अब टेक्नोलॉजी कर रहा है मनुष्य का इस्तेमाल : सरयू राय
राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने कहा कि कोयला खनन के तरीके का प्रतिकूल असर पड़ रहा है। कोयला निकालने वाले क्षेत्रों का विनाश हुआ है। अन्य देशों में ऐसी स्थिति नहीं है। कार्य करेन वाले मशीन...
राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने कहा कि कोयला खनन के तरीके का प्रतिकूल असर पड़ रहा है। कोयला निकालने वाले क्षेत्रों का विनाश हुआ है। अन्य देशों में ऐसी स्थिति नहीं है। कार्य करेन वाले मशीन बन गए हैं। यह सोचना होगा कि आज मनुष्य का इस्तेमाल टेक्नोलॉजी कर रहा है या टेक्नोलॉजी मनुष्य का इस्तेमाल कर रहा है। आउटसोर्सिंग में टेक्नोलॉजी एक तरह से मनुष्य का इस्तेमाल ही कर रहा है। मंत्री सरयू राय शुक्रवार को कतरास कॉलेज कतरासगढ़ आयोजित कोयला खदान, पर्यावरण व प्रबंधन विषय पर राष्ट्रीय सेमिनार को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि औद्योगिक संस्कृति के बदले वैकल्पिक संस्कृति बनानी होगी। माइनिंग शुरू होते ही आसपास के क्षेत्रों का नक्शा बदल जाता है। चीजें बेतरतीब हो जाती है। इनवॉयरमेंटल हीरो नामक एक किताब की चर्चा करते हुए कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रबंधन पर ध्यान देना होगा। विकास की संस्कृति के लितए सरकार को एक नीति बनाने की जरूरत है। यह सोचना होगा कि जिसके लिए कर रहे हैं, उन्हें कितना लाभ मिलेगा। नीड बेस्ड आवश्यकता के बदले अब ग्रीड बेस्ड आवश्यकता दिखाई जा रही है। यही कारण है कि सीबीआई व आयकर का छापा भी पड़ रहा है। विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग के कुलपति डा. रमेश शरण ने कहा कि आज झरिया शहर जल रहा है। आरएसपी कॉलेज जैसे बड़े कॉलेज की दूसरी जगह पर शिफ्ट किया जा रहा है। यह इसलिए हुआ कि 50-60 साल पहले माइनिंग ठीक से नहीं किया गया। 50 साल पहले का खामियाजा आज के लोग भुगत रहे हैं। माइनिंग करने के बाद बालू की भराई नहीं हुई। आज के बदलते दौर में थ्री पी पीपुल, प्लानेट व प्रोफिट के बारे में सोचा जाता है। लेकिन तीनों के बीच बाइलेंस जरूरी है। चेतना जागृत करने की जरूरत है। बच्चों को यह बताना होगा कि सिर्फ बटन दबाने से बिजली नहीं आ जाती है। इसके पीछे कोयला खदान से लेकर थर्मल पावर प्लांट समेत अन्य जगहों पर कैसे व किस कठिनाई के साथ काम किया जा रहा है। जर्मनी में बच्चों से लेकर बड़ों को माइंस टूरिस्ट में ले जाकर बच्चों को उनकी मेहनत का अहसास दिलाया जाता है। माइनिंग में सोशल स्टडी को समझें। जर्मनी व आस्ट्रेलिया में पता तक नहीं चलता है कि यहां पर माइनिंग चल रहा है। भारत में भी इसके बारे में आम लोगों को जागृत करने की आवश्यकता है। पर्यावरण को कम से कम नुकसान हो। कतरास कॉलेज के प्राचार्य सह आयोजन समिति के अध्यक्ष डा. पीके झा ने दो दिवसीय सेमिनार के बारे में विस्तार से जानकारी दी। कार्यक्रम में प्राचार्य डा. किरण सिंह, प्राचार्य डा. एसकेएल दास, प्राचार्य डा. मीना श्रीवास्तव, डा. एसी त्रिगुनाइत, डा. एसके सिन्हा, डा. संजय कुमार सिंह समेत अन्य मौजूद थे।