सीडीएस ने बताया, हमला के लिए 7 तारीख और 01 बजे रात का समय क्यों?
आर्मी और एयरफोर्स के साथ नेवी के माकोर्स और जवान भी थे हमले में शामिल, बालाकोट हमले में एविडेंस के रूप में हमारे पास इमेजिंग व सेटेलाईट प्रोग्राम नहीं थे

रांची। हिन्दुस्तान ब्यूरो सीडीएस चौहान ने गुरुवार को राजभवन में ऑपरेशन सिंदूर को लेकर स्कूली बच्चों के साथ आयोजित संवाद कार्यक्रम में कई जानकारियां दीं। उन्होंने कहा कि बालाकोट हमले में हम कहते रह गए, कि हमने मारे हैं, लेकिन एविडेंस के रूप में हमारे पास इमेजिंग व सेटेलाईट प्रोग्राम नहीं थे। लेकिन इस बार हमारे पास सब था। अब सवाल है कि हमने हमला के लिए रात के 01 बजे से 1:30 का ही समय क्यों चुना? जबकि, इस समय अंधेरा था, इमेजिंग मुश्किल थी। इसका कारण यह था कि हमें अपनी क्षमता पर भरोसा था। दूसरा हम सिविलियन्स को नुकसान पहुंचाना नहीं चाहते थे।
इमेजिंग के लिए सबसे बेहतर समय तो सुबह 5:30 से 6 बजे का था, जब उजाला होने लगता है, लेकिन वह समय पहली अजान का होता है। उस समय हमले में सिविलियन्स भी मारे जाते, जो हम नहीं चाहते थे। जहां तक 7 तारीख के चयन का है तो हम उनकी फ्लाईंग एक्टिविटी देख रहे थे। कब उठते हैं, कब लौटते हैं। उन्हें लग रहा था एयर अटैक होगा। साथ ही वही समय था, जब तीन-चार दिन मौसम साफ था। सीडीएस ने बच्चों से कहा कि आपने भी पढ़ा होगा ऑपरेशन सिंदूर में आर्मी ने 7 और एयरफोर्स ने 2 टारगेट तबाह किए। जबकि, उस हमले में हमारी नेवी भी शामिल थी। नेवी के पास भी ऐसी क्षमता थी कि वह लंबी दूरी तक प्रहार में सक्षम थे। हमने नेवी के एस 400 और एस 120 हथियार का उपयोग किया। अरेबियन सागर के अलावा नेवी के मार्कोस (कमांडो) और नेवी जवानों को जम्मू-कश्मीर और पंजाब में डिप्लॉय किया। उन्होंने बड़ी सटीकता से आर्मी के टारगेट पर अपने विपन का उपयोग किया। हर बार अभियान की रणनीति नयी होनी चाहिए सीडीएस ने कहा कि हर बार अभियान की रणनीति नयी होनी चाहिए। उरी हमले में हमलोग जमीन के रास्ते से गए थे। बालाकोट हमले में एयरफोस के लार्ज स्ट्राईक पैकेज में लगभग 50 हवाई जहाज गए। अगर यही दुबारा करते तो इतनी सफलता नहीं मिलती। इस बार हमने सोचा था कि कम ऊंचाई के सटीक निशाना भेदने वाली तकनीक के साथ ज्यादा से ज्यादा ड्रोन का उपयोग किया जाए। जिसका परिणाम रहा कि हम पूरी तरह सफल रहे। कार्यक्रम के दौरान सीडीएस ने बच्चों के सवालों का जवाब भी दिया। इस अवसर पर ले. जनरल रामचंद्र तिवारी, एयर मार्शल सूरज सिंह, ले. जनरल, यशपाल सिंह अहलावत, राज्यपाल के प्रधान सचिव डॉ नितिन मदन कुलकर्णी व रक्षा मंत्रालय के अधिकारीगण के अलावा सैकड़ों बच्चे, अभिभावक उपस्थित थे। सफलता के लिए आई-क्यू से ज्यादा ई-क्यू जरूरी जनरल चौहान ने बच्चों से कहा कि सफलता के लिए आई-क्यू (इंटेलिजेंस कोशेन्ट) से ज्यादा ई-क्यू (इमोशन कोशेन्ट) ज्यादा जरूरी है। फौज में कोई भी काम आप अकेले नहीं मिलकर करते हैं। उन्होंने कहा कि देश की विविधता जाननी है तो फौज में आईए। अपना अनुभव बताते हुए कहा कि नागालैंड के लंगुआ गांव में वहां के मुखिया का घर भारत और म्यांमार सीमा पर है। घर का डायनिंग हॉल भारत में, जबकि बेडरूम म्यामार में है। उन्होंने देश की विविधता के कई उदाहरण बच्चों को बताए और कहा कि इसे जानना है तो फौज में आईए। उन्होंने कहा कि फौज के प्रति प्रेम अचानक नहीं हुआ है। केवल युद्ध ही नहीं, हमारी फौज देश की सुरक्षा, आपदा में, मुसीबतों में लोगों के बचाव का काम करते हैं। हम सैन्य तैयारियों पर इतना जोर देते हैं, ताकि देश को कोई नुकसान न हो। उससे हमारी इज्जत बढ़ती है। यह धरोहर हमारे पूर्वजों ने दी है। हम अपने पीछे के लोगों को इसमें इजाफा करके देंगे।
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