शादी-विवाह पर ब्रेक से कंगाल हो रहे हैं टेंट संचालक और कैटरर
राजधानी के टेंट व्यवसायी कमोवेश एक साल से कोरोना महामारी का दंश झेल रहे हैं। कभी लॉकडाउन तो कभी मिनी लॉकडाउन और कई तरह के सरकारी निर्देश की वजह से...

रांची। राजू प्रसाद
राजधानी के टेंट व्यवसायी कमोवेश एक साल से कोरोना महामारी का दंश झेल रहे हैं। कभी लॉकडाउन तो कभी मिनी लॉकडाउन और कई तरह के सरकारी निर्देश की वजह से टेन्ट कारोबारी लगातार आर्थिक तंगी की स्थिति से गुजर रहे हैं। अब शादी-विवाह पर ब्रेक लगने से टेन्ट संचालक एवं कैटरर कंगाली की राह पर हैं। अकेले टेन्ट व्यावसाय को विवाह कार्यक्रम रद्द किए जाने से करीब दस करोड़ रुपए का नुकसान इसी माह हो चुका है। इसी तरह कैटरिंग से जुड़े लोगों के अलावा विवाह समारोह में अन्य कार्यक्रम के लिए व्यवस्था देने वाले सैकड़ों लोगों के सामने जीविका की समस्या उठ खड़ी हुई है। महामारी कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर पिछले साल 22 मार्च से लॉकडाउन शुरू होने के बाद छह माह तक टेन्ट, कैटरिंग का काम बंद था। सितम्बर माह में दुकानें तो खुलीं लेकिन खरमास की वजह से कारोबार नहीं चला। इसके बाद दिसम्बर माह में 11 तारीख के बाद विवाह लग्न बंद हो गए। इस साल जनवरी से लेकर 21 अप्रैल तक विवाह मुहूर्त नहीं होने के कारण काम नहीं चला। इसके अलावा समाजिक और धार्मिक आयोजन भी इस दौरान नहीं हुए।। जिससे छोटे टेन्ट कारोबारी और कैटरर कंगाली की स्थिति में पहुंच चुके हैं।
पांच सौ शादी आयोजन हुए रद्द, दस करोड़ का नुकसान
अप्रैल माह में 22 तारीख से लग्न आरंभ हुआ। इसी माह रांची में करीब पांच सौ शादियों की तैयारी चल रही थी। जो कोरोना के बढ़ते प्रसार एवं सरकार के गाइड लाइन की वजह से वर एवं वधू पक्ष की आपसी सहमति से रद्द कर दिए गए और विवाह तिथि आगे बढ़ा दी गयी। लग्न में करीब 90 प्रतिशत से अधिक बुकिंग कैंसिल होने से केवल टेन्ट कारोबारियों को दस करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ है। रांची में दर्जनों होटल, करीब दो सौ छोटे-बड़े बैंक्वेट हॉल और 50 से अधिक धर्मशाला में अलग-अलग तारीख में टेन्ट और कैटरिंग की बुकिंग थी।
50 आदमी का भोजन तैयार करने में घर से घाटा
नए गाइड लाइन में 50 मेहमानों का भोजन तैयार करने में कैटरर को घर से घाटा उठाना पड़ता। इस वजह से कैटररों ने ऐसी कुछ बुकिंग में दिलचस्पी नहीं दिखायी। बताया गया कि अच्छी व्यवस्था में कम से कम आठ सौ रुपए प्रति प्लेट की दर से दर्जनों वर-वधू पक्ष वालों ने न्यूनतम एक हजार लोगों के भोजन की बुकिंग करायी थी। सरकारी निर्देश से अब यह घटकर 50 हो गया। एक हजार लोगों के भोजन की बुकिंग में कैटरर को आठ लाख रुपए मिलते। अब उन्हें 50 लोगों के भोजन में 40 हजार रुपए मिलेंगे। जो कारीगर, मिस्त्री, वेटर, सफाईकर्मी को मेहनताना एवं बर्तन-बासन समेत अन्य सामान के किराया मद में ही खर्च हो जाएगा।
25 हजार से अधिक लोगों की चलती है जीविका
राजधानी में शादी-ब्याह से जुड़े काम से 25 हजार से अधिक लोगों के परिवार की जीविका चलती है। झारखंड बैंक्वेट हॉल एसोसिएशन के सदस्य कुणाल आजमानी ने बताया कि इनमें टेंट हाउस, बैंक्वेट-धर्मशाला, ट्रेवल एजेंसी, कैटरर, इवेंट मैनेजमेंट, विद्युत सज्जा, आरकेस्ट्रा, मालाकार, बैंड-बाजा से जुडे़ लोगों के अलावा दिहाड़ी मजदूर, राशन-दूध, आइसक्रीम, खोआ-छेना और अन्य जरूरी सामान की आपूर्ति करने वाले शामिल हैं। उन्होंने बताया कि विवाह की बुकिंग रद्द होने से सभी के सामने एक बार फिर से जीविका की समस्या उठ खड़ी होगी।
विवाह लग्न से टेन्ट व्यावसायियों को थी बड़ी उम्मीद
टेंट व्यवसाय और कैटरिंग से जुड़े लोगों को पिछले करीब पांच माह की मंदी के बाद एक उम्मीद विवाह लग्न को लेकर थी कि उन्हें पंडाल बनाने समेत अन्य तरह की साज-सज्जा और व्यवस्था से संबंधित काम मिलेगा। जिससे उनकी और इस पेशे से जुड़े कारीगर, कलाकार और मजदूरों की जीविका चलाने में कुछ सहारा मिलेगा। विवाह को लेकर झारखंड सरकार की ओर से जारी गाइड लाइन में समारोह में शामिल होने वालों की संख्या 50 कर दी गयी। ऐसे में अब उनके जिम्मे का कुछ भी काम नहीं मिल सकेगा। इस वजह से कारोबार से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े लोग हताश हैं।
रांची में महीनों से कारोबार है मंदा
पिछले एक साल से टेन्ट का कारोबार काफी मंदा है। रांची जिला में 350 टेंट-डेकोरटर्स की दुकान हैं। इससे संचालक समेत करीब 30 हजार से अधिक लोगों की जीविका चलती है। धंधा मंदा होने से कई दुकानें बंद हो चुकी हैं। इस पेशे से जुड़े कई संचालक की आर्थिक स्थिति खराब है। कई कारीगर, मिस्त्री और बढ़ई समेत कलाकार अभी सब्जी बेच रहे हैं।
सामान दीमक चट कर रहे हैं, किराया, किस्त जमा करने में परेशानी
टेन्ट संचालकों के गोदाम में रखे सामान को दीमक चट कर रहे हैं। कारोबार बंद रहने से संचालकों को दुकान और गोदाम का किराया देने समेत बैंक से लिए गए ऋण के किस्त जमा करने में काफी परेशानी हो रही है। इसके अलावा दुकान का बिजली बिल, कर्मचारी को वेतन समेत अन्य तरह के खर्च को पूरा करने में संचालक बेहाल हैं।
