ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News झारखंड रांचीसरना कोड को लेकर झारखंड की राजनीति हुई गर्म

सरना कोड को लेकर झारखंड की राजनीति हुई गर्म

रांची। आशीष तिग्गा आदिवासियों के धर्म कॉलम- सरना कोड को लेकर झारखंड की सियायत गर्म हो गई...

सरना कोड को लेकर झारखंड की राजनीति हुई गर्म
हिन्दुस्तान टीम,रांचीMon, 14 Sep 2020 09:31 PM
ऐप पर पढ़ें

आदिवासियों के धर्म कॉलम- सरना कोड को लेकर झारखंड की सियायत गर्म हो गई है। इस मुद्दे को लेकर सभी आदिवासी सामाजिक-धार्मिक संगठनों ने सरकार और विपक्ष पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। 2021 के जनगणना में आदिवासियों का अलग धर्म कॉलम दिया जाए, इसको लेकर पूरे झारखंड में अलग-अलग रूपों में जनांदोलन भी प्रारंभ हो गया है। इसी कड़ी में अब अन्य स्थापित धर्मो के अगुवा की ओर से सरना धर्म कोड देने की वकालत शुरू हो गई है। राष्ट्रीय आदिवासी इंडिजिनियस धर्म समन्वय समिति-भारत के नेतृत्व में विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने ईसाई धर्म, मुस्लिम धर्म और सिख धर्म के अगुआ से मिलकर सरना कोड की वकालत में साथ देने का भी अनुरोध किया है। इस पर सभी धर्मों के अगुआ ने अपनी सहमति दे दी है। सरना कोड के धर्म कॉलम की मांग को लेकर होने वाली वृहद मानव शृंखला जो 20 सितंबर को होगा। इसमें शामिल होने की भी सहमति दे दी है।

धर्म कोड मिलने से ही बंद होगा धर्मांतरण का मामला : बिशप थियोडोर

रांची कैथोलिक आर्च डायसिस के सहायक बिशप थियोडोर मस्कराहनेस ने सरना धर्म कोड का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि जब तक आदिवासियों को अलग सरना कोड नहीं मिलेगा। तब तक धर्मांतरण का आरोप-प्रत्यारोप ईसाई समुदाय पर लगाया जाएगा। यह आदिवासियों की पुरानी मांग है। इसलिए सरना कोड मिलना चाहिए।

सरना कोड को लेकर अब तक सिर्फ राजनीति : सिख फेडरेशन

सिख फेडरेशन के संयोजक ज्योति सिंह ने कहा धर्म कोड को लेकर आदिवासी समाज लंबी लड़ाई लड़ रहा है। परंतु अब तक धर्म कोड देने को लेकर सिर्फ राजनीति हुई है। आदिवासी ही पर्यावरण के रक्षक हैं। इसलिए इनकी मांग पूरी की जानी चाहिए।

सरकार इस मानसून सत्र में अनुशंसा कर केंद्र को भेजे : अंजुमन

अंजुमन इस्लामिया के महासचिव मुख्तार अहमद ने कहा कि अन्य धर्मों की धार्मिक आस्था से अलग आदिवासियों की आस्था, परंपरा है। आदिवासियों को उनका अधिकार मिलना चाहिए। सरकार को इस मानसून सत्र में अनुशंसा कर केंद्र सरकार को अलग धर्म कॉलम की मांग को भेजनी चाहिए।

सभी राजनीतिक दलों के प्रमुखों ने भी दी है सहमति :

इस मुद्दे को लेकर सभी राजनीतिक दलों के प्रमुख, नेताओं व मंत्रियों ने अपनी पार्टी या निजी विचार के रुख को स्पष्ट कर दिया है। भाजपा के विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने भी इंडीजिनियस समिति को इस मुद्दे पर समर्थन देने पर हामी भरी है। कांग्रेस से बने वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने कहा है कि यह पार्टी की प्राथमिकता सूची में है। झामुमो के महेशपुर के विधायक डॉ स्टीफन मरांडी ने कहा कि मेरा निजी विचार है कि सरना कोड मिलना चाहिए। मांडर विधायक बंधु तिर्की ने कहा कि पिछली बार भी मामले को सदन में उठाए थे। इस बार भी धर्म कोड का मामला उठाया जाएगा। खिजरी विधायक राजेश कच्छप ने भी धर्म कोड के मुद्दें पर अपना समर्थन दिया है।

1961 से जारी है अलग धार्मिक पहचान की लड़ाई :

पूरे देश की करीब 12 करोड़ से अधिक आदिवासी समाज वर्षो से अपनी धार्मिक पहचान से महरूम है। झारखंड में 32 जनजातीय समुदाय है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार आदिवासियों की जनसंख्या राज्य में 86,45,042 है। इसमें मूल सरना धर्म-प्रकृति धर्म मानने वालों की संख्या 40,12,622 है। जबकि हिंदु धर्म लिखने वाले 32,45,856, ईसाई धर्म लिखने वाले 13,38,175 है। जबकि किसी धर्म को नही मानने वालों की संख्या 25,971 है। जबकि अन्य आदिवासी लोगों ने जनगणना में बौद्ध, जैन, मुस्लिम और सिख धर्म लिखवाया था। जय आदिवासी केंद्रीय परिषद निरंजना हेरेंज के मुताबिक आजादी पूर्व 1881 में एबोरजिनल के रूप में पहचान थी। 1891 में एबोजनल, 1901 से 1921 तक एमिनिस्ट था। 1931 में ट्राइब्स रिलिजन, 1941 में ट्राइब्स और आजादी के बाद 1951 में शिडयूल ट्राइब के रूप में पहचान मिली थी। परंतु 1961 के दशक में आदिवासियों की धार्मिक पहचान को हटाकर अन्य कर दिया गया। तब से धार्मिक पहचान के लिए आदिवासी संघर्षरत है।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें