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लॉकडाउन का असर : दिल्ली में नूडल्स खा कर रहे थे यूपीएससी की तैयारी 

मैगी और नूडल्स खाकर धनबाद और आसपास के छात्र 52 दिनों से दिल्ली के हॉस्टल और लॉज में लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार कर रहे थे। गुरुवार की सुबह दिल्ली से धनबाद आई पहली स्पेशल ट्रेन से लौटे छात्रों ने...

दिल्ली से धनबाद पहुंचने के बाद लाइन में लगकर स्टेशन से निकलते यात्री।
1/ 2दिल्ली से धनबाद पहुंचने के बाद लाइन में लगकर स्टेशन से निकलते यात्री।
धनबाद स्टेशन के बाहर कैब के इंतजार में खड़े यात्री।
2/ 2धनबाद स्टेशन के बाहर कैब के इंतजार में खड़े यात्री।
मुख्य संवाददाता,धनबाद Fri, 15 May 2020 05:39 PM
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मैगी और नूडल्स खाकर धनबाद और आसपास के छात्र 52 दिनों से दिल्ली के हॉस्टल और लॉज में लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार कर रहे थे। गुरुवार की सुबह दिल्ली से धनबाद आई पहली स्पेशल ट्रेन से लौटे छात्रों ने बताया कि इन 52 दिनों में उन्हें सबसे अधिक समस्या भूख मिटाने में हुई। मेस का किचन बंद कर दिया गया था। डब्बा और टिफिन वालों की भी सर्विस बंद हो गई थी।

दिल्ली से लौटी गिरिडीह अरघा घाट की रागिनी वहां कैट की तैयारी कर रही थी। उन्होंने बताया कि जब से लॉकडाउन हुआ तब से वे अच्छा खाना खाने को तरस गईं। खुद से मैगी बनाती थीं और यही खाकर गुजारा कर रही थीं। रागिनी की तरह ही दुमका हौज खास की आरती ने बताया कि वे दो साल से दिल्ली में रह कर यूपीएसपी की तैयारी कर रही थीं। कोविड-19 के कारण दिल वालों की दिल्ली बिल्कुल थम सी गई थी। मेस का किचन बंद कर दिया गया। किसी तरह वह अपनी कुछ सहेलियों के साथ मिल कर सुबह-शाम नूडल से काम चला रही थीं। यूपीएससी की तैयारी के लिए दिल्ली गए कतरास के अभिषेक कुमार ने भी बताया कि खाने-पीने में बहुत दिक्कतें हो रही थीं। पैसा होने के बावजूद ढंग का खाना नहीं मिल रहा था। क्लेट के एंट्रेंस ट्रेस्ट की तैयारी में जुटी गोविंदपुर की अंकिता ने भी बताया कि लॉकडाउन के दिन काफी मुश्किल भरे रहे। घर आकर राहत महसूस हो रही है।

कैब के लिए मांगे- 12 रुपए प्रति किमी व 200 रुपये अलग से : दिल्ली से धनबाद पहुंचने में जितनी जद्दोजदह नहीं हुई उससे कहीं अधिक धनबाद से अपने घर पहुंचने में लोगों को जहमत उठानी पड़ी। धनबाद में रहने वाले लोगों के परिजन तो उन्हें लेने स्टेशन पहुंच गए लेकिन धनबाद से दूर रहने वाले कई लोगों को स्टेशन पर उतर कर स्वयं गाड़ियों का इंतजाम करना पड़ा। स्टेशन पर प्राइवेट कैब की व्यवस्था थी, लेकिन कैब वाले दूरी के हिसाब से प्रति किलोमीटर 12 रुपए के अलावा 200 रुपए अलग से चार्ज कर रहे थे। यानी झरिया जाने वालों से भी 320 रुपए मांगे जा रहे थे। श्रमिक और स्टूडेंट स्पेशल की तरह डुप्लीकेट राजधानी से आने वाले यात्रियों के लिए जिला प्रशासन की ओर से कोई बस या छोटी गाड़ियों का इंतजाम नहीं किया गया था। दिल्ली में रह कर सिलाई का काम करने वाले चंद्रदेव यादव को अपने पांच परिवार वालों के साथ राजधनवार जाना था। लेकिन भारी-भरकम किराया सुन उनका दम फूलने लगा। 

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