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गाउन के पक्ष-विपक्ष में बंटे विद्यार्थी

दीक्षांत समारोहों की एक खास पहचान रहे हैं गाउन, हुड और एकेडेमिक कैप। गाउन का इतिहास 12वीं शताब्दी से शुरू होता है, जब यूरोप में विश्वविद्यालयों की आधारशिला रखी जानी शुरू हुई थी। गाउन, हुड और एकेडेमिक...

गाउन के पक्ष-विपक्ष में बंटे विद्यार्थी
हिन्दुस्तान टीम,रांचीThu, 09 Nov 2017 01:35 AM
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दीक्षांत समारोहों की एक खास पहचान रहे हैं गाउन, हुड और एकेडेमिक कैप। गाउन का इतिहास 12वीं शताब्दी से शुरू होता है, जब यूरोप में विश्वविद्यालयों की आधारशिला रखी जानी शुरू हुई थी। गाउन, हुड और एकेडेमिक कैप आज भी दीक्षांत समारोहों में चल रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों इसका विरोध भी जारी है। एक धड़ा यह इसे अंग्रेजी दासता का प्रतीक मानकर, इसकी बजाय भारतीय पहनावे की मांग करता है। वहीं, आज भी युवाओं का एक बड़ा वर्ग इसका समर्थन करता है, उनकी मानें तो गाउन पहनने से उनका देशप्रेम कम नहीं होता जाता। 13 नवंबर को रांची विश्वविद्यालय का 31वां दीक्षांत समारोह है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि दीक्षांत समारोह के लिए ड्रेस कोड गाउन ही होगा। इस छात्र-छात्राएं बंट गए हैं। एबीवीपी ने की भारतीय परिधान की मांगअखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने दीक्षांत समारोह के लिए आधिकारिक रूप से गाउन की बजाय भारतीय परिधान लागू करने की मांग की। उनका कहना है कि विद्यार्थी क्या पहनकर आएं, यह थोपा नहीं जाना चाहिए। अगर कोई भारतीय परिधान में डिग्री लेना चाहे, तो गाउन पहनने के लिए बाध्य नहीं किया जाए। एबीवीपी ने पिछले वर्ष भी गाउन हटाने की मांग की थी और इसको लेकर रांची विश्वविद्यालय के 30वें दीक्षांत समारोह में विरोध प्रदर्शन किया था। इस बार भी एबीवीपी के एक प्रतिनिधिमंडल ने कुलपति डॉ रमेश कुमार पांडेय से मिलकर 31वें दीक्षांत समारोह में गाउन की अनिवार्यता खत्म करने की मांग की। हालांकि, रांची विश्वविद्यालय की सिंडिकेट की बैठक में इस प्रस्ताव पर चर्चा की गई और तय किया गया इसे सीनेट में रखा जाएगा। लेकिन, 31वें दीक्षांत समारोह का ड्रेस कोड गाउन ही रहेगा।गाउन में बुराई क्या है!विद्यार्थियों की एक बड़ी तादाद आज भी दीक्षांत समारोहों के शैक्षणिक परिधान के लिए गाउन के पक्ष में है। आजसू, जेसीएम, एनएसयूआई आदि छात्र संगठनों का भी मानना है कि ड्रेस कोड के रूप में गाउन से कोई दिक्कत नहीं है। बल्कि, यह विद्यार्थियों पर छोड़ देना चाहिए कि वे अपनी शैक्षणिक उपलब्धि के उस खास मौके पर क्या पहनना चाहते हैं। वहीं, विद्यार्थियों का कहना है कि गाउन पहनकर डिग्री लेना उनका सपना है। उन्होंने अपने अभिभावकों की तस्वीर भी गाउन पहनकर डिग्री लेते हुए देखी है। उनके मुताबिक दीक्षांत समारोह में गाउन पहन लेने से उनके भारतीय मूल्यों या देशभक्ति में कोई कमी नहीं आएगी। उनकी दलील यह भी है कि अगर कपड़ों से भारतीयता सिद्ध होती है तो आम दिनों में भी जींस,शर्ट व अन्य पश्चिमी परिधानों पर रोक क्यों नहीं लगा दिया जाता।होता रहा है विरोधगाउन और कैप को ब्रिटिश दासता का प्रतीक मानते हुए इसका विरोध होता रहा है। मनमोहन सिंह की सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे जयराम रमेश ने एक विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में गाउन पहनने से यह कहकर इनकार किया था कि यह ब्रिटिश दासता का वाहक है और इसको जारी नहीं रखा जाना चाहिए।बीएचयू के विद्यार्थियों ने गाउन और कैप का बहिष्कार कर भारतीय परिधान में दीक्षांत समारोह में हिस्सा लिया था। आईआईटी बीएचयू के छात्रों ने दीक्षांत समारोह में धोती/कुर्ता और पायजामा/कुर्ता पहनना पसंद किया।इसी वर्ष उत्तराखंड विश्वविद्यालय के एक कॉलेज की ग्रेजुएशन सेरेमनी में वहां के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गाउन और कैप पहनने से इंकार किया। इसके बाद वहां के उच्च शिक्षा मंत्री धान सिंह रावत ने घोषणा की कि दीक्षांत समारोहों में गाउन और कैप नहीं पहने जाएंगे।यूं प्रचलन में आया गाउनदीक्षांत समारोह में गाउन, हुड और एकेडेमिक कैप का प्रचलन 12वीं शताब्दी में शुरू हुआ, जब यूरोप मे विश्वविद्यालय स्थापित होने शुरू हुए थे। यह परिधान शिक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन करनेवाले छात्रों को अन्य छात्रों से अलग करता था। एकेडेमिक कैप उनकी विशिष्टता और बौद्धिकता का परिचायक था। ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार से साथ यह एशियाई देशों में भी अपना लिया गया। क्या कहते हैं विद्यार्थीमुबश्शरा, छात्रा- पूरे शैक्षणिक सफर में एक ही बार तो गाउन पहनना होता है, इससे मेरी भारतीय कैसे प्रभावित हो जाएगी। बाकी समय तो हम पारंपरिक परिधान में ही रहते हैं। गाउन में डिग्री लेने का सपना हर विद्यार्थी देखता है। इसको बदलना नहीं चाहिए।राहुल भट्टाचार्जी, छात्र-हमारा संविधान भी तो ब्रिटिश संविधान से प्रभावित है। कहने का मतलब कि परिधान से कुछ नहीं होता। फिर तो जींस-शर्ट भी प्रतिबंधित हो जाना चाहिए। दीक्षांत समारोह विद्यार्थी जीवन का एक विशेष क्षण होता है। गाउन का लंबा इतिहास इससे जुड़ा हुआ है।सौरभ शर्मा, छात्र- हमेशा से दीक्षांत समारोहों में गाउन ही चलता आया है। यह एक एकेडेमिक डे्रसकोड है। मुझे नहीं लगता कि जीवन में एक बार गाउन पहनने से मेरी देशभक्ति कोई असर पड़ेगा या मैं अंग्रेजीपरस्त हो जाऊंगा। ज्यादातर विद्यार्थी गाउन ही पहनना चाहते हैं।सुकन्या कृष्णन, छात्रा- साड़ी और सलवार कमीज तो कभी भी पहन सकती हूं। लेकिन, गाउन और कैप पहनने का मौका तो एक ही बार मिलेगा। अब इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। यह तर्कसंगत नहीं है। फिर तो कैंपस का ड्रेसकोड भी साड़ी और धोती-कुर्ता कर दीजिए।हरप्रीत सिंह, छात्र- दीक्षांत समारोह का ड्रेस कोड गाउन ही होना चाहिए। यह पहनकर डिग्री लेने में उपलब्धि का अहसास होता है। गाउन पहनने के पक्ष में हूं, इसमें कोई बुराई नहीं दिखती। अगर विद्यार्थी इससे खुशी-खुशी पहनना चाहते हैं, तो किसी को इससे परेशानी नहीं होनी चाहिए।अटल पांडेय, एबीवीपी- गाउन गुलामी का प्रतीक है, यह अंग्रेजी दासता को दिखाता है। जब हम अपने पर्व-त्योहार में पारंपरिक परिधान पहन सकते हैं, तो दीक्षांत समारोह में पहनने में क्या परेशानी है। यह भी तो शिक्षा का पर्व है। गाउन पहनकर हम गुलाम ही दिखते हैं।शशांक राज, एबीवीपी- देश के कई विश्वविद्यालयों में ड्रेस कोड बदलकर भारतीय परिधान कर दिया गया है। रांची विश्वविद्यालय भी इस परिवर्तन की शुरुआत करे। पिछले वर्ष ड्रेस कोड बदलने का आश्वासन मिला था, लेकिन कोई निर्णय नहीं लिया गया। गाउन से दासता की बू आती है।दीपक कुमार गुप्ता, छात्र- ड्रेस कोड गाउन हो या न हो, इससे ज्यादा जरूरी है शैक्षणिक समस्याताओं को दूर करना। उस पर कोई बात ही हो रही। डिग्री लेनेवाले छात्रों का रोजगार मिलेगा या नहीं, यह बड़ा सवाल है। गाउन के पक्ष में हूं, यह शैक्षणिक उपलब्धि दर्शाता है।

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