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कोरोना की दूसरी लहर में कोई नहीं बन रहा गरीबों का रहबर

कोरोना संक्रमण के इस विषम परिस्थिति में दवा और ऑक्सीजन ही नहीं भूख भी एक बड़ी समस्या बनते जा रही है। बुधवार को झारखंड सरकार ने नियमों को सख्त करते...

कोरोना की दूसरी लहर में कोई नहीं बन रहा गरीबों का रहबर
हिन्दुस्तान टीम,धनबादThu, 29 Apr 2021 03:50 AM
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धनबाद मुख्य संवाददाता

कोरोना संक्रमण की इस विषम परिस्थिति में दवा और ऑक्सीजन ही नहीं भूख भी एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। बुधवार को झारखंड सरकार ने नियमों को सख्त करते हुए छह मई की सुबह छह बजे तक आंशिक लॉकडाउन की अवधि को बढ़ा दिया है। लॉकडाउन के कारण धनबाद के कई घरों में अब चूल्हा जलने पर आफत आने वाला है। लोगों के घरों में दुबकने के कारण रोजी-रोटी का संकट भी गहरा रहा है। कोरोना की दूसरी लहर में इस बार गरीबों का रहबर कोई नहीं बन रहा है।

कोरोना की पहली लहर में गरीबों की मदद के लिए चारों तरफ से हाथ बढ़े थे। जिले के सभी बड़े थानों में सामाजिक संगठनों की मदद से सामुदायिक किचन की व्यवस्था की गई थी। जहां सुबह-शाम खाने के पैकेट बांटे जाते थे। सरायढेला सहित कई थानों में दोनों वक्त बैठा कर जरूरतमंदों को भोजन कराया गया था, लेकिन संक्रमण के भयावह रूप के कारण इस बार लोगों के कदम घरों में ही ठिठक गए हैं। ऐसे में भूखे पेट कोरोना का सामना करना गरीबों के लिए मुसीबत का सबब बनते जा रहा है। आंशिक लॉकडाउन ने ठेले-खोमचे वालों के साथ-साथ दिहाड़ी मजदूरों का भी काम छीन लिया है। रिक्शा वालों को सवारी नहीं मिल रही है तो घरों में काम करने वालों से भी लोग परहेज कर रहे हैं। अभी तक तो किसी तरह उनका गुजारा चल रहा था। लेकिन छह मई तक लॉकडाउन बढ़ने और दो बजे ही दुकानें बंद होने के आदेश के बाद स्थितियां पहली लहर की तरह ही हो गई हैं।

राजनीतिक संगठन भी नहीं आ रहे आगे

जरूरतमंदों के लिए मास्क, सेनेटाइजर और दवा के साथ फोन पर डॉक्टरी सलाह उपलब्ध कराने के लिए कई सामाजिक संगठनों ने प्रयास शुरू किए हैं, लेकिन गरीबों का पेट भरने के लिए कोई भी संगठन इस बार आगे नहीं आ रहा है। सामाजिक संगठन तो दूर राजनीतिक संगठनों की भी इस दिशा में गतिविधियां अभी तक शून्य ही है। पिछले साल लॉकडाउन के दौरान सामाजिक संगठनों के साथ-साथ राजनीतिक संगठनों की ओर से कई जगहों पर आलू के साथ सूखा राशन बांटा गया था।

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