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अगर हिंदुस्तानी हो तो डर कैसा और अगर घुसपैठिया हो तो यह घर कैसा : श्रीनिवास

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के 20वां प्रांतीय अधिवेशन में राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीनिवास ने प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए कहा कि एनआरसी और सीएए को लेकर वैसे लोग घबराये हुए हैं,जो घुसपैठियों के...

अगर हिंदुस्तानी हो तो डर कैसा और अगर घुसपैठिया हो तो यह घर कैसा : श्रीनिवास
हिन्दुस्तान टीम,पलामूMon, 20 Jan 2020 02:03 AM
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अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के 20वां प्रांतीय अधिवेशन में राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीनिवास ने प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए कहा कि एनआरसी और सीएए को लेकर वैसे लोग घबराये हुए हैं,जो घुसपैठियों के सहारे वोट बैंक की राजनीत करते हैं। उन्होंने कहा कि सीएए भारत के किसी भी नागरिकों के लिए नहीं है बल्कि यह कानून भारत में रह रहे अफगानिस्तान , पाकिस्तान एवं बांग्लादेश के शरणार्थियों के लिए है। वैसे लोगों के लिए है जिन्हें पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं अफगानिस्तान में धर्म के आधार पर उनका शोषण किया गया है और वह किसी तरह अपने आप को बचाते हुए भारत में शरण लिए हुए हैं और अपने जीवन यापन के लिए यहां संघर्ष कर रहे हैं। यह बिल्कुल भी मुस्लिम विरोधी कानून नहीं है बल्कि यह कानून राष्ट्र हित में है। शोषित, पीड़ित, अल्पसंख्यक शरणार्थियों के लिए है जो भारत में अपने जीवन स्तर बढ़ाना चाहते हैं। देश में एनआरसी के खिलाफ माहौल बनाने का प्रयास किया जा रहा है यह बिल्कुल ही तथ्य हीन है और विद्यार्थी परिषद की यह पुरानी मांग है। जब- जब देश में घुसपैठियों से लड़ने की बात होती है उनके खिलाफ प्रदर्शन की बात होती है तो विद्यार्थी परिषद सदैव आगे रहता है। श्रीनिवास ने कहा कि अगर हिंदुस्तानी हो तो डर कैसा और अगर घुसपैठिया हो तो घर कैसा है। यह महज नागरिकता देने का कानून नहीं है बल्कि यह कानून तमाम शरणार्थियों के लिए है जिनके साथ अभी तक अन्याय होता आ रहा था। उन्होंने लोगों से शरणार्थी और घुसपैठियों में अंतर समझने की बात कही। उन्होंने कहा की सीएए के माध्यम से शरणार्थी और घुसपैठियों में विशाल अंतर का पता चलता है। एनपीआर के तहत देश भर में नागरिकों का एक डाटा रजिस्टर होना चाहिए। देश में नागरिकों का डेटाबेस बनाने का कहीं से भी विरोध करना उचित नहीं है । उन्होंने कहा कि पहली बार इसमें 1955 में संशोधन हुआ था तो इसकी कोई तो वजह रही होगी। आज यह कानून दो संशोधन के साथ पेश हुआ है। कुछ लोगों के बहकावे में आकर जामिया और जेएनयू, दिल्ली के शाहिन बाग जैसे स्थानों पर हमें चाहिए आजादी जैसे नारे लगाये जा रहे हैं। यदि नारा लगाना ही है देश को मुक्त करेंगे आतंकवाद से मुक्त करेंगे नक्सलवाद से, मुक्त करेंगे जात-पात से, देश से भ्रष्टाचार से मुक्त करेंगे-गरीबी और लाचारी से अशिक्षा से मुक्त करेंगे आदि नारे लगाना चाहिए। आजादी के 70 वर्षों के बाद आज भारत में तो अल्पसंख्यक अपने हक और अधिकार के साथ रह रहे हैं ,लेकिन वहीं पड़ोस के देश में उनकी स्थिति बिल्कुल ही दयनीय है।

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