भगवती में पूर्ण निष्ठा और तत्परता रखनी चाहिए : आचार्य
भगवती में पूर्ण निष्ठा और तत्परता रखनी चाहिए। ऐसा वेदांत का स्पष्ट उद्घोष है।किसी भी बहाने भगवती का निरंतर कीर्तन करने वाला व्यक्ति सांसारिक बंधन से मुक्त हो जाता...
भगवती में पूर्ण निष्ठा और तत्परता रखनी चाहिए। ऐसा वेदांत का स्पष्ट उद्घोष है।किसी भी बहाने भगवती का निरंतर कीर्तन करने वाला व्यक्ति सांसारिक बंधन से मुक्त हो जाता है। यह प्रवचन आचार्य विजय प्रकाश महाराज ने शुक्रवार को धालभूम क्लब साकची में नौ दिवसीय श्री अंबा यज्ञ नवकुंडात्मक सहस्त्रचंडी महायज्ञ एवं श्रीमद देवी भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में दिया। आचार्य ने हिमालय को देवी गीता का उपदेश, मां पार्वती का प्राकट्य और शिव पार्वती विवाह महोत्सव कथा प्रसंग सुनाते हुए कहा कि जब देवी ने हिमालय के यहां मैना के गर्भ से जन्म लिया तो हिमालय ने देवी को प्रणाम किया और उनसे ब्रह्मविद्या प्रदान करने का अनुरोध किया। आचार्य ने कहा कि पार्वती ने अपने पिता को उपदेश दिया जो देवी गीता या भगवती गीता कहा जाता है। पार्वती हिमनरेश हिमावन तथा मैनावती की पुत्री और भगवान शंकर की पत्नी हैं। उमा, गौरी भी पार्वती के ही नाम हैं। यह प्रकृति स्वरूपा हैं। पार्वती के जन्म का समाचार सुनकर देवर्षि नारद हिमनरेश के घर आए थे। हिमनरेश के पूछने पर देवर्षि नारद ने पार्वती के विषय में यह बताया कि तुम्हारी कन्या सभी सुलक्षणों से सम्पन्न है तथा इसका विवाह भगवान शंकर से होगा। लेकिन महादेव जी को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए तुम्हारी पुत्री को कठिन तपस्या करना होगा। शिव पार्वती विवाह महोत्सव प्रसंग सुनाते हुए गुरुजी ने बेटी बचाने का आग्रह किया। भगवान शंकर और पार्वती जी का विवाह का प्रसंग बहुत मंगलकारी है। इस कथा को सुनने वाले का मनोरथ पूरा होता है। सत्य ही शिव है और शिव ही सत्य है। जीवन के अटल सत्य मृत्यु को भगवान शिव ने अंगीकार किया। तभी उन्हें भष्म प्रिय है। यह विधाता का मानव के लिए संदेश भी है। महाराज ने आगे कहा कि जिस प्रकार शिव का विवाह पार्वती के साथ हुआ, ऐसे ही हमारे जीवन में आत्मा का विवाह परमात्मा से होना चाहिए। ताकि हम भी शिव के चरणों में जा सकें और मोक्ष को प्राप्त कर सकें। कथा के दौरान शिव पार्वती विवाह महोत्सव की झांकियांयों ने सबको मोहित किया। 31 यजमानों ने श्री अम्बा यज्ञ नव कुंडात्मक सहस्त्रचंडी महायज्ञ किया।