राजनीतिक स्थिति बदली तो झरिया-निरसा में सियासी टकराव भी तेज
धनबाद में विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद झरिया और निरसा में राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं। कोयला क्षेत्र में वर्चस्व की लड़ाई तेज हो गई है, जिसमें रागिनी और पूर्णिमा के समर्थकों के बीच टकराव हो रहा है।...

धनबाद, मुकेश सिंह विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद धनबाद जिले के झरिया और निरसा विधानसभा क्षेत्र में समीकरण बदल रहे हैं। कोयला बहुल इन दोनों विधानसभा क्षेत्रों में वर्चस्व की जंग शुरू हो गई है। नए साल में आर्थिक स्रोतों पर कब्जे की यह लड़ाई और तेज होगी। इसके संकेत पिछले दिनों निरसा में माले-भाजपा तथा झरिया में रागिनी-पूर्णिमा समर्थकों के बीच टकराव से मिल रहे हैं।
झरिया में पूर्व विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह की हार के बाद विधायक रागिनी सिंह के समर्थकों के हौसले बुलंद हैं। कुजामा लोडिंग प्वाइंट को लेकर मंगलवार को रागिनी और पूर्णिमा के समर्थक जिस अंदाज में आमने-सामने हुए, वह सामान्य नहीं है। दोनों के समर्थक अपनी-अपनी ट्रेड यूनियन के बैनर तले भिड़े। दर्जनों राउंड फायरिंग हुई। यह संकेत है कि आनेवाले दिनों में झरिया में आर्थिक स्रोतों पर वर्चस्व की लड़ाई नए रूप में देखने को मिलेगी। एक ही घराने की दो बहुओं के बीच की सियासी महत्वाकांक्षा पुलिस-प्रशासन के लिए चुनौती बनेगी।
कांग्रेस के टिकट पर पहली बार 2019 में पूर्णिमा नीरज सिंह झरिया सीट से जीती थी। रागिनी के समर्थकों लिए यह बड़ा झटका था। पांच वर्षों तक रागिनी के समर्थक बैकफुट पर रहे। 2024 में रागिनी झरिया सीट पर जीत दर्ज कर सिंह मेंशन के गढ़ को फिर पाले में करने में सफल रहीं। झरिया विधानसभा क्षेत्र कोयला बहुल है। कहते हैं कि कोयलांचल की राजनीति को कोयले से ऊर्जा मिलती है। कोयला क्षेत्र में लोडिंग प्वाइंट से लेकर साइडिंग तक पर राजनीतिज्ञों की नजर रहती है। इसलिए आने वाले दिनों में झरिया में आर्थिक स्रोतों को बचाने और कब्जाने के लिए टकराव के कई दौर देखने को मिलेंगे। झरिया की राजनीति में इन दो परस्पर प्रतिद्वंद्वी घरानों के सियासी चेहरे भले रागिनी और पूर्णिमा हैं, पर्दे के पीछे कई ताकतें हैं, जो कोयलांचल की राजनीति को प्रभावित करती हैं।
झरिया की तर्ज पर निरसा में भी विधानसभा चुनाव के बाद सियासी बदलाव के बाद समीकरण बदलने की जोर आजमाइश हो रही है। माले से अरूप चटर्जी विधायक बन सियासी वनवास को खत्म कर चुके हैं। निरसा अरूप का पुराना गढ़ रहा है। उनके पिता गुरुदास चटर्जी भी निरसा के विधायक रह चुके हैं। कई बार अरूप भी विधायक बने। पहली बार 2019 में निरसा सीट को जीतने में भाजपा सफल हुई थी। वैसे इस जीत को बरकरार रखने में अपर्णा सेनगुप्ता 2024 में सफल नहीं रही। अरूप समर्थक सक्रिय हैं और स्वाभाविक है कि भाजपा के साथ माले समर्थकों का टकराव देखने को मिल रहा है।
टुंडी को छोड़ जिले की सभी विधानसभा क्षेत्र कमोबेस कोयला क्षेत्र हैं। वैसे तीन विधानसभा क्षेत्र झरिया, निरसा और बाघमारा में कोयला राजनीतिक मुद्दा बनता रहा है। इन क्षेत्रों में कोयले पर जिसका जितना वर्चस्व होता है, उसकी उतनी ही ज्यादा राजनीतिक हैसियत होती है। इन विधानसभा क्षेत्रों में कोयले के कई लोडिंग प्वाइंट, साइडिंग और आउटसोर्सिंग कंपनियां हैं। असंगठित मजदूरों के बहाने इनपर कब्जा के लिए संघर्ष होता रहा है। जैसे-जैसे कोयला क्षेत्र में निजीकरण बढ़ रहा है, वर्चस्व की लड़ाई तेज हो रही है।
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