नल-जल योजना अधूरी, डाड़ी पर निर्भर हैं रिदाडीह गांव के लोग
खूंटी जिले के रिदाडीह गांव के 200 से अधिक ग्रामीण आज भी विकास की मुख्यधारा से दूर हैं। यहां बिजली, पानी, सड़क और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। ग्रामीणों ने सरकारी योजनाओं के लाभ न मिलने और...

खूंटी, संवाददाता। खूंटी जिला मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर की दूरी पर खूंटी-तमाड़ मुख्य पथ के किनारे तिरला पंचायत अंतर्गत रिदाडीह गांव के करीब 200 से अधिक ग्रामीण आज भी विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर हैं। गांव में बिजली, पानी, सड़क, नाली, शौचालय, आवास, आंगनबाड़ी, सामुदायिक भवन और स्ट्रीट लाइट जैसी बुनियादी सुविधाएं या तो नदारद हैं या बेहद जर्जर हालत में हैं। ग्रामीणों का कहना है कि सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें नाममात्र ही मिलता है। कुछ योजनाएं आती भी हैं तो उनका लाभ दूसरे गांवों को मिल जाता है, जिससे रिदाडीह अब तक विकास की दौड़ में पिछड़ा हुआ है।
रिदाडीह गांव में पेयजल की समस्या सालों से बरकरार है। नल-जल योजना के तहत जलमीनार तो बनाया गया, परंतु घर-घर पाइपलाइन नहीं बिछाई गई। नतीजतन केवल जलमीनार के समीप रहने वाले कुछ परिवारों को ही इसका लाभ मिल रहा है। गांव के स्कूल के पास स्थापित मिनी सोलर जलमीनार भी धूप न रहने पर बेकार हो जाता है। गर्मी के दिनों में तीनों चापाकलों से भी पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता। मजबूरन ग्रामीण खेतों में बने डाड़ी से ही अपनी जल आवश्यकता पूरी करते हैं। ग्रामीणों ने कई बार जल सहिया के माध्यम से पाइपलाइन बिछाने की मांग की, लेकिन अब तक कार्रवाई नहीं हुई। सामुदायिक भवन हुआ जर्जर, कार्यक्रमों में हो रही परेशानी: वर्षों पहले गांव में एक सामुदायिक भवन का निर्माण किया गया था, जो आज जर्जर स्थिति में पहुंच चुका है। गुणवत्ताहीन निर्माण और रखरखाव की कमी के कारण भवन उपयोगहीन साबित हो रहा है। ग्रामीणों ने बताया कि शादी-विवाह या सभा जैसे आयोजनों के लिए अब टेंट लगाकर अतिरिक्त खर्च वहन करना पड़ता है, जिससे गरीब परिवारों को भारी दिक्कत होती है। उन्होंने मांग की है कि गांव में नया, टिकाऊ और सुविधायुक्त सामुदायिक भवन का निर्माण किया जाए। जर्जर सड़क से आवागमन में खतरा: रिदाडीह गांव तक पहुंचने के लिए खूंटी-तमाड़ मार्ग से करीब एक किलोमीटर का कच्चा रास्ता तय करना पड़ता है। यह सड़क आठ वर्ष पूर्व बनी थी, लेकिन मरम्मत के अभाव में जगह-जगह जर्जर हो चुकी है। सड़कों पर कीचड़ और गड्ढों के कारण लोगों को गिरकर चोट लगने की घटनाएं आम हैं। जलनिकासी की कोई व्यवस्था न होने के कारण बारिश का पानी सड़कों पर बहता है, जिससे स्थिति और खराब हो रही है। भीतरी हिस्सों की गलियां तो बारिश के दिनों में कीचड़ से भर जाती हैं, जिससे ग्रामीणों का आना-जाना मुश्किल हो जाता है। आंगनबाड़ी केंद्र नहीं, छोटे बच्चों का भविष्य अधर में: गांव में पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई के लिए एक प्राथमिक विद्यालय तो है, लेकिन आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है। छोटे बच्चों को सारीदकेल गांव जाना पड़ता है, जो काफी दूर है। दूरी अधिक होने से अभिभावक अपने बच्चों को आंगनबाड़ी भेज नहीं पाते, जिससे बच्चे पोषाहार और टीकाकरण से वंचित रह जाते हैं। ग्रामीणों ने मांग की है कि रिदाडीह में ही आंगनबाड़ी केंद्र प्रारंभ किया जाए ताकि बच्चों को प्राथमिक सुविधाएं मिल सकें। जलजमाव से बढ़ा मच्छर जनित बीमारियों का खतरा: करीब 200 की आबादी वाले इस गांव में नाली का कोई निर्माण नहीं हुआ है। जलनिकासी की व्यवस्था नहीं होने से बरसात में सड़कों पर पानी भर जाता है और पूरे गांव में कीचड़ फैल जाता है। इससे मच्छरों की भरमार और डेंगू-मलेरिया जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। ग्रामीणों का कहना है कि कई बार पंचायत और विभाग से नाली निर्माण की मांग की गई, लेकिन हर बार आश्वासन ही मिला। स्ट्रीट लाइट का अभाव, अंधेरे में बढ़ता खतरा: रिदाडीह गांव में स्ट्रीट लाइट या सोलर लाइट का लगभग अभाव है। शाम होते ही पूरा गांव अंधेरे में डूब जाता है, जिससे लोगों को बाहर निकलने में डर लगता है। ग्रामीणों ने बताया कि कुछ सोलर लाइटें पहले दी गई थीं, परंतु उनका रखरखाव न होने और निजी उपयोग में चले जाने के कारण अब वे बेकार हैं। अंधेरे के कारण सांप-बिच्छू जैसे जहरीले जीवों का खतरा बढ़ गया है। ग्रामीणों ने गांव में सभी गलियों में नई सोलर लाइट लगाने की मांग की है। कच्चे मकानों में रह रहे 40 से अधिक परिवार: गांव के लगभग 40 परिवार आज भी कच्चे मिट्टी के घरों में रहते हैं। कई परिवारों ने प्रधानमंत्री आवास योजना और अबुआ आवास योजना के लिए आवेदन तो किया, लेकिन अब तक बहुत कम लोगों को लाभ मिला है। इस वर्ष की अतिवृष्टि में कई घर ढह गए, परंतु मुआवजा अब तक नहीं मिला। मिनी कुमारी नामक ग्रामीण का घर पूरी तरह टूट गया है। लोगों ने जल्द से जल्द जरूरतमंदों को आवास योजना का लाभ देने की मांग की है। पानी और दरवाजे की कमी से बेकार पड़े हैं शौचालय: स्वच्छ भारत मिशन के तहत गांव में बरसों पहले शौचालय बनाए गए थे, लेकिन निर्माण की गुणवत्ता बेहद खराब रही। कई शौचालयों में दरवाजे तक नहीं लगाए गए। साथ ही पानी की अनुपलब्धता के कारण अधिकांश शौचालय अनुपयोगी हैं। महिलाएं अब भी खुले में शौच के लिए मजबूर हैं। ग्रामीणों ने कहा कि पुराने शौचालय पूरी तरह जर्जर हो चुके हैं, इसलिए नए सिरे से बेहतर शौचालय बनाए जाएं। स्वास्थ्य सुविधाओं का भी अभाव: गांव में कोई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या उपकेंद्र नहीं है। बीमार पड़ने पर ग्रामीणों को खूंटी सदर अस्पताल तक जाना पड़ता है। रात के समय किसी को अस्पताल ले जाना बड़ी चुनौती साबित होता है। स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में लोग नीम-हकीम और झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे रहते हैं। ग्रामीणों ने गांव के आसपास किसी हेल्थ सब-सेंटर या मोबाइल मेडिकल यूनिट की व्यवस्था की मांग की है।
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