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परस्पर संघर्ष और विवाद से नहीं ढूंढा जा सकता सकारात्मक परिणाम : डॉ. जयंत शेखर

रक्षाबंधन एवं संस्कृत दिवस के उपलक्ष्य में विद्वत परिषद की पलामू विभाग स्तरीय इकाई ने करोना काल के पश्चात भारत में शिक्षा की दशा और दिशा विषयक वर्चुअल गोष्ठी कर विभिन्न आयामों पर चर्चा की।...

परस्पर संघर्ष और विवाद से नहीं ढूंढा जा सकता सकारात्मक परिणाम : डॉ. जयंत शेखर
हिन्दुस्तान टीम,पलामूTue, 04 Aug 2020 03:03 AM
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रक्षाबंधन एवं संस्कृत दिवस के उपलक्ष्य में विद्वत परिषद की पलामू विभाग स्तरीय इकाई ने करोना काल के पश्चात भारत में शिक्षा की दशा और दिशा विषयक वर्चुअल गोष्ठी कर विभिन्न आयामों पर चर्चा की। नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. जयंत शेखर की अध्यक्षता में आयोजित गोष्ठी में विषय प्रवेश विद्वत परिषद के प्रांत संयोजक अमरकांत झा ने कराया। उन्होंने शिक्षण, अधिगम और विकास अर्थात टीचिंग, लर्निंग एंड इवोल्यूशन की कसौटी पर चुनौतियों का विश्लेषण और निदान व निष्पादन की दशा और दिशा नियत करने की बात कही। परिषद के प्रदेश सचिव मुकेश नंदन सहाय, विद्वत परिषद के प्रांत प्रमुख डॉ. डीएन सिंह आदि भी ऑनलाइन गोष्ठी में शामिल हुए। अध्यक्षीय उदबोधन में डॉ. जयंत शेखर ने गोष्ठी का निष्कर्ष पेश करते हुए कहा कि भारतीय शिक्षा का उद्देश्य और निष्पतियों पर में आये विचार से स्पष्ट है कि व्यक्ति, समाज और सरकार को मिलकर अचानक आए इस प्राकृतिक विपदा में सही सूत्र खोज निकालने का चिंतन मनन और विचार करना अपेक्षित है। सकारात्मक परिणाम परस्पर संघर्ष और विवाद से नहीं ढूंढा जा सकता है बल्कि परस्पर सहयोग और विमर्श से बड़ी-बड़ी समस्याओं के सार्थक समाधान निकाले जा सकते हैं। गोष्ठी में मेदिनीनगर संकुल से डा. केसी झा, लातेहार संकुल से गांधी महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. दशरथ साहू, बंशीधर नगर से कमलेश पांडेय ने भी चर्चा में समस्याओं की गंभीरता समाज की इसके प्रति उदासीनता और नकारात्मक दृष्टिकोण को रेखांकित करते हुए समाधान के अनेक पहलुओं का व्यवहारिक सूत्र प्रस्तुत किया। हवाई गोष्ठी का संचालन विभाग निरीक्षक विवेक नयन पांडेय ने किया। गोष्ठी का समापन कल्याण मंत्र के साथ किया गया। विमर्श की प्रक्रिया निरंतर चलनी चाहिए : गोष्ठी के मुख्य वक्ता राजू कमल बिट्टू ने भारत में शिक्षा के अलौकिक अर्थात आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक एवं पारलौकिक अर्थात परा भौतिक अध्यात्मिक मोक्ष जैसे संदर्भों का सूत्रवत विवेचन करते हुए कहा कि भारत ने शिक्षा का शाश्वत उद्देश्य निर्धारित कर तदनुरूपआधारभूत संरचना और व्यवस्था खड़ा करके व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र और संपूर्ण चराचर के परस्पर पूरकता, सहयोग, सहकार एवं निरंतर विकास का परिणाम साकार कर विश्व को समाधान दिया है। उन्होंने विषय के परिप्रेक्ष्य में भारत की उसी पहल को समस्या का निदान निर्धारित करने का विचार रखा। उन्होंने कहा कि परिवर्तन की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है कभी अनुकूल तो कभी प्रतिकूल परिवर्तन होते हैं। प्रतिकूल समस्याओं का सब मिलजुल कर समाधान निकाल रहे हैं। समय के साथ समाधान के रास्ते स्पष्ट होते जाएंगे। समाज का लचीला स्वभाव संवेदना के साथ जनहित और बालक के हित में बदलाव अवश्य लाएंगे। विमर्श की प्रक्रिया निरंतर चलती रहनी चाहिए।

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