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दुमका के इंजीनियर को हार्टअटैक, रिम्स में बची जान

पेयजल एवं स्वच्छता विभाग, दुमका में कार्यरत कनीय अभियंता महेंद्र प्रताप सिंह के खुशी की सीमा नहीं है। वह कहते हैं कि रिम्स की व्यवस्था से मैं अभिभूत हो गया। डॉ हेमंत नारायण ने मेरी जान बचा ली, मुझे...

दुमका के इंजीनियर को हार्टअटैक, रिम्स में बची जान
हिन्दुस्तान टीम,रांचीSat, 29 Jul 2017 02:19 AM
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पेयजल एवं स्वच्छता विभाग, दुमका में कार्यरत कनीय अभियंता महेंद्र प्रताप सिंह के खुशी की सीमा नहीं है। वह कहते हैं कि रिम्स की व्यवस्था से मैं अभिभूत हो गया। डॉ हेमंत नारायण ने मेरी जान बचा ली, मुझे जीवन दान दे दिया। महेंद्र गुरुवार को मेडिकल चौक स्थित पानी टंकी के नीचे पीएचईडी कार्यालय में आए थे। 11:30 के करीब उन्हें दिल का दौरा पड़ गया।
कार्यालय में मौजूद कृष्णा सिंह उन्हें लेकर रिम्स इमरजेंसी पहुंचे। वहां से मेडिसिन ओपीडी ले जाया गया। इसीजी में हॉर्ट अटैक का पता चला। उसके बाद लगभग 12:30 बजे सिंह को कार्डियक ओपीडी पहुंचाया गया। वहां ओपीडी में तैनात एचओडी डॉ हेमंत नारायण ने उनकी स्थिति गार्ड, ट्रॉलीमैन को बुलाया और उन्हें वार्ड में ले गए। दूसरे मरीज की दवा लेकर उन्हें दी गई। जरूरी जांच के बाद तुरंत कैथलैब में ले गए। कंपनीवालों को फोन कर जल्द से जल्द स्टेंट व अन्य सामग्री मंगाई। एंजियोग्राफी किया तो पता चला कि मुख्य आर्टरी (एलईडी) में 100 प्रतिशत ब्लॉकेज है। पैसे की परवाह किए बगैर उनकी एंजियोप्लास्टी भी कर दी। महेंद्र बताते हैं तीन बजे डॉ नारायण ने मुझे पूरा ओटी से बाहर कर दिया। रिम्स मेरे लिए मंदिर और डॉक्टर मेरे भगवान हैं।
जा सकती थी जान
डॉ हेमंत नारायण राय ने बताया कि उन्हें गभीर दौरा पड़ा था। यदि कुछ देर और देरी होती, तो कुछ भी हो सकता था। एलईडी 100 प्रतिशत ब्लॉक था। उस समय मरीज के साथ भी कोई नहीं था। यदि पैसे की मांग की जाती या घर से रुपए लाने का इंतजार किया जाता, तो मरीज को बचाना मुश्किल हो जाता। समय की नजाकत को देखते हुए ही उनकी एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी की गई। जिसका परिणाम है कि वह बिलकुल फिट हैं।
ऐसे मरीजों के लिए फ्री सुविधा जरूरी
डॉ राय ने बताया कि दिल्ली का राम मनोहर लोहिया अस्पताल प्राइवेट है, लेकिन ऐसे गंभीर स्थिति में पहुंचे मरीजों की प्राईमरी एंजियोप्लास्टी वहां फ्री की जाती है। मरीज चाहे कोई भी हो। यह व्यवस्था रिम्स में भी होनी चाहिए, क्योंकि इस हाल में पहुंचे मरीज की जेब में रुपये होंगे या परिवार मौजूद होगा, ऐसा जरूरी नहीं है।
बाहर ढाई से तीन लाख तक खर्च
महेंद्र ने बताया कि वह अकेले रिम्स में थे। बाद में परिवार को सूचना दी गई। बेटी दिल्ली से आई। परिवार के लोग भी पहुंचे। उन्होंने बताया कि शुक्रवार दोपहर तक तो उनसे एक रुपए नहीं लिया गया है। वहीं डॉ राय ने बताया कि सबसे बढ़िया कंपनी का स्टेंट लगाया गया है, फिर भी खर्च मुश्किल से 60-65 हजार होगा।

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