इनसे सीखें : अजय-रेखा के हौसले के सामने दिव्यांगता हुई बौनी
समाज के युवा आज बेरोजगारी का रोना रोते हैं। सरकार, प्रशासन पर उपेक्षा का आरोप लगाते हैं। फाइलें लेकर नौकरी और रोजगार के लिए दफ्तरों का चक्कर लगाते हैं। ऐसे लोगों को सीख देने का काम कर रहे हैं माहिल...
समाज के युवा आज बेरोजगारी का रोना रोते हैं। सरकार, प्रशासन पर उपेक्षा का आरोप लगाते हैं। फाइलें लेकर नौकरी और रोजगार के लिए दफ्तरों का चक्कर लगाते हैं। ऐसे लोगों को सीख देने का काम कर रहे हैं माहिल गांव के दिव्यांग अजय और रेखा दंपति। बचपन से पोलियो के शिकार अजय उरांव उर्फ दइया और उनकी पत्नी रेखा देवी ने कभी अपनी दिव्यांगता को सफलता की राह में आड़े नहीं आने दिया। सालों भर मेहनत कर खेतों से फसल उपजाना दोनों का जुनून है। अपने खेतों के अलावा ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा के खेतों को साझा में लेकर भी दोनों खेती करते हैं। मकई और सब्जी की खेती करने के बाद अजय का पूरा परिवार धान की खेती में लगा है।
अजय कहता है कि आदमी शरीर से नहीं मन से दिव्यांग होता है। एक पैर और दूसरा बैसाखी के सहारे खेतों के मेड़ पर उछलते-कूदते चलते हुए अजय काफी उत्साहित होकर खेती कर रहा है। माता-पिता को मेहनत करता देख इन दिनों उसकी बेटी समीक्षा कच्छप भी स्कूल जाने से पहले और छुट्टी के बाद खेतों में रोपनी कर रही है। अजय कहता है कि वह खेती करके अपने परिवार का भरण पोषण कर लेता है। अपने बेटे सूरज उरांव को वह रांची के एक स्कूल में पढ़ा रहा है। बेटी माहिल के स्कूल में पढ़ रही है। हालांकि उसे दिव्यांगता पेंशन मिलती है, लेकिन अन्य सरकारी सुविधाओं की उम्मीद नहीं करके स्वयं पर भरोसा कर अपने जीवन में आगे बढ़ रहा है। अजय बताता है कि सिर्फ वह हल नहीं चला पाता है, लेकिन पूरे एक दिन में वह कई खेतों को कुदाल से ही कोड़कर तैयार कर लेता है। वह पत्नी को साइकिल पर बैठाकर 10 किमी दूर अपने ससुराल जराटोली चला जाता है।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।