मानव कल्याण के लिए अवतरित होते हैं भगवान: दीनानाथ
ईश्वर परम सत्य है, जिस प्रकार तार में बिजली दिखाई नहीं देती है, उसी प्रकार जीवों के शरीर में विद्यमान परमात्मा भी दिखाई नहीं देता...
ईश्वर परम सत्य है, जिस प्रकार तार में बिजली दिखाई नहीं देती है, उसी प्रकार जीवों के शरीर में विद्यमान परमात्मा भी दिखाई नहीं देता है। उक्त बातें श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन वृंदावन से आए आचार्य दीनानाथ ने कहीं। मनईटांड़ में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा का रसपान कराते हुए उन्होंने नरसिंह अवतार प्रसंग की विवेचना की। नरसिंह अवतार की कथा सुनकर श्रोता भावविभोर हो गए। कहा कि जब-जब जीवों पर अत्याचार बढ़ा है, तब-तब भगवान अवतरित हुए हैं।
कथाव्यास के मुख से भक्त प्रह्लाद एवं भगवान नरसिंह अवतार की कथा बहुत ही भक्तिभाव एवं रोचकता पूर्ण कही गई। श्रीमद् भागवत कथा में उन्होंने कहा कि ताली पीटने वाला व्यक्ति जीवन में कभी माथा नहीं पीटता है। भागवत कथा के श्रवण से मानव के भीतर का साधु जागृत होता है और ईश्वर प्राप्ति के मार्ग पर आगे बढ़ता है। कथा के बीच में व्यास जी के संगीतमय भजन से श्रद्धालु श्रोता भाव विभोर हो रहे हैं।
भागवत में शरीर को आत्मा का वस्त्र कहा गया है। जीव चेतन स्वरूपी है, इसीलिए उसे बहते पानी की तरह होना चाहिए। चलते रहो, रुको मत, हम है तो स्वरूप से चेतन- इसीलिए प्रेम, करुणा, दया, यही जीवन के वास्तविक भाव हैं लेकिन करुणा, प्रेम के स्थान पर घृणा व कठोरता के दुर्भाव हमारे मन में क्यों आते है क्योकि जड़ पदार्थ के प्रति हमारे आसक्ति है।