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सरकारी खातों में बिना काम के पड़े हैं 20 हजार करोड़

वित्त विभाग ने लगाया अनुमान, सभी बैंकों से मांगी रिपोर्ट सरकारी खातों में बिना काम के पड़े हैं 20 हजार...

सरकारी खातों में बिना काम के पड़े हैं 20 हजार करोड़
हिन्दुस्तान टीम,रांचीMon, 08 Jun 2020 09:37 PM
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प्रदेश के कई हजार बैंक खातों में झारखंड सरकार के 20 हजार करोड़ रुपए सालों से बिना लेन-देन के पड़े हुए हैं। इनमे से ज्यादातर समाप्त हो चुकी योजनाओं या परियोजनाओं की बची राशि है। अधिकतर 2010 के पहले के हैं। राज्य सरकार के वित्त विभाग ने इसका अनुमान लगाया है। कोरोना काल में खस्ताहाल खजाने को देखते हुए अब इन खातों की खोजबीन शुरू हो गई है। वित्त विभाग ने सभी बैंक शाखाओं को पत्र लिखकर ऐसे खातों और उनमें पड़ी राशि का पूरा ब्योरा देने के लिए कहा है।वित्त विभाग ने विशेष सचिव दीप्ति जयराज को ऐसे बैंक खातों की पूरी जानकारी जुटाने का जिम्मा दिया है। इसके जरिए राज्य सरकार की वित्तीय प्रबंधन प्रणाली की निगहबानी से दूर पड़ी राशि की सही तस्वीर सामने आ पाएगी। बैंकों को अपने सुदूर ग्रामीण इलाकों के बैंक खातों में भी किसी सरकारी विभाग के खातों की पड़ताल या उनमें पड़ी छोटी से छोटी राशि की भी जानकारी देने के लिए कहा गया है। विभिन्न योजनाओं और परियोजनाओं की खास अवधि के लिए खुले खातों की भी जानकारी देने के लिए कहा गया है। राज्य सरकार के तहत विभिन्न बोर्ड, निगम और आयोगों के खातों के बारे में भी पूरी जानकारी मांगी गई है। अनुमान के मुताबिक राशि प्राप्त हो जाने से झारखंड सरकार को विकास योजनाओं पर ब्रेक नहीं लगाना होगा। क्यों पड़े रह जाते हैं पैसे नंबर-1केंद्र सरकार की ओर से महिला समाख्या योजना को बंद किया गया। राज्य सरकार को भी इसी के मुताबिक फैसला लेना पड़ा। हर जिले और प्रखंडों में कार्यालय भी थे। जाहिर है कि बैंक खाते थे। सालों तक इस योजना को किसी दूसरी योजना के साथ मिलाने की कोशिश होती रही। बैंक खातों में भी रुपए पड़े रहे। अभी भी बहुतेरे जगहों पर पड़े हैं। ऐसा कई केंद्रीय योजनाओं के बंद हो जाने के कारण हुआ।नंबर-2किसी सड़क या दूसरी किसी निर्माण परियोजना के लिए स्थानीय स्तर पर खाते खोले गए या किसी खाते में राशि रखी गई। किसी कारणवश परियोजना अधूरी रह गई। उसके लिए आई राशि वहां पड़ी रह गई। किसी परियोजना के लिए कम ही राशि खर्च हो पाई। 10 साल पहले तक वित्तीय प्रबंधन के लिए दुरुस्त प्रणाली होने के कारण इन सबका हिसाब सचिवालय के स्तर पर प्राप्त नहीं हो सका। नंबर-3राजनीतिक प्रमुख वाले बोर्ड, निगम या आयोगों में किसी खास स्थान पर किसी खास मकसद से नई गतिविधियां शुरू की गईं। वहां की बैंक शाखाओं में खाते खोले गए। उस राजनीतिक प्रमुख के हटते ही उन खातों से राशि निकालने की किसी को चिंता नहीं रही। नियमित ऑडिट की नहीं है व्यवस्थाखातों में सालों साल बिना काम के राशि पड़े रहने का सबसे बड़ा कारण राज्य सरकार के पास आतंरिक अंकेक्षण की सही प्रणाली का नहीं होना है। राज्य सरकार के अंकेक्षण निदेशालय के पास बहुत कम कर्मचारी है। एजी की ओर से केवल तय योजनाओं की ही ऑडिट होती है। चार्टर्ड एकाउंटेंट से ऑडिट की व्यवस्था केवल कुछ खास योजनाओं के लिए ही है।

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