20 दिन में पूरी हो जाएगी रेलवे लाइन के नीचे सुरंग की खुदाई
बागबेड़ा ग्रामीण जलापूर्ति योजना के तहत रेलवे लाइन के नीचे 45 मीटर लंबी सुरंग खोदने का कार्य अगले 20 दिनों में पूरा होगा। इससे पाइपलाइन जुगसलाई से खरकाई नदी तक जाएगी, जिससे क्षेत्र में जलापूर्ति शुरू...

बागबेड़ा ग्रामीण जलापूर्ति योजना के लिए रेलवे लाइन के नीचे 45 मीटर सुरंग खोदने का काम अगले 20 दिनों में पूरा हो जाएगा। वैसे सुरंग की कुल लंबाई 365 मीटर है। इसके बाद उसमें इंटकवेल से आने वाले पाइप को बिछा दिया जाएगा। इस तरह पाइप लाइन जुगसलाई में रेलवे लाइन के आरपार हो जाएगा। यह पाइप लाइन सपरा में खरकाई नदी पर बने इंटकवेल से गिद्दी झोपड़ी स्थित फिल्टर प्लांट को जोड़ेगा। इसके बिछने के बाद फिल्टर प्लांट तक पानी पहुंचने लगेगा और जलापूर्ति की शुरुआत हो सकेगी। पेयजल स्वच्छता विभाग का दावा है कि करीब 40 दिनों में अर्थात अप्रैल के अंत तक आंशिक जलापूर्ति शुरू हो जाएगी। इसके शुरू होने से इस क्षेत्र के हजारों परिवारों को पेयजल की किल्लत से छुटकारा मिल जाएगा। हालांकि पूरी क्षमता से पानी सप्लाई में कुछ और माह लगेंगे। इसके शुरू होने से एक लाख से अधिक लोगों को फायदा होगा।
वित्त बैंक पोषित यह योजना 18 अप्रैल, 2015 में शुरू हुई थी। उस समय इसकी लागत 100 करोड़ रुपए थी। जबकि अगले पांच साल तक मेंटेनेंस मद में साढ़े अठारह करोड़ रुपए खर्च किया जाना था। हालांकि विभिन्न वजहों से यह योजना लटकती चली गई। इसे तीन साल में जुलाई 2018 में पूरा किया जाना था। परंतु आज तक पूरा नहीं हो सकी है।
एक के बाद एक अड़चन से योजना में हुई देर
इस योजना के फिल्टर प्लांट वाले स्थान गिद्दीझोपड़ी को लेकर सबसे पहले विवाद हुआ। कुछ स्थानीय लोगों ने वहां योजना का विरोध कर दिया जबकि जल संकट वाले उस क्षेत्र को भी पानी मिलना था। उग्र विरोध के बाद मामला कोर्ट पहुंच गया क्योंकि लोगों ने उस समय के धालभूम के अनुमंडल पदाधिकारी सूरज कुमार पर देशद्रोह का केस कर दिया। ये अलग बात है कि कोर्ट ने इसमें संज्ञान नहीं लिया। फिर उन्हीं लोगों ने विश्व बैंक से शिकायत की कि यहां के आदिवासियों को सताया जा रहा है। इसके कारण विदेश से जांच टीम आ गई। योजना को कुछ समय के लिए रोकना पड़ा। देर होते-होते इसकी एजेंसी मेसर्स आईएलएफएस के खिलाफ धीमा काम करने की शिकायत होने लगी और उसे ब्लैक लिस्ट करना पड़ा। बाद में दूसरी एजेंसी प्रीति इंटरप्राइजेज का चयन किया गया। देर होने की वजह से योजना का पुनर्मूल्यांकन करना पड़ा और लागत 50.58 करोड़ रुपए अधिक हो गई। नदी में पाइप पार कराने के लिए जो पुल बनाया जा रहा था, उसके पिलर बह गये। उसे फिर से बनाना पड़ा। और एक पिलर अतिरक्त ढालना पड़ा। रेलवे ने सुरंग मशीन से खोदने की अनुमति नहीं दी, इसलिए हाथ से खोदी जा रही। इसमें भी देर हो रही है। पहले दो ही पटरी को पार करना था। देर होने से बाद में तीसरी पटरी बिछ गई। वह भी दूसरी पटरी से 50 मीटर दूर। इसके कारण खोदाई का रकवा बढ़ गया।
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