा रहा था, तब उन्होंने बोकारो की जगह रांची का चयन किया था। केवल इसलिए कि बोकारो थर्मल से रांची के लिए आसानी से गाड़ी मिल जाती थी। अब जब अचानक गाड़ियों का परिचालन बंद हो गया, तब उसके सेंटर तक पहुंचना एक चुनौती बन गई थी। एग्जाम डेट की घोषणा के बाद भी गाड़ियों का परिचालन शुरू नहीं हो पाया था। तब वे पहले एकंगरसराय से बोकारो थर्मल गए और वहां से बेटी को बाइक पर बिठा कर रांची के तुपुदाना पहुंच गए।

डबल किराया चुकाकर गुमला से आए :

रांची के परीक्षा केंद्रों पर रांची के साथ गुमला, सिमडेगा और पलामू के छात्र भी परीक्षा दे रहे थे। ये सभी अपने-अपने अभिभावकों के साथ पहुंचे थे। अभिभावकों ने बताया कि कोविड से ज्यादा चिंता बच्चों को परीक्षा की हो रही थी। इसलिए परीक्षा का आयोजन होना ज्यादा जरूरी था। गुमला से अपने बेटे को परीक्षा दिलाने आए अखिलेश्वर ने बताया कि वे अन्य दिनों की तुलना में दोगुना किराया देकर रांची आए थे। वे चाहते तो दूसरे बच्चों के गाड़ी में बैठा सकते थे, लेकिन कोरोना के डर के कारण उन्होंने ऐसा करना भी मुनासिब नहीं समझा।

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