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श्रावणी मेला नहीं लगने से सूप-डाला बनाने वाले कारीगरों में छायी मायूसी

श्रावणी मेला में सूप-डाला बेचकर हो जाती थी अच्छी कमाई काठीकुंड। कोरोना संक्रमण के कारण इस बार श्रावणी मेला बासुकीनाथ धाम में नहीं लगने पर सूप-डाला बनाने वाले कारीगरों में मायूसी छा गई है। सूप-डाला...

श्रावणी मेला नहीं लगने से सूप-डाला बनाने वाले कारीगरों में छायी मायूसी
हिन्दुस्तान टीम,दुमकाSun, 05 Jul 2020 02:15 AM
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कोरोना संक्रमण के कारण इस बार श्रावणी मेला बासुकीनाथ धाम में नहीं लगने पर सूप-डाला बनाने वाले कारीगरों में मायूसी छा गई है। सूप-डाला बनाकर एक माह में कारीगर अच्छी कमाई कर लेते थे,पर इस बार कमाई की कोई उम्मीद नहीं है। काठीकुंड प्रखंड मुख्यालय से महज 4 किलोमीटर पर स्थित बड़तल्ला पंचायत अंतर्गत आदिवासी बाहुल्य कुसम्बा गांव के अधिकांश लोग बांस के बर्तन बना कर अपना जीवन यापन कर रहे है।

हाथ में हुनर है,लेकिन पूंजी नहीं है। सरकारी सहायता के अभाव में ये व्यवसायियों से अग्रिम रुपया लेकर बांस के सूप, डलिया आदि बनाते है, लेकिन व्यवसायी इन कारीगरों से कम दाम में खरीदकर कर पश्चिम बंगाल, बिहार ले जाकर अच्छी कीमत में बिक्री करते है। यह काम यहां पूर्वजों से चला आ रहा है,लेकिन पूंजी के अभाव में आज भी गरीबी है, जो किसी तरह परिवार का भरण पोषण कर लेते है। रोसमेल मोहाली,मीरू मोहलीन, करीना मोहलीन ने बताया कि छठ पर्व के अवसर पर अधिक मात्रा में बांस के बर्तन तैयार किया जाता है। व्यवसायी घर से ही खरीद कर दुमका सहित बंगाल,बिहार ले जाकर बेच कर दोगुना लाभ कमाते है,लेकिन सावन के उपलक्ष्य में वे महाजन से पूंजी लेकर समान तैयार कर बासुकीनाथ में बेच कर साल भर का कमाई कर लेते है, लेकिन इस वर्ष लॉक डाउन के कारण मेला नहीं लगने से उनके सामने विकट समस्या उतपन्न हो गयी है।

सोनिया मरांडी खुद इंटर की पढ़ाई करने के साथ ही बांस का बर्तन बनाकर दिन भर में 100 रुपया कम लेती है। पांचवीं वर्ग की दस वर्षीय पिंकी विद्यालय अवधि के बाद इसी काम में अपने परिजनों को मदद कर वे भी दिन में 50 से 100 रुपया रोजगार कर परिवार चलाने में सहयोग करती है। इन्होंने बताया कि मंहगाई के इस दौर में बांस भी महंगा खरीदना पड़ता है,जिससे उनकी आमदनी प्रभावित हुई है। इन्हें उम्मीद है तो सिर्फ सरकारी सहायता की जिससे ये बृहत रूप में समान तैयारी कर स्वयं बाजार में इसकी बिक्री कर सके एवं पहले से पूंजी देकर मनमाने दाम पर सामानों की खरीददारी करने वाले व्यवसाइयों के बंधन से मुक्ति मिले।

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