उगते सूर्य को अर्ध्य अर्पित करने के साथ चैती छठ पर्व संपन्न
लोहरदगा और आसपास के इलाकों में भक्तिभाव और पूर्ण समर्पण के साथ 31 मार्च को उदयाचलगामी सूर्य को अर्ध्य अर्पित करने के साथ चार दिवसीय चैती छठ महोत्सव संपन्न हो गया। इस बार कोविड- 19 बीमारी के कारण सभी...
लोहरदगा और आसपास के इलाकों में भक्तिभाव और पूर्ण समर्पण के साथ 31 मार्च को उदयाचलगामी सूर्य को अर्ध्य अर्पित करने के साथ चार दिवसीय चैती छठ महोत्सव संपन्न हो गया। इस बार कोविड- 19 बीमारी के कारण सभी छठ व्रतियों ने अपने अपने घरों के छत अथवा बागान में प्रतीकात्मक तालाब बनाकर इस व्रत को संपन्न किया। उनका कहना था की लाकडाउन में सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी है। इसलिए हम लोगों ने गाइडलाइन का पालन करते हुए भगवान सूर्यनारायण और छठी मैया की पूजा अर्चना की।उनसे प्रार्थना किया किया कि वह न केवल भारत बल्कि पूरे दुनिया को कोरोना वायरस से मुक्ति दिलाएं। छठ को लेकर पुराणों में बताया गया है, कि नवरात्र की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की पूजा विवस्वान के रूप में करनी चाहिए। सूर्यदेव ने देवमाता अदिति के गर्भ से जन्म लिया था। आगे चलकर विवस्वान और मार्तण्ड कहलाए। इन्हीं की संतान वैवस्वत मनु भी हुए। जिनसे आगे चलकर सृष्टि का विकास हुआ। शनिदेव, यमराज, यमुना और कर्ण भी सूर्यदेव की ही संतानें हैं।2020 के छठ का पर्व नहाय खाय के साथ 28 मार्च को शुरू हुआ, 29 मार्च को खरना, 30 मार्च को अस्ताचलगामी सूर्य की पूजा और अर्ध्य अर्पित की गई। चैत्र नवरात्र की षष्ठी के दिन छठ का मुख्य प्रसाद बनाया जाता है। इसमें ठेकुआ प्रमुख है। प्रसाद और फलों को नई टोकरी में सजाया गया। फिर घर में टोकरी की पूजा करके सभी व्रती इसबार अपने अपने घरों में ही सूर्य को अर्घ्य दी।कोरोना वायरस के कारण कोई तालाब, नदी और घाट पर नहीं गए। इस बार लॉकडाउन की वजह से लोगों को पूजा करने में असुविधा हो सकती है।ऐसी मान्यता के अनुसार, लंका पर विजय पाने के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास कर सूर्यदेव की पूजा की। सप्तमी को सूर्योदय के वक्त फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। यही परंपरा अब तक चली आ रही है।इसके अलावा छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य के परमभक्त थे। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इसके अनुसार, जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं और पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई है।
