जिले के स्कूलों में आगजनी पर तत्काल नियंत्रण की न व्यवस्था है, न ही सजगता
नौनिहालों को जीवन जीने का ककहारा सीखाने वाले स्कूल-संस्थान,किसी आगजनी को लेकर उस पर नियंत्रण के लिए कितना तैयार है इसका पर्यवेक्षण-मॉनिटरिंग जरूरी...
गुमला प्रतिनिधि। नौनिहालों को जीवन जीने का ककहारा सीखाने वाले स्कूल-संस्थान,किसी आगजनी को लेकर उस पर नियंत्रण के लिए कितना तैयार है इसका पर्यवेक्षण-मॉनिटरिंग जरूरी है। एक दिन पूर्व राजधानी के एक स्कूल में आगजनी के बाद अफरा-तफरा की स्थिति व अग्निशमन वाहन के आने के उपरांत पर नियंत्रण भले बच्चों के अभिभावकों को सुकून देने वाला साबित हुआ,लेकिन इस सब के बीच जिलास्तर पर तमाम स्कूलों में संभावित आगजनी पर तत्काल काबू के लिए स्कूलों में बहाल को खंगाला व स्कूल प्रबंधन को सचेत करना जरूरी है। जिले में प्राइमरी से हाईस्कूल तक के 1670 सरकारी स्कूल है। प्राइमरी के 756,मिडिल 463 व हाईस्कूल स्तर के 112स्कूलें संचालित है। कहीं भी संभावित आगजनी पर तत्काल नियंत्रण को लेकर न व्यवस्था न ही इसको लेकर सजगता। वर्ष 2007-08 में सभी सरकारी स्कूलों में सिलिंडर वाली लिक्विड भरी फायर उपस्कर उपलब्ध करायी गयी थी। करीब डेढ़ दशक बाद अब स्कूलों में फायर कंट्रोल वाली वह सिलिंडर दिखती भी नहीं है। और न ही इसकों लेकर शिक्षा विभाग की ओर से मॉनिटरिंग की जा रही है। सभी जानते है कि लिक्विड वाली फायर सिलिंडर तय समय सीमा तक कारगर होता है। और नियमित रूप से इसका पर्यवेक्षण व बदलाव के सहारे ही इसे कारगर माना जा सकता है। किसी स्कूल के स्टोर रूम में सुरक्षित रखे गये सिलिंडर भी निष्क्रीय ही होगें। दूसरी ओर शिक्षा विभाग के पास फायर पर कंट्रोल के लिए स्कूलों में उपलब्ध सुविधाओं की अद्यतन जानकारी नहीं है। मिडिया द्वारा उठायें गये आगजनी की संभावित खतरे पर चिंता व उससे बचाव पर तैयारी के सवाल पर अब जरूर कागजी पन्नें दौड़ने लगेगी। दूसरी ओर जिले में संचालित प्राइवेट स्कूलों में फायर कंट्रोल को लेकर तैयारी दिखती है। करीबन सभी प्राइवेट स्कूलों में अग्निशमन यंत्र की उपलब्धता बहाल है। इन्हें तो रखना ही होगा,क्योंकि इसके लिए तो फायर डिपार्टमेंट को सर्टिफिकेट जरूरी है। न केवल फायर,बल्कि क्वालिटी पेयजल,स्कूल तक अग्निशमन वाहन की सहज पहुंच सहित तमाम बुनियादी-जरूरी सुविधाओं की उपलब्धता दिखानी होगी।
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