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रोजगार नहीं, जलावन की लकड़ियां बेचकर चलता है पेट

गांव में रोजगार के साधन नहीं हैं। दिहाड़ी मजदूरी पर भी काम नहीं मिलता। रोजी रोटी के लिए गांव से सूखी लकड़ियां लाकर उसे बाजार में बेचते हैं। उससे जो रुपए मिलते हैं, उससे ही घर का खर्च चलता...

रोजगार नहीं, जलावन की लकड़ियां बेचकर चलता है पेट
हिन्दुस्तान टीम,गढ़वाTue, 08 May 2018 11:31 PM
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गांव में रोजगार के साधन नहीं हैं। दिहाड़ी मजदूरी पर भी काम नहीं मिलता। रोजी रोटी के लिए गांव से सूखी लकड़ियां लाकर उसे बाजार में बेचते हैं। उससे जो रुपए मिलते हैं, उससे ही घर का खर्च चलता है। सरकार और प्रशासन का रोजगार देने का दावा प्रखंड मुख्यालय से महज चार किलोमीटर दूर आदिम जनजाति बहुल चौकड़ी गांव पहुंचते-पहुंचते फुस्स हो जाता है। गांवों में रोजगार सृजन के दावों का यह जमीनी हकीकत है। गांव में 500 परिवार हैं। हर परिवार जंगल से लकड़ी चुनकर लाना और उसे बाजार में बेचने के धंधे से जुड़ा है। ग्रामीणों की मुश्किलें यहीं नहीं ठहरती। सड़क, सिंचाई, शिक्षा की स्थिति भी बदतर है। गांव के रामजी राम, राज किशोर राम, बुद्ध नारायण राम, प्रदीप साह, सुनिल राम, शंकर राम, नान्हु राम बताते हैं कि आजादी से अबतक गांव की हालत नहीं सुधरी। पंचायती राज व्यवस्था के बाद भी गांव के विकास के लिए कारगर योजनाएं नहीं बनीं। गांव में सड़क की सुविधा नहीं है। गांव तक पहुंचने के लिए दहगड़िया नदी बड़ी रुकावट है। पुल बन जाने से जीवन की मुश्किलें कम होती। सांसद और विधायक से भी पुल बनाने की मांग की गई पर नहीं बना। राज कुमार राम, पवन राम, जग्गु राम, दौलत भुइयां, बैजनाथ राम, मोहन राम, सौरट राम बताते हैं कि विकास कार्यों को लेकर हस्तक्षेप करने पर केस की धमकी दी गई। डर से सभी चुप हैं। गांव की शांति देवी, चिंता देवी, रीता देवी, कौशल्या देवी, मनवा देवी, सरिता देवी, लीलावती देवी, बसंती देवी, जितनी देवी बताती हैं कि स्कूल में पढ़ाई ठीक नहीं होने की वजह से उन्हें अपने बच्चों को दूसरे स्कूल में भेजते हैं। गांव के स्कूल को लेकर बीआरसी कार्यालय में शिकायत की गई पर कोई फर्क नहीं पड़ा।

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