ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News झारखंड हज़ारीब़ागनहीं मिला घर जाने का कोई साधन तो ठेला को ही ले रवाना हुए मुंगेर

नहीं मिला घर जाने का कोई साधन तो ठेला को ही ले रवाना हुए मुंगेर

बिहार, झारखंड के अधिकांश लोग दूसरे प्रदेशों में जाकर मेहनत-मजदूरी का काम करते हैं और अपने परिजनों के लालन-पालन करते हैं। इन्हीं मज़दूरों के साथ इस कोरोना काल मे सबसे ज्यादा परेशानी आ खड़ी हुई है। लंबे...

नहीं मिला घर जाने का कोई साधन तो ठेला को ही ले रवाना हुए मुंगेर
हिन्दुस्तान टीम,हजारीबागSat, 23 May 2020 08:53 PM
ऐप पर पढ़ें

बिहार, झारखंड के अधिकांश लोग दूसरे प्रदेशों में जाकर मेहनत-मजदूरी का काम करते हैं और अपने परिजनों के लालन-पालन करते हैं। इन्हीं मज़दूरों के साथ इस कोरोना काल मे सबसे ज्यादा परेशानी आ खड़ी हुई है। लंबे समय से लॉक डाउन लगा हुआ है। उन्हें इतना लंबा लॉक डाउन का अंदेशा भी नहीं था। इस दौरान उन्होंने अपनी जमा कमाई की राशि से प्रदेशों में पेट पाला। अब उन बेघर मज़दूरों की पीड़ा उनकी अंतरात्मा से फुट पड़ा है। एक ओर अपनी चिंता तो दूसरी ओर अपने घर परिवार की चिंता उन्हें अंदर ही अंदर कुंठा देने लगी है। ऐसे ही दो मज़दूर शनिवार को एन एच 100 में दिखे। ये राउरकेला में ठेला चलाकर अपनी कमाई करते हैं। ये हैं 40 वर्षीय सीताराम यादव और 50 वर्षीय सुरेश प्रसाद । ये बिहार के रानियां गांव के निवासी हैं,जो टटिया बम्मर प्रखंड ,जिला मुंगेर में पड़ता है। इनके आखों में घर-परिवार से जल्दी मिलने की उत्कंठा की वजह से भूख भी इनके मार्ग का रोड़ा नहीं बन सका। इन्होंने बताया कि हमारे सामने एक ही लक्ष्य है अपने परिवार से मिलना। घर मे छोटे-छोटे बच्चे हैं,उनकी क्या स्थिति है यह सोच कर विचलित हो गया हूँ। पूछने पर बताया कि चूड़ा सत्तू लेकर चला हूं। वही खाकर बुधवार से निकला हूं। बताया कि लगभग 500 किलोमीटर अपना गांव ,राउरकेला से पड़ता है और वे 265 किलोमीटर इन चार दिनों में ठेला चला चुके हैं। बताया कि दो दिन में वे घर पहुंच ही जायेंगे।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें