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रघुवर राज में चलती थी रंजन सिंह की सरकार

: एनआईए की दबिश के बाद सत्ता और सियासत के साथ जुगलबंदी से इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में खेल के उघड़ रहे हैं...

रघुवर राज में चलती थी रंजन सिंह की सरकार
हिन्दुस्तान टीम,रांचीWed, 03 Jun 2020 07:52 PM
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यह सत्ता और सियासत के साथ जुगलबंदी से झारखंड की इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में होने वाले खेल की कहानी है। राम कृपाल सिंह कंस्ट्रक्शन पर एनआईए की दबिश से इसके पन्ने उघड़ने लगे हैं। इस गठजोड़ में नक्सलियों के साथ का नया अध्याय भी जुड़ गया है। रघुवर राज के दौरान सत्ता के गलियारों में यह चर्चा सुनाई देती थी कि जो काम कोई नहीं करा सकता है वह रंजन सिंह के एक इशारे पर हो जाता है। आरकेएस कंस्ट्रक्शन के इस संचालक के बिहार के बेगूसराय जिले के रामदिरी गांव से रांची आकर बरियातू इलाके में रामदिरी निवास नाम से हवेली बनाकर उसे राज्य सत्ता के समानांतर केंद्र बनाने की कहानी पावर गैलरी में चटखारे लेकर सुनाई जाने लगी है।झारखंड के पावर सेंटर परियोजना भवन में रंजन सिंह के पदचाप की धमक मधु कोड़ा के मुख्यमंत्री के बनने के दौरान ही आने लगी थी। मधु कोड़ा के अर्जुन मुंडा के सरकार गिराकर देश के पहले निर्दलीय मुख्यमंत्री बनने के पीछे भी रंजन सिंह का मुद्दा बताया जाता है। अर्जुन मुंडा के मंत्रिमंडल के सदस्य रहे मधु कोड़ा अपने विधानसभा क्षेत्र जगन्नाथपुर में हाटगम्हरिया-बरायबुरू सड़क का ठेका रंजन सिंह को दिलाना चाहते थे। अर्जुन मुंडा ने मधु कोड़ा की आग्रह अनसुनी कर दी। इस पर अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा के बीच अनबन की शुरूआत हुई। इसमें कई और मुद्दे जुड़कर दोनों के बीच खाई को और चौड़ी करते रहे। आखिरकार मधु कोड़ा ने अर्जुन मुंडा की सरकार गिराने में कामयाबी हासिल की। मधु कोड़ा के मुख्यमंत्री बनते ही हाटगम्हरिया-बरायबुरू रोड के पहले का ठेका रद्द कर रंजन सिंह को दिया गया। इसके बाद आई हर सरकार में रंजन सिंह का प्रभाव रहा और झारखंड की हर बड़ी इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं आरकेएस कंस्ट्रक्शन के नाम जाने लगी।चरण छूते लेने लगे पांव के नापरंजन सिंह के पिता राम कृपाल सिंह बरौनी रिफाइनरी और बरौनी फर्टिलाइजर में छोटा-मोटा ठेका लेते थे। अभी के झारखंड और उस समय के दक्षिण बिहार इलाके में उनका कोई संपर्क नहीं था। बेटे ने बाप के धंधे को बेगूसराय से बाहर भी चमकाने की ठानी। रांची पहुंचने के बाद जनसंपर्कों का सिलसिला शुरू किया। चरण छूते कइयों के पांव के नाप ले लिए। इनमें कई तलवे नेताओं और नौकरशाहों के भी थे। कुछ पदचिन्हों को सीने से लगाकर रसूख के दरवाजों की ऊंचाई नापने की ठानी। बेगूसराय में पिता के स्कूटर से शुरू हुआ सफर परियोजना भवन में महंगी कार पर ओहदे वालों के शृंगार के साथ नई ऊंचाइयों को छूने लगा। आगे हर वोट में नोट का निवेश करने लगा। कई जरूरतमंदों की मदद की। बाहुबल भी जुटाया। सियासत और नौकरशाही के बड़े तबके में हर तरह से मददगार की इमेज बनाने की कोशिश की। सारंडा की सड़क में गई शक की सुईसारंडा के घने जंगलों के बीच से 31 किलोमीटर सड़क का ठेका मिलते ही रंजन सिंह के साथ खतरनाक साये भी जुड़े । लाल सलाम वालों के धमक वाले इलाके में सड़क निर्माण में कोई खास बाधा न देखकर सुरक्षा एजेंसियों के कान खड़े हुए। निगरानी की जाने लगी। माओवादियों से साठ-गांठ का शक गहराने लगा। तार जुड़ते दिखाई दिए। आखिरकार व्यापक तैयारी के साथ एनआईए ने दबिश दी। एनआई को कितना सबूत मिला यह तो आरोप-पत्र में बांचे गए सांच से पता चलेगा। परंतु, इस आंच से रंजन सिंह के जलने, झुलसने या बचने की घोषणा तो न्याय के मंदिर में काठ के हथौड़े से होगी। परंतु सत्ता, सियासत और नौकरशाही के अपने भक्तों पर आसक्त होकर विकास परियोजनाओं को उनके हवाले करने का खेल लगातार चलता रहेगा। इसलिए कहानी अभी बाकी है।आईएएस अफसरों के बनवा दिए कई गुटरघुवर सरकार के दौरान राजबाला वर्मा के मुख्य सचिव रहते रंजन सिंह का शासन पर दबदबा काफी बढ़ गया था। मुख्य सचिव के चहेते होने के कारण किसी भी निर्माण विभाग का सचिव आरकेएस कंस्ट्रक्शन पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं करता था। आईएएस अफसरों का कोई गुट अगर रंजन के हितों को प्रभावित करता था तो दूसरा तुरंत उसके बचाव में खड़ा हो जाता था। रंजन सिंह के विरोधी अफसरों का गुट बाद में सबक सिखाने की बात कहकर अपने मन को काबू में रखता था। भाजपा के अंदर भी ऐसी ही स्थिति पैदा हो गई थी।टाटा, शापूरजी को किनारे कर दिया हाईकोर्ट का ठेकारंजन सिंह को झारखंड हाईकोर्ट बनाने का ठेका टाटा प्रोजेक्टस और शापूरजी पालनजी जैसी दुनिया की दिग्गज कंपनियों को किनारे कर दी गई थी। इस पर टाटा प्रोजेक्टस के हेड ने तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को कड़ा पत्र भी लिखा था। इसे लेकर काफी विवाद हुआ। बाद में हाईकोर्ट निर्माण की लागत 330 करोड़ से बढ़कर 700 करोड़ तक चली गई। विधानसभा निर्माण के ठेके भी कई नियमों की अनदेखी के आरोप लगे थे। सचिवालय निर्माण के लिए 1600 करोड़ का ठेका जारी किया गया था। इसमें ऐसी शर्तें रखी गई जिससे आरकेएस कंस्ट्रक्शन को ठेका मिलना तय माना जा रहा था। तभी प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ और टेंडर रद्द कर दिया गया। झारखंड में आरकेएस कंस्ट्रक्शन को पहला बड़ा ठेका बोकारो में सड़क बनाने का मिला था। उसके बाद रांची में समाहरणालय भवन, खेलगांव स्टेडियम, मोरहाबादी मैदान में बिरसा मुंडा फुटबॉल स्टेडियम और जेएससीए स्टेडियम तक बनाने के ठेके मिले। इसके अलावा झारखंड में राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने की कई परियोजनाएं मसलन पिस्का मोड़-पलमा, विकास-रामपुर फोरलेन और बरही-कोडरमा फोरलेन का काम आरकेएस के जिम्मे है। बिहार में रेलवे की कई बड़ी परियोजनाएं भी उसके पास हैं।

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