टैगोर सोसाइटी में चित्रकारों ने दिखाए समाज के कई रंग
द टैगोर सोसाइटी में आर्ट वर्कशॉप के दूसरे दिन पूर्ववर्ती छात्रों और शिक्षकों की कलाकृतियों का प्रदर्शन किया गया। इसमें रंगों की विविधता, लोककला और प्राकृतिक चित्रण शामिल थे। कलाकारों ने अपनी अनूठी...

द टैगोर सोसाइटी परिसर में शनिवार को आर्ट वर्कशॉप के दूसरे दिन पूर्ववर्ती छात्रों और शिक्षकों की कलाकृतियां प्रदर्शित की गईं। इनमें ज्यादातर प्रतिभागियों ने कला की औपचारिक शिक्षा टैगोर स्कूल ऑफ आर्ट्स से प्राप्त की है। प्रत्येक कलाकार की शैली और कथा वस्तु एक-दूसरे से अलग दिखी। द टैगोर स्कूल ऑफ आर्ट्स से शिवलाल महतो, अशोक माइति, अनूप सिन्हा, मानगो ओल्ड पुरुलिया से मो. शफीक अहमद, केरला पब्लिक स्कूल से माणिक शॉ, विशेंद्र नारायण सिंह, तापोश्री राय, प्रमित सेठ, पंकज कुमार पाल, अरुण कुमार सिन्हा, सुजाता, रविश शॉ, राधानाथ मल्लिक, दिवांशु शेखर ने अपनी-अपनी कलाकृति लगाई है।
अरुण कुमार सिन्हा के चित्रों में रंगों का आधिक्य था तो प्रमित सेठ के चित्रों में लोककला की संरचनाएं थीं। इसमें विभिन्न प्रकार के माध्यमों का उपयोग किया गया था। सुजाता के चित्रों में एक स्त्री अकेली बैठी चिट्ठी पढ़ती दिख रही है। चित्र का ऊपरी हिस्सा आसमानी रंग का था। दिवांशु के चित्रों में प्रकृति की अनुपम छटा दिख रही थी। हाथी में इस्तेमाल किया गया मेजेंटा रंग इमोशनल बैलेंस कर रहा था। मानगो ओल्ड पुरुलिया के शफीक अहमद ने चित्रों के जरिए एक बच्चे को जी तोड़ मेहनत करते हुए दिखाया। माणिक शॉ के चित्रों में एक महिला वाद्य यंत्र के बगल में खड़ी ऐसा लग रही है मानो नृत्य के लिए उतावली हो। राधा मल्लिक का स्कल्पचर गुलाम भारत की पीड़ा बयां कर रहा था। युवक के बंधे हाथ इस बात को दर्शा रहे थे कि आज भी हम किसी न किसी रूप में गुलाम हैं। शिक्षक अनूप के चित्रों में कलाकृति की अलग विधा का इस्तेमाल है, जिसे लेटेस्ट फॉक आर्ट के नाम से जाना जाता है। रविवार को वर्कशॉप का समापन होगा।
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