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ओबी से बालू बनाने में झारखंड की कोयला कंपनियां फिसड्डी

ओवरबर्डेन (ओबी) से बालू बनाने में झारखंड स्थिति बीसीसीएल-सीसीएल जैसी कोयला कंपनियां फिसड्डी हैं। इस दिशा में कोई पहल नहीं की गई...

ओबी से बालू बनाने में झारखंड की कोयला कंपनियां फिसड्डी
हिन्दुस्तान टीम,धनबादWed, 03 Mar 2021 04:21 AM
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धनबाद विशेष संवाददाता

ओवरबर्डेन (ओबी) से बालू बनाने में झारखंड स्थिति बीसीसीएल-सीसीएल जैसी कोयला कंपनियां फिसड्डी हैं। इस दिशा में कोई पहल नहीं की गई है। सस्टेनबल माइनिंग पर जारी रिपोर्ट के अनुसार एससीसीएल में तीन एवं डब्ल्यूसीएल में ओबी से बालू बनाने के चार प्लांट स्थापित किए गए हैं। कोयला खनन शुरू करनेवाला देश का पहला राज्य झारखंड है। ओवरबर्डेन के सबसे ज्यादा पहाड़ खासकर झरिया कोयलांचल में स्थित हैं। ओबी से बालू बनाने की पहल होती तो पहाड़ बन चुकी काफी जमीन को समतल किया जा सकता था। साथ ही भूमिगत खदानों में बालू भराई का बेहतर विकल्प भी होता।

सिर्फ बालू भराई ही नहीं खदानों के पानी के उपयोग में भी झारखंड की कोयला कंपनियों की स्थिति अच्छी नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार कोयला कंपनियों ने 2020-21 में तीन हजार लाख केएल (किलो लीटर) पिटवाटर का ट्रीटमेंट किया। बीसीसीएल में ज्यादातर बिना ट्रीटमेंट किए पानी का उपयोग किया गया। वजह बीसीसीएल के ज्यादातर फिल्टर प्लांट खराब हैं। खदानों के पानी को पीने के लिए फिलहाल कंपनी उपयोग नहीं कर पा रही है। गैर पेयजल के रूप में पिटवाटर का उपयोग हो रहा है। निगम के साथ खदानों के पानी के उपयोग को लेकर राज्य सरकार के साथ हुआ एमओयू पर भी क्रियान्वयन नहीं हुआ। रिपोर्ट में कोल सेक्टर की सस्टेनबेल माइनिंग एवं डेवलपमेंट (सतत खनन एवं विकास) की उपलब्धियों का भी जिक्र किया गया है। साथ ही कहा गया कि न्यू इंडिया के माइनिंग विजन के हर कोयला कंपनियों में सस्टेनबल सेल सक्रिय है, जो मामलों की मॉनिटरिंग करती है।

ओबी से बालू बनता तो पुनर्वास में आसानी होती

जानकार बताते हैं कि बीसीसीएल में ओबी से बालू बनाया जाता तो आग प्रभावित क्षेत्र के लोगों के पुनर्वास में जमीन की समस्या खत्म होती। आमतौर पर ओबी वहीं रखा जाता है, जहां या तो खनन हो चुका है या कोयला नहीं है। ऐसी जमीन को पुनर्वास के उपयोग में लाया जा सकता है। इतने बड़े क्षेत्र में ओवरबर्डेन है कि आग प्रभावित का आसानी से पुनर्वास हो सकता था।

रिपोर्ट में कोल सेक्टर की उपलब्धियां

- 1481 मेगावाट क्षमता के पारंपरिक ऊर्जा स्रोत स्थापित, अगले पांच साल 4254 मेगावाट क्षमता का सौर ऊर्जा प्लांट की स्थापना होगी

- सीड बॉल के रूप में 11 लाख प्लांटेशन (पौधरोपण) दस राज्यों के विभिन्न कोयला क्षेत्रों में 600 एकड़ जमीन में किया गया

- 12 इको पार्क की स्थापना, जिसमें 33 करोड़ से अधिक की रकम खर्च, 10 करोड़ पौधरोपण, अगले दस साल में आठ करोड़ पौधरोपण का लक्ष्य

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