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लंका और अयोध्या में स्वार्थ व परमार्थ का अंतर : नामप्रेम

रावण की लंका और श्रीराम के अयोध्या की चेतना में स्वार्थ और परमार्थ का अंतर है। आज जरूरत है मन के रावण को हराकर राम को जीवित रखने...

लंका और अयोध्या में स्वार्थ व परमार्थ का अंतर : नामप्रेम
हिन्दुस्तान टीम,धनबादFri, 03 Apr 2020 02:29 AM
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रावण की लंका और श्रीराम के अयोध्या की चेतना में स्वार्थ और परमार्थ का अंतर है। आज जरूरत है मन के रावण को हराकर राम को जीवित रखने की। यह बात रामनवमी के अवसर पर इस्कॉन की ओर से आयोजित रामकथा में कथा व्यास नाम प्रेमदास ने कही। वह गुरुवार को इस्कॉन धनबाद द्वारा आयोजित यूट्यूब चैनल और फेसबुक लाइव पर प्रवचन कर रहे थे।

उन्होंने कथा में अयोध्या और लंका की संस्कृति को विस्तार से बताया। भगवान राम के वनवास के एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि कहा कि एक जटायु है और एक मारीच है। जटायु उम्र भर इस आस में गुजार देता है कि श्रीराम इस पथ से गुजरेंगे और वह उनका दर्शन करेगा। लेकिन सीता अपहरण के समय वह निर्बल होता हुआ भी महाबली रावण से लड़ा। रावण ने उखे जख्मी कर दिया। लेकिन जटायु ने अपने प्राण पकड़ रखे ताकि श्रीराम आएंगे तो यह संदेश दे सकें कि सीता का अपहरण रावण ने किया गया। बाद में श्रीराम द्वारा उसका अंतिम संस्कार किया गया। वह भगवत धाम को प्राप्त हुआ। वहीं एक संस्कार लंका के मारीच का है। वह जानता था कि रावण उससे पाप करा रहा है। फिर भी उसने सोचा कि पापी रावण से म़ृत्यु पाने से अच्छा है श्रीराम के हाथों सतगति को प्राप्त करना। दोनों ही चरित्र अपने संस्कारों को दर्शाती है। मरीच कि चेतना स्वार्थ को वहीं जटायु की चेतना परमार्थ को दर्शाती है। वास्तव में अयोध्या की संस्कृति जहां प्रेम, करुणा, भाव, सत्य और त्याग है। वहीं लंका की संस्कृति हमें काम, क्रोध, लोभ और हिंसा के रास्ते पर ले जाती है।

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