सरकारी डॉक्टरों के अकाल से जूझ रहा कोल्हान
सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद कोल्हान के कई गांव स्वास्थ्य सुविधाओं से महरूम हैं। ग्रामीणों को आज भी इलाज के लिए दैनिक कार्य छोड़ कई किमी का सफर तय कर शहर आना पड़ता है। कारण मात्र एक है, डॉक्टरों...
सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद कोल्हान के कई गांव स्वास्थ्य सुविधाओं से महरूम हैं। ग्रामीणों को आज भी इलाज के लिए दैनिक कार्य छोड़ कई किमी का सफर तय कर शहर आना पड़ता है। कारण मात्र एक है, डॉक्टरों की घोर कमी। आंकड़ों पर गौर करें तो लगभग 20 हजार की आबादी पर मात्र एक डॉक्टर हैं, ऐसे में कैसे स्वास्थ्य सुविधाएं नसीब होंगी।
एक तिहाई के बराबर डॉक्टरों से कैसे होगा इलाज : करीब 48.5 लाख आबादी वाले कोल्हान में मेडिकल अफसरों के 461 स्वीकृत पदों पर महज एक तिहाई मेडिकल अफसर ही तैनात हैं। आश्चर्यजनक स्थिति है कि सबसे खराब स्थिति ग्रामीण इलाकों की है। प. सिंहभूम में 15 लाख आबादी पर मात्र 134 और सरायकेला-खरसावां में 10.6 लाख आबादी पर मात्र 48 सरकारी डॉक्टर कार्यरत हैं। वहीं, पूर्वी सिंहभूम में लगभग 23 लाख आबादी पर मात्र 64 डॉक्टर हैं। ए्रक तिहाई मेडिकल अफसर होने के बाद भी अधिकतर प्रशासनिक, मुख्यमंत्री, वीआईपी व जेल की ड्यूटी थमा दी गई है।
सीएचसी-पीएचसी बदहाल : ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने की प्रमुख जिम्मेवारी सीएचसी, पीएचसी व हेल्थ सबसेंटर की होती है। लेकिन, कोल्हान में डॉक्टरों के कमी के कारण सीएचसी-पीएचसी की स्थिति काफी लचर है। सात स्वीकृत पदों वाले सीएचसी में अधिकतर जगहों पर महज दो से तीन ही डॉक्टर कार्यरत हैं। उसपर भी इन्हें सीएचसी के साथ-साथ क्षेत्रीय पीएचसी का प्रभार थमा दिया गया है। कारण यह है कि दो स्वीकृत पद वाले पीएचसी में अधिकतर जगहों पर एक या शून्य डॉक्टर तैनात हैं।
सालों से नहीं हुई बहाली, डॉक्टर कर रहे पलायन : झारखंड गठन के बाद से एक बार भी बड़े पैमाने पर मेडिकल अफसरों की बहाली नहीं हुई है। वहीं वेतनमान में भी खास बढ़ोतरी नहीं हुई है। मसलन अधिकतर मेडिकल ऑफिसर पलायन कर रहे हैं। गत तीन वर्ष में ही करीब 40 प्रतिशत एमओ पलायन कर चुके हैं।