आदिवासियों की घटती आबादी चिंता का विषय: सधनू भगत
झारखंड के पूर्व मंत्री वरिष्ठ भाजपा नेता सधनू भगत ने आदिवासियों की घटती आबादी पर चिंता जताई है। श्री भगत ने कहा है कि झारखंड को बने मात्र 18 साल हुए हैं। इसी बीच आदिवासियों का आरक्षण समाप्त करने की...
झारखंड के पूर्व मंत्री वरिष्ठ भाजपा नेता सधनू भगत ने आदिवासियों की घटती आबादी पर चिंता जताई है। श्री भगत ने कहा है कि झारखंड को बने मात्र 18 साल हुए हैं। इसी बीच आदिवासियों का आरक्षण समाप्त करने की आवाज और अन्य जातियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की आवाज गूंजने लगी है। घटती आबादी की चिंता को आदिवासियों को समझना होगा। जनगणना से फरवरी से अप्रैल के बीच में होती है। इस दौरान आदिवासियों की बड़ी आबादी रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन कर चुकी होती है। जनगणना में वह शामिल तो होते हैं मगर जनजाति किस श्रेणी हासिल नहीं कर पाते। आदिवासी समाज की लड़कियां बड़ी संख्या में बाहर सब्जबाग दिखाकर बेच दी जाती है। विकास के नाम पर आदिवासी विस्थापन का शिकार बनाया जा रहे हैं। नगरों का विस्तार होने से आदिवासी अपनी जमीन से बेदखल हो रहे हैं। आदिवासियों में पोषण की कमी है नशाखोरी बढ़ गई है। जन्म वृद्धि दर घट रही है और औसत आयु सीमा भी कम हो रही है। झारखंड में आदिवासियों की आबादी 1951 में कुल आबादी का 36.03 प्रतिशत थी। वर्ष 2011 में घटकर 26.11 प्रतिशत हो गई।आजादी के बाद से अभी तक आदिवासियों की आबादी में 16.89 कमी आई है जबकि गैर आदिवासियों की संख्या बढ़ी है। यह घटती संख्या आदिवासी समाज के लिए खतरे की घंटी है। इसका सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्र में प्रभाव पड़ना शुरू हो गया है। सामाजिक स्तर पर इसका समाधान ढूंढने की कोशिश होनी चाहिए।