खाक हुए अरमानों की राख में तिनका चुन रहे बेबस लोग
रेलवे के अतिक्रमण अभियान के बाद भदानीनगर मार्केट का अस्तित्व खत्म हो गया। यहां दुकान-मकानों पर नहीं, लोगों के सपनो पर रविवार को बुलडोजर चला था। यह वह सपनो की इमारत थी, जिसकी ईंट छ: दशक पहले रखी गई...
रेलवे के अतिक्रमण अभियान के बाद भदानीनगर मार्केट का अस्तित्व खत्म हो गया। यहां दुकान-मकानों पर नहीं, लोगों के सपनों पर भी रविवार को बुलडोजर चला था। यह वह सपनों की इमारत थी, जिसकी ईंट छ: दशक पहले रखी गई थी। लेकिन अब वो मलवे में तब्दील कर दी गई।
दुकान-मकान उजड़ने का गम हर एक चेहरे पर साफ झलक रहा था। कहां रहेंगे, कहां जाएंगे, क्या करेंगे, जैसे सवालों से घिरे लोग बहुत बेबश दिख रहे थे। कुछ लोग खाक हुए अरमानों की राख से तिनके की तरह बिखरे ईंटों को बटोर रहे थे। वहीं कुछ लोग शून्य को निहारते हुए भविष्य का ताना-बाना बुनते दिखे। यह वहीं मार्केट था, जहां पूरे दिन ग्रामीणों की हलचल रहती थी। लेकिन बर्बादी की कहानी लिखे जाने के बाद यह इलाका पूरी तरह बदरंग और खामोश हो गया। इधर खुले आसमान के नीचे जहां-तहां डेरा डाले लोगों के पास शिकायत की लंबी फेहरिस्त है। लोग सांसद और विधायक से खासे नाराज हैं। कहते हैं कि मुश्किल की घड़ी में जनप्रतिनिधियों ने उनका साथ छोड़ दिया।
छह दशक पुराना था भदानीनगर मार्केट का इतिहास :
भदानीनगर मार्केट का इतिहास करीब छ: दशक पुराना है। 1952 में गुरुशरण लाल भदानी ने यहां ग्लास फैक्ट्री की नींव रखी थी, जिसे 1957 में जापान की कंपनी इंडो असाही ने फैक्ट्री खरीद ली। इसके बाद इंडो असाही का डंका देश से बाहर विदेशों में बजने लगा। यहां फैक्ट्री की सफलता के साथ-साथ मार्केट भी डेवलप होता चला गया। भदानीनगर का मेन मार्केट होने के कारण यहां कई लोग बस गए और रोजी-रोटी का साधन खुद से विकसित कर करीब एक पीढ़ी गुजार दी।
चहारदीवारी के लिए शुरू हुआ खुदाई का काम :
भदानीनगर मार्केट के मलवे में तब्दील होते ही चहारदीवारी निर्माण का काम तेजी से शुरू हो गया। इसके लिए सोमवार को खुदाई का काम हुआ। यहां करीब 500 मीटर लंबी चहारदीवारी का निर्माण होना है। हालिया दिनों भुरकुंडा स्टेशन आए धनबाद डीआरएम इसे लेकर काफी गंभीर थे। उन्होंने चहारदीवारी की ऊंचाई और स्टेशन के इंट्रेस को लेकर अधिकारियों को आवश्यक दिशा-निर्देश भी दिया था।