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मानव सृष्टि और प्रकृति पूजा का उत्सव है सोहराय पर्व

दीपावाली के दूसरे दिन जब शेष भारत गोवर्धन पूजा करता है, उसी दिन से आदिवासियों का सोहराय पर्व प्रारंभ हो जाता...

मानव सृष्टि और प्रकृति पूजा का उत्सव है सोहराय पर्व
Newswrapहिन्दुस्तान टीम,रामगढ़Mon, 13 Nov 2023 06:45 PM
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बरकाकाना, निज प्रतिनिधि।
दीपावाली के दूसरे दिन जब शेष भारत गोवर्धन पूजा करता है, उसी दिन से आदिवासियों का सोहराय पर्व प्रारंभ हो जाता है। पांच दिनों तक चलने वाले इस पर्व का संबंध सृष्टि की उत्पत्ति से जुड़ा हुआ है। आदिवासी छात्र संघ केंद्रीय उपाध्यक्ष छोटेलाल करमाली ने कहा कि सोहराय पर्व हमारे सभ्यता व संस्कृति का प्रतीक है। यह पर्व पालतू पशु और मानव के बीच गहरा प्रेम स्थापित करता है। यह पर्व भारत के मूल निवासियों के लिए विशिष्ट त्यौहार है। क्योंकि भारत के अधिकांश मूल निवासी खेती-बारी पर निर्भर है। खेती बारी का काम बेलो व भैंसों के माध्यम से की जाती है। इसीलिए सोहराय का पर्व में पशुओं को माता लक्ष्मी की तरह पूजा की जाती है। इस दिन बैलों व भैंसों को पूजा कर किसान वर्ग धन-संपत्ति वृद्धि की मांग करते हैं। सोहराय का पर्व झारखंड के सभी जिले में मनाया जाता है। और इसकी शुरुआत दामोदर घाटी सभ्यता के इसको गुफा से शुरू हुई थी। आज भी जनजातीय समाज में इस पर्व का बेहद महत्व है। जनजातीय समाज इस पर्व को उत्सव की तरह मनाता है। आदिवासी समाज की संस्कृति काफी रोचक है। शांत चित्त स्वभाव के लिए जाना जाने वाला आदिवासी समुदाय मूलतः प्रकृति पूजक है। इसकी तैयारी कई दिनों पूर्व शुरू हो जाती है। आज भी सुदूरवर्ती क्षेत्र के कच्चे मकानों के दीवारों में सोहराय कला दिखाई देती है। जनजातीय समाज टोली बनाकर मांदर की थाप पर नाचते गाते हैं।

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