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टाटा जू ही नहीं, पूरा जमशेदपुर है बेबीसिओसिस की चपेट में

टाटा जू में मार्च में बेबीसिओसिस बीमारी से एक सप्ताह के अंतराल में दो बाघों की मौत हो गई थी। पर आपको बता दें कि पशुओं में होनेवाली इस जानलेवा बीमारी के प्रकोप में सिर्फ टाटा जू ही नहीं, बल्कि पूरा...

टाटा जू ही नहीं, पूरा जमशेदपुर है बेबीसिओसिस की चपेट में
हिन्दुस्तान टीम,जमशेदपुरWed, 09 May 2018 05:17 PM
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टाटा जू में मार्च में बेबीसिओसिस बीमारी से एक सप्ताह के अंतराल में दो बाघों की मौत हो गई थी। पर आपको बता दें कि पशुओं में होनेवाली इस जानलेवा बीमारी के प्रकोप में सिर्फ टाटा जू ही नहीं, बल्कि पूरा शहर है।

अधिकांश मामले कुत्तों में : जिला पशुपालन विभाग के पास हर माह बेबीसिओसिस बीमारी के करीब 18 मामले पहुंच रहे हैं। अधिकांश मामले कुत्तों व मवेशियों में मिल रहे हैं। सर्वाधिक मामले सोनारी, कदमा, बागबेड़ा, परसूडीह, कीताडीह, ग्वालापट्टी और मानगो से मिल रहे हैं।

दो साल पहले दलमा में भी छाया था बेबीसिओसिस का आतंक : दलमा के रेंजर आरपी सिंह ने बताया कि दो साल पूर्व दलमा में भी बेबीसिओसिस बीमारी फैली थी। दरअसल दलमा के आसपास के गांवों में मवेशियों में बेबीसिओसिस हुई थी। ये मवेशी घास खाने दलमा में आ रहे थे। जिस कारण कुछ वन्य जीव भी बेबीसिओसिस से पीड़ित हो गए थे। पशुपालन विभाग की मदद से दलमा के आसपास के गांवों में मवेशियों का सर्वे कर वृहद पैमाने पर टीकाकरण कराया गया। इसके बाद बेबीसिओसिस का कोई केस नहीं मिला है।

डॉग प्रेमी रहें सावधान : बेबीसिओसिस बीमारी सर्वाधिक तौर पर कुत्तों में होती है। कुत्तों में परजीवी के कारण होने वाली विश्व में दूसरी सबसे बड़ी बीमारी है। ऐसे में डॉग प्रेमियों को बेहद सतर्क रहने की जरूरत है। नियमित समय पर अपने कुत्ते की जांच कराएं।

बेबीसिओसिस : बेबीसिओसिस प्रोटोजोआ ग्रसित टिक्स (जू जैसा दिखने वाला की) से मवेशियों में होने वाली बीमारी है। जो आमतौर पर कुत्तों और स्तनधारी पशुओं में पाई जाती है। यह बिल्कुल मलेरिया की तरह होती है, जिसमें प्रभावित पशु की लाल रुधिर कणिकाएं नष्ट होने लगती हैं।

बीमारी : बेबीसिओसिस

कारण : प्रोटोजोआ ग्रसित टिक्स (जूं की तरह दिखने वाला कीट) से, गंदगी से

लक्षण :-

- पशुओं के पेशाब का रंग हो जाता है कॉफी के रंग का

- खून के दस्त होने लगते हैं, पशु हो जाते हैं कमजोर व खाना नहीं खाते

- पीलिया व मलेरिया जैसे लक्षण भी देखे जाते हैं

बचाव

- बिरेनिल के टीके पशुओं के वजन के अनुसार मांस में लगाए जाते हैं

- खून बढाने वाली दवाओं का प्रयोग किया जाता है

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