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आदिवासी संस्कृति और वाद्य यंत्रों को बचाने की मुहिम में जुटे हैं दुर्गा प्रसाद हांसदा

चाकुलिया प्रखंड की बर्डीकानपुर-कालापथर पंचायत के माछकांदना गांव के रासीटोला के युवा दुर्गा प्रसाद हांसदा विलुप्त हो रही आदिवासी संस्कृति और वाद्य...

आदिवासी संस्कृति और वाद्य यंत्रों को बचाने की मुहिम में जुटे हैं दुर्गा प्रसाद हांसदा
हिन्दुस्तान टीम,घाटशिलाThu, 09 Feb 2023 02:40 AM
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चाकुलिया प्रखंड की बर्डीकानपुर-कालापथर पंचायत के माछकांदना गांव के रासीटोला के युवा दुर्गा प्रसाद हांसदा विलुप्त हो रही आदिवासी संस्कृति और वाद्य यंत्रों को बचाने की मुहिम में पिछले 10 साल से जुटे हैं। वे आदिवासियों के प्रमुख प्राचीन वाद्य यंत्र केंद्री और बांसुरी का निर्माण करते हैं। अपने घर में बच्चों को केंद्री और बांसुरी बजाने का प्रशिक्षण भी देते हैं। उनके द्वारा निर्मित केंद्री की डिमांड देश के बड़े शहरों समेत विदेशों में भी है। केंद्री और बांसुरी बनाकर बेचना उनके रोजगार का साधन भी है। केंद्री का निर्माण वे गम्हार की लकड़ी, नारियल, बकरे के चमड़ा और घोड़े के बाल से करते हैं। केंद्री की आपूर्ति जर्मनी, बांग्लादेश और श्रीलंका में भी हुई है। देश के कोलकाता और मुंबई जैसे महानगरों में तथा राखी जैसे शहरों में भी है। आमतौर पर दुर्गा प्रसाद अपने द्वारा निर्मित केंद्री को झारखंड और पश्चिम बंगाल के विभिन्न मेलों में ले जाकर बेचते हैं। केंद्री की कीमत 1000 रूपये से लेकर 3000 रूपये तक है। वहीं बांसुरी की कीमत प्रति पीस 150 से 200 रुपए तक है। उनके घर में सप्ताह में दो दिन 15 से 20 बच्चे आते हैं और वे इन बच्चों को नि: शुल्क केंद्रीय और बांसुरी बजाने का प्रशिक्षण देते हैं। दुर्गा प्रसाद हांसदा करते हैं कि आदिवासी संस्कृति और वाद्य यंत्र अनोखे हैं। परंतु आज बदलते समय के साथ आदिवासी संस्कृति और वाद्य यंत्र धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं। आधुनिकता के रंग में रंगी युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति और वाद्य यंत्रों से विमुख हो रही है। ऐसे में आदिवासी संस्कृति और वाद्य यंत्रों को बचाए रखने की चुनौती है। वे पिछले 10 साल से आदिवासी संस्कृति और वाद्य यंत्रों को बचाने की मुहिम में जुटे हुए हैं। केंद्री का निर्माण करना बड़ा ही कठिन है। इसका निर्माण करने में कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। महंगाई के कारण लकड़ी और अन्य वस्तुओं की कीमत में वृद्धि हुई है। इसलिए केंद्री और बांसुरी की कीमत में वृद्धि करनी पड़ रही है। उनका प्रयास है कि आदिवासी संस्कृति और वाद्य यंत्र जीवित रहे और आदिवासी अपनी संस्कृति और वाद्य यंत्रों को पहचानें।

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