जिनकी हत्या के बाद अलग राज्य की लड़ाई ने पकड़ी रफ्तार
शहीद निर्मल महतो की समाधि पर श्रद्धा अर्पित की जाएगी। उनका बलिदान झारखंड राज्य आंदोलन को गति देने वाला था। 1987 में निर्मल महतो की हत्या ने पूरे राज्य में उथल-पुथल मचाई। उनकी शहादत के बाद हजारों लोग...
शहीद निर्मल महतो की समाधि पर बुधवार को श्रद्धा के फूल अर्पित किए जाएंगे। झारखंड अलग राज्य के आंदोलन को रफ्तार देने वाले निर्मल महतो के सपनों का झारखंड बनाने का संकल्प लिया जाएगा। निर्मल महतो की शहादत के बाद झारखंड राज्य के आंदोलन ने बड़ा रूप अख्तियार कर लिया था। पूरे झारखंड (अविभाजित बिहार) में अलग राज्य के आंदोलन ने रफ्तार पकड़ ली थी। शहीद निर्मल महतो के जीवन पर लिखी अपनी किताब झारखंड की समरगाथा में पूर्व संसद शैलेंद्र महतो लिखते हैं कि सवाल बनकर मैं फिर उठूंगा, जो बन पड़े तो जवाब रखना…। मेरा बलिदान बेकार ना जाए, मेरे लहू का हिसाब रखना…। उनके लहू के एक-एक कतरे ने आंदोलन को तेज किया और आज झारखंड अलग राज्य बने 24 साल हो चुके हैं। अपनी पुस्तक में पूर्व सांसद ने एक अध्याय को शीर्षक ही दिया है क्रांति का दूसरा नाम शहीद निर्मल महतो। निर्मल महतो की गोली मारकर आठ अगस्त 1987 को उस समय हत्या कर दी गई थी, जब वे अवतार सिंह तारी की मां के श्राद्ध कर्म में भाग लेने के लिए सूरज मंडल के साथ रांची से जमशेदपुर आए थे। सभी बिष्टूपुर चमरिया गेस्ट हाउस में ठहरे थे। गेस्ट हाउस में दो कमरे बुक थे। कमरा नंबर एक सूरज मंडल और कमरा नंबर दो ज्ञान रंजन के नाम से बुक था। निर्मल महतो सूरज मंडल के साथ कमरा नंबर एक में रुके थे। आठ अगस्त 1987 को निर्मल महतो, ज्ञानरंजन, सूरज मंडल व कुछ सहयोगियों के साथ चमरिया गेस्ट हाउस की सीढ़ी से उतर ही रहे थे कि उनपर धीरेंद्र सिंह उर्फ पप्पू ने सामने से और वीरेंद्र सिंह ने पीछे से फायरिंग कर दी। गोली लगते ही निर्मल महतो गिर गए। उनके साथ खड़े सूरज मंडल की भी अंगुली में गोली लगी। दोनों को जीप से एमजीएम ले जाया गया, जहां चिकित्सकों ने निर्मल महतो को मृत घोषित कर दिया। उनकी हत्या की खबर पूरे राज्य में फैल गई। इसके बाद झामुमो और आजसू के कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए और जमशेदपुर को बंद करा दिया। तीन दिनों के झारखंड बंद का आह्वान किया गया। शिबू सोरेन भी जमशेदपुर पहुंच गए। निर्मल महतो की शवयात्रा में एक लाख से अधिक लोग शामिल हुए। हत्या की प्राथमिकी झामुमो के तत्कालीन दिग्गज नेता सूरज मंडल की शिकायत पर बिष्टूपुर थाने में दर्ज की गई थी। अविभाजित बिहार के दौरान उनकी हत्या के विरोध में जमशेदपुर समेत पूरे प्रदेश में बवाल हुआ। हत्या की जांच सरकार ने सीबीआई को 18 नवंबर 1987 को सौंपी। निर्मल महतो की हत्या में धीरेंद्र सिंह, वीरेंद्र सिंह और नरेंद्र सिंह की गिरफ्तारी हुई थी। धीरेंद्र सिंह की गिरफ्तारी 11 साल बाद 2001 में और नरेंद्र सिंह की 2003 में हुई थी। जेल में ही गोलमुरी के गाढ़ाबासा निवासी वीरेंद्र सिंह की मौत हो गई थी।
निकल रही जिसकी समाधि से स्वतंत्रता की आग
पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो बताते हैं कि उस समय लोग उत्तेजित हो उठे। उन्होंने अपना खून देकर झारखंड को एक अलग राज्य के मुकाम तक पहुंचाया। निर्मल महतो का लक्ष्य महान था, लेकिन स्वयं को कुर्बान करना आसान नहीं। निर्मल महतो की हत्या इस बात की पुष्टि करती है कि जब भी किसी ने दबे-कुचले, शोषितों-पीड़ितों, वंचितों की आवाज को मुखर होकर उठाने की कोशिश की है तो सुनियोजित ढंग से हस्ती मिटा देने की कोशिश की जाती है। निर्मल महतो इसी कड़ी का एक हिस्सा थे। ऐसी ही कोशिश प्रभु यीशु मसीह पर की गई थी।
निर्मल दा की हत्या की खबर पाकर होश खो बैठा : शैलेंद्र
शैलेंद्र महतो अपने सोशल मीडिया पर निर्मल महतो को याद करके लिखते हैं -निर्मल तुम नहीं रहे। छोड़कर गए इस दुनिया को। बिल्कुल बेफिक्री के साथ। जैसे कोई मामूली सी बात हो। शरीर खून से लथपथ, लेकिन चेहरे पर गम की कोई निशानी नहीं और इधर अपनी हालत। जो मैंने सुना तो होश खो बैठा। शैलेन्द्र महतो बताते हैं कि वास्तव में निर्मल महतो का बलिदान झारखंड राज्य के लिए हुआ था। शहीद की कीमत कोई चुका नहीं सकता। निर्मल महतो की हत्या के बाद झारखंड राज्य के लिए हजारों, लाखों लोग सक्रिय हो गए और सभी राजनीतिक दलों ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में झारखंड राज्य बनाने की बात स्वीकार की। अंततः 2000 में झारखंड राज्य का गठन हुआ।
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