बोले हजारीबाग : हमारे लिए भी पर्व है सर! बकाया मानदेय का भुगतान करवा दीजिए
सरकार की मनरेगा योजना को लागू हुए 17 साल हो चुके हैं, जिसने गरीबों के जीवन में सुधार लाया है। हालांकि, मनरेगा कर्मियों को पिछले आठ महीनों से मानदेय नहीं मिला है। उन्हें ईपीएफ और बीमा जैसी बुनियादी...

सरकार की महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा को लागू हुए 17 वर्ष पूरे हो चुके हैं। यह योजना गरीब वर्ग के जीवन में बड़ा बदलाव लेकर आई और संकट के समय—जैसे आर्थिक मंदी या महामारी—करोड़ों परिवारों के लिए सहारा बनी। गांवों में रोजगार और विकास के क्षेत्र में यह योजना सबसे प्रभावशाली साबित हुई है। लेकिन वर्षों बाद भी मनरेगा कर्मी खुद उपेक्षा के शिकार हैं। उन्हें समय पर मानदेय नहीं मिलता, ईपीएफ और बीमा जैसी बुनियादी सुविधाएं अभी तक नहीं मिली हैं। हिन्दुस्तान के बोले हजारीबाग कार्यक्रम में लोगों ने प्रशासन से समाधान की मांग की। हजारीबाग। सरकार की महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा को लागू हुए सत्रह वर्ष बीत चुके हैं।
इस योजना ने गांव और गरीब मजदूर वर्ग के जीवन में बड़ा परिवर्तन लाया है। जब देश में आर्थिक संकट या महामारी जैसी स्थिति आई तब मनरेगा ने करोड़ों परिवारों के लिए जीवनरेखा का काम किया। यह योजना इस मायने में भी विशेष रही है कि मजदूरों को काम के बदले सीधे उनके बैंक खाते में भुगतान की व्यवस्था की गई जिससे बिचौलियों की भूमिका समाप्त हो गई। दुर्गम पहाड़ी और सुदूरवर्ती इलाकों में भी जहां सरकारी अधिकारी कभी कभार ही पहुंच पाते हैं वहां मनरेगा कर्मी हर दिन पहुंचकर विकास कार्यों को अंजाम देते हैं। इन कर्मियों ने ग्रामीणों को न केवल काम दिलाया बल्कि आत्मनिर्भरता की राह पर भी आगे बढ़ाया है। हालांकि इस योजना की रीढ़ माने जाने वाले कर्मी खुद आज आर्थिक संकट में हैं। हजारीबाग जिले के 16 प्रखंडों में से विष्णुगढ़ और डाडी प्रखंड के मनरेगा कर्मियों को पिछले आठ माह से मानदेय नहीं मिला है जबकि अन्य 14 प्रखंडों में अगस्त और सितंबर माह का भुगतान अब तक नहीं किया गया है। राज्य सरकार ने दुर्गा पूजा को देखते हुए 25 सितंबर तक सभी कर्मियों को वेतन भुगतान करने का आदेश जारी किया था, लेकिन इसका पालन नहीं हुआ। जिले में बीपीओ एई जेई असिस्टेंट अकाउंटेंट कंप्यूटर ऑपरेटर और रोजगार सेवक कार्यरत हैं। इन कर्मियों के सामने रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करना कठिन हो गया है। बच्चों की पढ़ाई और परिवार के भरण पोषण पर संकट मंडरा रहा है। कई कर्मी ऐसे भी हैं जिन्हें घर चलाने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है। कर्मियों का कहना है कि वे दिन रात मेहनत करते हैं और ग्रामीणों तक योजनाओं को पहुंचाते हैं लेकिन जब समय पर मेहनताना नहीं मिलता तो परिवार की खुशियां दुख में बदल जाती हैं। मनरेगा कर्मियों का दर्द यह भी है कि उन्हें आज भी बेहद कम मानदेय दिया जा रहा है। श्रम विभाग ने न्यूनतम मासिक मजदूरी 26500 रुपये तय की है लेकिन रोजगार सेवकों को केवल 12000 रुपये महीना दिया जाता है। इतनी कम राशि में परिवार चलाना और बच्चों की पढ़ाई कराना मुश्किल है। मनरेगा कर्मियों के लिए न तो कोई सामाजिक सुरक्षा है और न ही स्वास्थ्य बीमा। अगर कोई कर्मी बीमार पड़ता है या उसकी मृत्यु हो जाती है तो उसके परिवार को सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिलती। जबकि मनरेगा मजदूरों के लिए बीमा का प्रावधान है लेकिन कर्मियों को उससे वंचित रखा गया है। सबसे बड़ी शिकायत यह है कि मनरेगा में कार्यरत कर्मियों का अभी तक ईपीएफ खाता नहीं खोला गया है। सत्रह वर्षों से सेवा देने के बाद भी उनकी वेतन से ईपीएफ की कटौती नहीं हो रही है। किसी भी संस्था में काम करने वाले को यह सुविधा तुरंत मिल जाती है लेकिन मनरेगा कर्मियों को इसका लाभ आज तक नहीं मिला। मनरेगा मूल रूप से मांग आधारित योजना है लेकिन अब इसे टारगेट आधारित बना दिया गया है। राज्य से तय लक्ष्यों के अनुसार ही कार्य करवाया जाता है। जिससे ग्रामीणों की रुचि व स्थानीय जरूरतों की अनदेखी हो रही है। ग्रामीण अपनी पसंद का काम मांगते हैं, लेकिन उन्हें ऊपर से तय योजनाओं में काम करना पड़ता है। इससे कई बार मजदूरों की भागीदारी घटती जा रही है। जल्द भुगतान का आश्वासन मनरेगाकर्मियों की आर्थिक स्थिति को देखते हुए प्रशासन ने जल्द राहत देने की बात कही है। डीडीसी इश्तियाक अहमद ने बताया कि जिले को आवंटन प्राप्त हो चुका है और जिन प्रखंडों में तकनीकी दिक्कतें हैं, उन्हें दूर किया जा रहा है। प्रयास है कि दीपावली से पहले सभी प्रखंडों के मनरेगा कर्मियों का बकाया मानदेय भुगतान कर दिया जाए। प्रशासन ने भरोसा दिलाया है कि इस बार किसी कर्मी को वेतन के लिए इंतजार नहीं करना पड़ेगा और भविष्य में नियमित भुगतान सुनिश्चित किया जाएगा। तकनीकी कारणों से हो रही देरी डीएसीपी, एनएनएस प्रणाली के तहत वेरीफिकेशन की प्रक्रिया आटोमेटिक है, परंतु कई प्रखंडों में यह प्रक्रिया फेल हो रही है। इसी कारण कर्मियों का मानदेय महीनों से अटका हुआ है। अब एसएनए स्पर्श नामक नई प्रणाली लागू की जा रही है, जिसके माध्यम से ट्रेजरी भुगतान किया जाएगा। मनरेगा डीपीओ प्रभात रंजन ने कहा कि जैसे ही ट्रेजरी स्तर पर प्रक्रिया पूरी होगी, कर्मियों को उनका बकाया मानदेय मिल जाएगा। प्रशासन ने दावा किया है कि नई प्रणाली से भविष्य में भुगतान में देरी नहीं होगी। न्यूनतम मजदूरी से भी कम आय श्रम विभाग द्वारा तय न्यूनतम मासिक मजदूरी 26500 रुपये है, लेकिन मनरेगा में कार्यरत रोजगार सेवकों को सिर्फ 12000 रुपये प्रति माह मिलता है। इतने कम मानदेय में परिवार का खर्च चलाना और बच्चों की पढ़ाई कराना कठिन होता जा रहा है। महंगाई के इस दौर में यह राशि बेहद कम है। कर्मियों का कहना है कि उन्हें अपने हक का उचित वेतन मिलना चाहिए ताकि वे अपने परिवार का सम्मानपूर्वक भरण पोषण कर सकें और सरकारी योजनाओं में और बेहतर प्रदर्शन कर सकें। दो प्रखंड में आठ माह से नहीं हुआ मानदेय भुगतान मनरेगा योजना गरीबों और मजदूरों के जीवन में सुधार लाने के लिए शुरू की गई थी। इसने गांवों में रोजगार और विकास का बड़ा आधार तैयार किया। लेकिन सत्रह वर्ष बीत जाने के बाद भी मनरेगाकर्मियों को उनका हक नहीं मिल पाया है। विष्णुगढ़ और डाडी प्रखंड के कर्मियों को आठ माह से मानदेय नहीं मिला है। जबकि अन्य प्रखंडों में अगस्त और सितंबर का भुगतान लंबित है। कर्मियों की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि वे सरकारी योजनाओं को धरातल तक पहुंचाते हैं, लेकिन अपने वेतन के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता है। ईपीएफ, बीमा और सामाजिक सुरक्षा जैसी सुविधाएं अब तक नहीं दी गई हैं। इससे मनरेगाकर्मियों को काफी परेशानी होती है। सरकारी सहायता नहीं मनरेगाकर्मी सत्रह वर्षों से लगातार काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अब तक ईपीएफ और बीमा जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं दी। यदि कोई कर्मी बीमार पड़ता है या आकस्मिक मृत्यु हो जाती है, तो उसके परिवार को कोई सरकारी सहायता नहीं मिलती। जबकि मनरेगा मजदूरों के लिए बीमा का प्रावधान है, कर्मी अब भी वंचित हैं। कर्मियों की मांग है कि सामाजिक सुरक्षा व भविष्य निधि का लाभ दिया जाए। जिले को आवश्यक आवंटन प्राप्त हो चुका है। जिले के किसी भी प्रखंड में तकनीकी समस्या होने पर उसे दूर किया जाएगा और दीपावली से पहले मनरेगा कर्मियों का मानदेय भुगतान कर दिया जाएगा। सभी कर्मियों को जल्द ही उनके वेतन की पूरी राशि प्राप्त होगी और उन्हें किसी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा। -इश्तियाक अहमद, उप विकास आयुक्त, हजारीबाग डीएसीपी एनएनएस से वेरीफिकेशन ऑटोमेटिक होता है। विष्णुगढ़ और डाड़ी प्रखंड का वेरीफिकेशन नहीं होने के कारण पिछले आठ माह से मानदेय का भुगतान नहीं हो पाया है। अब नया सिस्टम एसएनए स्पर्श के माध्यम से लागू होगा, जिसका कार्य ट्रेज़री में जारी है। बहुत ही जल्द मनरेगा कर्मियों का मानदेय भुगतान कर दिया जाएगा। -प्रभात रंजन, मनरेगा डीपीओ, हजारीबाग विगत वर्ष सरकार, मनरेगा कर्मियों के बीच हुए समझौते में 30% मानदेय वृद्धि व सामाजिक सुरक्षा के तहत स्वास्थ्य बीमा व मृत्यु के बाद एक मुश्त राशि देने की सहमति हुई थी। परंतु लागू नहीं हुआ है। -जितेंद्र कुमार, जिला अध्यक्ष आठ माह से मनरेगा कर्मियों को मानदेय का भुगतान नहीं हुआ है। अल्प वेतनभोगी कर्मियों की स्थिति बेहद विकट हो गई है। परिवार चलाने में कठिनाई हो रही है और जीवनयापन प्रभावित है। -युगेश कुमार, जिला कोषाध्यक्ष: मनरेगा योजना ग्रामीण मजदूरों की मांग आधारित योजना थी, किंतु अब इसे लक्ष्य आधारित बना दिया गया है। ऊपर से तय परियोजनाओं के दबाव में काम कराया जाता है, जिनमें ग्रामीणों की रुचि नहीं होती है। -संजय पासवान मनरेगा में लचीलापन लाना अत्यंत आवश्यक है। नए नियम, कानून और कार्य पद्धतियों का प्रयोग केवल मनरेगा में ही किया जाता है। यह गरीबों की योजना है, अतः इसमें सहजता बनी रहनी चाहिए। -सुबोध कुमार सिंह मनरेगा विश्व की सबसे बड़ी गरीबों की योजना है। यह मजदूरों को सीधे उनके बैंक खातों में भुगतान की सुविधा देती है। कोरोनाकाल में यह प्रवासी मजदूरों के लिए रामबाण साबित हुई। -मोहम्मद फिरोज आलम मनरेगा कर्मियों को न्यूनतम वेतन 26,500 रुपये मिलना चाहिए। उनका कार्यक्षेत्र निरंतर भ्रमण वाला होता है, जो कठिन है। इसलिए उन्हें अलग से यात्रा भत्ता एवं मोबाइल भत्ता मिलना आवश्यक है। -बिनोद कुमार मनरेगाकर्मी ग्रामीण जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। वे मजदूरों और आम लोगों से परिवार जैसा संबंध रखते हैं। कार्य के अतिरिक्त भी ग्रामीणों की मदद में सदैव आगे रहते हैं। सेवा कार्य में उन्हें गर्व की अनुभूति होती है। -उपेंद्र कुमार सालों से कार्यरत मनरेगा कर्मियों का ईपीएफ अब तक नहीं काटा गया है। यह उनकी सामाजिक सुरक्षा के लिए आवश्यक है। जॉइनिंग तिथि से ईपीएफ जोड़कर देय राशि का भुगतान किया जाए। -रिजवान अंसारी पूर्व में दलपति को पंचायत सचिव पद पर समायोजित किया गया था। उसी तर्ज पर मनरेगा कर्मियों को ग्रामीण विकास विभाग में समायोजित किया जाए। कई वर्षों की सेवा के बाद यह न्यायसंगत कदम होगा। -कामेश्वर पांडेय मनरेगाकर्मियों को क्षेत्र में दबंग और बाहुबली तत्वों से जूझना पड़ता है। कई बार अत्यंत विकट परिस्थिति में कार्य करना पड़ता है। सरकार ऐसी सुरक्षा व्यवस्था बनाए जिससे कोई कर्मियों को धमका न सके। -बालेश्वर साव महंगाई तेजी से बढ़ रही है, परंतु 17 वर्षों में कर्मियों का मानदेय कम बढ़ा है। एक सम्मानजनक गृहस्थी चलाने योग्य वेतन दिया जाए। ताकि परिवार का भरण-पोषण और बच्चों की शिक्षा सुचारु रूप से हो सके। -राजीव कुमार इंद्रगुरु छोटी-मोटी भूलों पर मनरेगा कर्मियों को बर्खास्त करना अनुचित है। 17 वर्षों की सेवा के बाद भी अस्थिरता बनी हुई है। ऐसी मनमानी बर्खास्तगी पर रोक लगनी चाहिए। सरकार स्थायी नीति बनाकर कर्मियों को संरक्षण दे। -किशोर कुमार
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