बोले रांची: नॉन ओलंपिक खेलों के लिए न नीति और न मुकम्मल व्यवस्था
- We are winning medals in sports like hockey, archery, athletics, wushu, football. In the last decade, our participation and medal number in the Non Olympic Games has increased at the national level. However, it is regrettable that there has been a second -class policy with these games.
रांची, वरीय संवाददाता। हॉकी, तीरंदाजी, एथलेटिक्स, वुशु, फुटबॉल जैसे खेलों में पदक तो हम जीत रहे हैं। बीते एक दशक में नॉन ओलंपिक खेलों में भी हमारी भागीदारी और पदक की संख्या राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ी है। पर, अफसोस है कि इन खेलों के साथ दोयम दर्जे की नीति रही है। न खेल नीति में इन्हें स्थान दिया गया और न ही इनके खिलाड़ियों को खिलाड़ी ही समझा जा रहा है। ऐसे में प्रतिभा कुंठित हो रही है। इन खेलों से जुड़े संघ भी निराशा में हैं। यह दर्द है नॉन ओलंपिक खेलों के खिलाड़ियों का। उनका कहना है कि हम राष्ट्रीय स्तर पर पदक तो जीत रहे हैं, लेकिन अपने राज्य में ही हमें न तो खिलाड़ी समझा जा रहा है और न सहयोग किया जा रहा है। राज्य में एक दर्जन से अधिक नन ओलंपिक संघ हैं। बुनियादी सुविधाओं के आभाव में खेलों के विकास में इन खेल संघों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
झारखंड में चुनिंदा खेलों पर मेहरबानी से खेल का विकास और युवाओं का भविष्य प्रभावित होता है। यह कहना है झारखंड के नॉन ओलंपिक खेलों से जुड़े खिलाड़ियों और खेल संघों के पदाधिकारियों का। हिन्दुस्तान के बोले रांची कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि 2022 में जब नई खेल नीति आई, तब उम्मीद थी कि हमें भी उसमें शामिल किया जाएगा और हमारे खिलाड़ियों को भी सरकार के स्तर पर सुविधाएं मिलेंगी, लेकिन हमारे खेल को खेल ही नहीं समझा गया। जबकि, पिछले कई सालों से हम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत रहे हैं। संघों का कहना है कि छह साल से थ्रो बॉल में झारखंड पदक जीत रहा है। वहीं, 13 साल से वुडबॉल में राज्य को मेडल मिल रहा है। लेकिन, इन खेलों को झारखंड की खेल नीति में शामिल नहीं किया गया है, जिस कारण पदक जितने पर भी सरकार की ओर से आर्थिक मदद नहीं मिलती है।
इन खेल संघों से जुड़े पदाधिकारियों का कहना है कि झारखंड सरकार खेलों को बढ़ावा देने और युवाओं को खेल से जोड़ने की बड़ी-बड़ी बातें तो करती है, लेकिन जब जमीनी हकीकत की बात आती है, तो नॉन ओलंपिक खेलों के प्रति सरकार का उदासीन रवैया सामने आ जाता है। थ्रोबॉल, चॉक बॉल, स्कॉय मार्शल आर्ट, किक बॉक्सिंग, आत्या-पात्या, वुडबॉल जैसे कई खेलों में झारखंड के खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परचम लहरा रहे हैं, लेकिन सुविधाओं और प्रोत्साहन के अभाव में उनका भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है। इन खेल संघों के खिलाड़ी राज्य में खेल सुविधाओं, कोचिंग, आर्थिक सहायता, नौकरी में आरक्षण और अन्य लाभों से पूरी तरह वंचित हैं। कई खिलाड़ी अपने संसाधनों से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेते हैं और पदक जीतकर लौटते हैं, लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण उनका हौसला टूट रहा है। यदि झारखंड सरकार वास्तव में राज्य के खेलों के समग्र विकास को इच्छुक है तो उसे इन खेलों को भी अपनी खेल नीति में शामिल करना चाहिए। यदि सरकार वाकई में युवाओं को खेल से जोड़कर उनके भविष्य को सुरक्षित बनाना चाहती है, तो उसे सभी खेलों को समान अवसर और सुविधाएं देनी होंगी। केवल ओलंपिक खेलों को ही महत्व देना न्यायोचित नहीं है। नॉन ओलंपिक खेलों के खिलाड़ियों को भी खेल छात्रवृत्ति, नकद पुरस्कार, भत्ता, और सरकारी नौकरी में नियुक्ति का लाभ मिलना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि खेल, युवा पीढ़ी को नशे और अन्य सामाजिक बुराइयों से दूर रखने का सबसे प्रभावी माध्यम है। सरकार को चाहिए कि वह अपनी नीति में संशोधन करे और सभी खेलों के खिलाड़ियों को समान सम्मान और सुविधाएं प्रदान करे, ताकि झारखंड खेल के क्षेत्र में और अधिक नाम कमा सके।
जयपाल सिंह मुंडा खेल स्टेडियम बचाने में मिले जगह
नॉन ओलंपिक खेल संघों का कहना है कि मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा खेल मैदान में नॉन ओलंपिक खेलों के लिए समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। इस मैदान को बचाने के लिए इन खेल संघों ने भी लंबी लड़ाई लड़ी, लेकिन जब मैदान बना तो उससे उन्हें दूर कर दिया गया। थ्रोबॉल, वुडबॉल, किक बॉक्सिंग, स्कॉय मार्शल आर्ट, कॉर्फ बॉल, चॉक बॉल आदि खेलों के खिलाड़ियों और पदाधिकारियों ने जयपाल सिंह मुंडा स्टेडियम बचाव संघर्ष समिति के बैनर तले लंबा संघर्ष किया। वर्षों के प्रयासों और आंदोलनों के बाद यह ऐतिहासिक स्टेडियम मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा खेल मैदान के रूप में पुनर्जीवित हुआ, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन खेल संघों और खिलाड़ियों ने इस मैदान को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उनके लिए अभ्यास और प्रतियोगिताओं के लिए कोई स्थान निर्धारित नहीं किया गया। इसके विपरीत, उन खेलों के लिए लाखों रुपए खर्च कर कोर्ट तैयार कर दिए गए, जिनका इस मैदान को बचाने के संघर्ष में कोई योगदान नहीं रहा।
अभ्यास के लिए खेल के मैदान ही नहीं
खिलाड़ियों ने कहा कि शहर में कई मैदान हैं, लेकिन आए दिन इन मैदानों में कार्यक्रम या कई प्रकार के व्यवसायिक मेले लगे हुए रहते है, जिस कारण अभ्यास करना काफी मुश्किल भरा हो जाता है। पार्क में सभी खेल के लिए अलग से जगह दी गई है, लेकिन हमें किनारे कर दिया गया है। कम से कम सरकार हमारे अभ्यास के लिए मैदान ही नसीब करा दे, क्योंकि जगह नहीं मिलने के कारण धीरे-धीरे अभ्यास भी छूट रहा है और सालों से की गई मेहनत भी बर्बाद हो जा रही है।
प्रशिक्षण केंद्र भी खोले जाने चाहिए
नॉन ओलंपिक खेल संघों का कहना है कि राज्य सरकार हमारे लिए भी खेल केंद्र शुरू करे, जिससे हमारे खिलाड़ियों का स्तर और निखर सके। राज्य में विभिन्न खेलों के आवासीय और डे बोर्डिंग केंद्रों के साथ एक्सीलेंस और हाई परफॉर्मेंस सेंटर शुरू किए जा रहे हैं। खेल संघों का कहना है कि नॉन ओलंपिक खेलों को इसस दूर रखा जाना न्यायोचित नहीं है। भारत सरकार भी पारंपरिक खेलों को बढ़ावा देने की बात कहती है। नॉल ओलंपिक खेलों में कई पारंपरिक खेल हैं।
कैश ॲवार्ड और छात्रवृत्ति दिए जाएं
राज्य के नॉन ओलंपिक खेल संघों का कहना है कि खेल नीति में खेलों को ग्रेडिंग दी गई है, लेकिन नॉन ओलंपिक खेलों को कोई जगह नहीं दी गई है। खेल नीति में संशोधन किया जाए और उन्हें भी इससे जोड़ा जाए। कैश ॲवार्ड और छात्रवृत्ति जैसी योजनाओं का लाभ हमारे खिलाड़ियों को भी मिले, यह सुनिश्चित किया जाए। अन्य खेलों की तरह इन खेलों के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के पदक विजेताओं को भी खेल उपकरण और कोचिंग सुविधाएं प्रदान की जाएं।
आश्वासन के अलावा और कुछ नहीं मिलता
खिलाड़ियों को खेल संघों के पदाधिकारियों और खिलाड़ियों ने कहा कि मंत्री, विधायकों, खेल सचिव और निदेशक से लेकर ओलंपिक संघ के पदाधिकारियों से कई बार मिले। लिखित रूप से आवेदन भी दिए गए, लेकिन हमें हर बार आश्वासन मात्र दिया गया। इससे हम सभी खिलाड़ी अपने आपको काफी ठगा हुआ महसूस करते हैं। पदाधिकारियों और खिलाड़ियों ने कहा कि सरकार को अन्य राज्यों की ही तरह झारखंड में भी इन खेलों पर नौकरी में भी आरक्षण जैसी सुविधाओं का प्रवाधान करना चाहिए, जिससे खिलाड़ियों का मनोबल बढ़े।
समस्याएं
1. नॉन ओलंपिक खेलों को खेल नीति में कोई स्थान नहीं दिया जाना, निराशाजनक है।
2. कई खेलों में जीत रहे पदक लेकिन मुख्यधारा में शामिल नहीं हो पा रहे खिलाड़ी।
3. सरकार की योजनाओं से खिलाड़ी वंचित। न कैश अवॉर्ड और न छात्रवृत्ति मिलती है।
4. अनुदान नहीं मिलता और न ही कोचिंग और प्रतियोगिता में सहयोग किया जाता है।
5. नॉन ओलंपिक खेलों के लिए एक भी प्रशिक्षण केंद्र सरकार स्तर पर नहीं है।
सुझाव
1. नॉन ओलंपिक खेलों को खेल नीति में शामिल किया जाना चाहिए।
2. थ्रोबॉल, वुडबॉल, किक बॉक्सिंग, चॉक बॉल और कॉर्फ बॉल को मुख्यधारा में स्थान मिले।
3. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के पदक विजेताओं को भी कैश अवॉड छात्रवृत्ति व सुविधाएं मिले।
4. नियमित टूर्नामेंट और वार्षिक अनुदान देना चाहिए और राज्य स्तर पर खेलों का आयोजन हो
5. स्टेडियम, प्रशिक्षण केंद्र, कोच और खेल सामग्री की व्यवस्था दी जाए।
रखी अपनी बात
सभी नॉन ओलंपिक खेलों को अन्य राज्यों में ओलंपिक खेल की तरह महत्व दिया जाता है। लेकिन, झारखंड में इन खेलों को दरकिनार कर दिया गया है।
-आशुतोष द्विवेदी, वुडबॉल संघ
झारखंड लगातार सभी खेलों में शानदार प्रदर्शन करता है, लेकिन नॉन ओलंपिक खिलाड़ियों को जीतकर आने के बाद भी किसी प्रकार का प्रोत्साहन तक नहीं मिलता है।
-नीरज वर्मा
इन खिलाड़ियों ने खेल में अपना काफी समय दिया है, लेकिन सरकार ने भी सिर्फ समय-समय पर केवल इन्हें आश्वासन ही दिया है। किसी भी प्रकार की कोई मदद आजतक नहीं की गई है।
-ब्रजेश गुप्ता
2008 से थ्रो बॉल खेल रहीं हूं, लेकिन आज तक सरकार की ओर से किसी भी प्रकार का कोई लाभ नहीं मिला है। सरकार को हम खिलाड़ियों के लिए भी आरक्षण देने की जरूरत है।
-सरस्वती उरांव, थ्रो बॉल
थ्रो बॉल खेल का प्रचार सही तरीके से नहीं होने से हमलोगों को पहचान बनने में भी समस्या होती है। इसी कारण किसी प्रकार की नौकरी में भी इस खेल पर आरक्षण नहीं मिलता है।
-तमन्ना परवीन, थ्रो बॉल
खेलने के लिए मैदान तक हमलोगों को नसीब नहीं होता है। इधर-उधर जाकर खेल का अभ्यास भी करना पड़ता है। कई बार तो कई मैदानों से हमें हटा दिया जाता है।
-अनु यादव, थ्रो बॉल
खिलाड़ियों को हर जगह पर अपने पैसे लगाकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेलों में खेलने के लिए जाना पड़ता है। कई बार पैसे के अभाव में भी कई खिलाड़ी पीछे रह जाते हैं।
-अरुणा यादव, थ्रो बॉल
वुडबॉल खेल का प्रचार-प्रसार होना बेहद जरूरी है ताकि, लोग इन्हें जाने और खेलने के लिए सामने भी आएं। नॉन ओलंपिक होने के कारण यह खेल काफी पीछे रह जाता है।
-शुभम, वुडबॉल
अभ्यास के लिए मैदान तक उपलब्ध नहीं है। जो मैदान खाली है, वहां पर हमेशा कोई न कोई आयोजन होता रहता है। इस कारण खेल का अभ्यास करने में काफी परेशानी होती है।
-आयुष, वुडबॉल
मैदानों की नियमित साफ-सफाई भी नहीं होती है। मैदानों में गंदगी फैली हुई रहती है। कहीं-कहीं पर तो शराब की बोतलों के टुकड़े भी मिलते हैं। इससे हमें कई बार चोट भी लगती है।
-मनमोहन, वुडबॉल
सरकार की ओर से काई भी आर्थिक सुविधा नहीं मिलने के कारण जूनियर खिलाड़ी इन खेलों में शामिल तक नहीं होना चाहते हैं। नौकरी में भी इन खेलों पर कोई आरक्षण नहीं मिलता।
-राजेश गोप, वुडबॉल
इन खेलों के सामान भी काफी महंगे होते हैं लेकिन सरकार की ओर से कभी भी किसी प्रकार की कोई खेल किट हम खिलाड़ियों को नहीं दिया गया है, ताकि दूसरे खेलों के लिए यह सुविधा उपलब्ध है।
-मयंक, वुडबॉल
सरकार की तरफ से खिलाड़ियों को किसी भी प्रकार की कोई सुविधा नहीं मिलती है। खेलने के लिए मैदान तक नहीं मिलता है, जिस कारण खिलाड़ियों को खेल का अभ्यास करने में भी काफी परेशानी होती है। जीतकार आने के बाद भी सरकार की ओर से इन विजेताओं को किसी भी प्रकार का प्रोत्साहन नहीं मिलता है। कई बार इसी कारण इनका मनोबल भी कमजोर पड़ जाता है।
-गौतम सिंह, कोच, थ्रो बॉल
खेल का प्रचार-प्रसार सही तरीके से और सभी खेलों को समान रूप से समानता नहीं मिलने के कारण कई लोग वुडबॉल जैसे खेल से परिचित भी नहीं हैं। सरकार की ओर मिलने वाले कई स्कॉलरशिप और नौकरी में भी इन खेलों के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया है। अन्य राज्यों में इन खेलों को समान रूप से देखा जाता है, लेकिन झारखंड में इस ओर ध्यान नहीं दिया जाता है।
-गोविंद झा, कोच, वुडबॉल
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