लोहरदगा को असहनीय दर्द दे गया वर्ष 2020
वर्ष 2020 लोहरदगा को हमेशा के लिए असहनीय वेदना देकर चला गया। यह दर्द यहां के निवासियों के लिए लंबे समय तक सालता रहेगा। विश्वास दरकने का दर्द, इसके...
लोहरदगा।संवाददाता
वर्ष 2020 लोहरदगा को हमेशा के लिए असहनीय वेदना देकर चला गया। यह दर्द यहां के निवासियों के लिए लंबे समय तक सालता रहेगा। विश्वास दरकने का दर्द, इसके टूटने का दर्द। भाईचारे और मेल मिलाप के आभाव का दर्द क्या होता है इसने लोहरदगा ने 2020 के शुरू में ही झेलने का काम किया है। दिन था नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती वाला। 23 जनवरी को कुछ संगठन के लोगों ने सीए के समर्थन में तिरंगा यात्रा निकाली थी। सब कुछ ठीक चल रहा था।पर एक खास स्थान पर पहुंचते ही जुलूस पर पथराव शुरू कर दिया गया। देखते ही देखते लोहरदगा आग की लपटों में आ गया। इस घटना के बाद पता चला कि तीन लोगों की मौत हो गई। फिर बिगड़े माहौल में यहां सरस्वती पूजा खत्म हो गयी।
और कोविड-19 ने दस्तक दे दी। एक ओर पूरा जिला दंगे से उबरने का कोशिश कर रहा था। कोविड ने रात रात भर लोगों को जागने को मजबूर कर दिया। पुलिस प्रशासन भी परेशान रहे। एक पुलिस जवान को भी जान गंवानी पड़ी। उस वक्त कड़ाके की ठंड के कारण उसकी मौत हो गई। दर्द का सिलसिला चलता रहा।
लोहरदगा शहर में 11 लोगों की मौत कोरोना की वजह से हो गई और करीब आधा दर्जन लोहरदगा वासियों की मौत रांची के अस्पतालों में हो गई। दर्जन भर लोगों के काल के गाल में समा जाने का दर्द उन परिवारों ने झेला, जिनकी उम्र अभी काफी बाकी थी।
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नक्सलियों ने खुद को मजबूत किया---
इन तमाम चीजों के बीच नक्सलियों ने अपने संगठन को मजबूती देने का काम किया। पेशरार प्रखंड के गम्हरिया थाना क्षेत्र में ऊपर तुरियाडीह में विकास काम में लगे रीपर डोजर को फूंक दिया गया। पेशरार थाना क्षेत्र के ओनेगड़ा में कई गाड़ियों को जला दिया गया। फिर मुंगो में जागीर भगत की हत्या नक्सलियों ने कर दी। जाते जाते 31 दिसंबर को किस्को प्रखंड के जोबांग थाना क्षेत्र में जो सड़क का निर्माण कराया जा रहा था, उसे पुलिस ने सुरक्षात्मक दृष्टिकोण से 10 दिनों के लिए बंद करवा दिया। एक बार नक्सली गतिविधि बढ़ गयी है। विकास के काम ठप हैं। इस साल कोई भी विकास का नया काम नहीं हुआ। हां अंतिम दिनों में पिछले सरकार के द्वारा जो योजनाएं ली गई थी उसके पूर्ण होने पर उस का शुभारंभ किया गया। कुछ योजनाओं का शिलान्यास किया गया। जो दर्द अपने सीने में लोहरदगा छुपाया है उसका चुभन आज भी महसूस होता है।
हजरत बाबा दुखन शाह और बाबा गोविंद दास का शहर है लोहरदगा--
लोहरदगा हजरत बाबा दुखन शाह और बाबा गोविंद दास के मजार वाला शहर है। जहां हर कौम के लोग रहते हैं अपनी हाजिरी लगाते हैं, और दुआएं और प्रार्थनाएं करते हैं। आखिर फिर क्या हुआ कौन लोग थे जो यह दर्द दे गए? आज भी इस बात की टीस है कि इस दर्द को कम ही न किया जाए बल्कि इसे हमेशा हमेशा के लिए भुलाने के लिए पहल किया जाए। ऐसे गुलदस्ते का निर्माण किया जाए जिसमें हरफूल का सुगंध हो हर फूल को स्थान मिले। प्रेम, सौहार्द और भाईचारे का त्रिवेणी का निर्बाध बहाव हो। फिर से एक बार लोग यह कहे कि लोहरदगा में रंगदारी नहीं रिश्तेदारी की अहमियत है, तो दर्द कम हो सकता है। और यही साल के पहले दिन संकल्प लेने की जरूरत है। जिसमें हर रंग हो और सियासत विशाल न हो तो निश्चित रूप से लोहरदगा से खड़ा होगा और वैमनस्यताएं दूर होंगी।