बुद्धिमान व्यक्ति कभी भी इंद्रिय सुख की अभिलाषा नहीं करता : नारू गोपाल
इंद्रियां और मन सदा ही जड़ पदार्थ में सुख खोजते रहते हैं किंतु उस सुख की प्राप्ति होने पर भी वे संतुष्ट नहीं होते। प्रत्येक जीव को इस बात का जन्मों...
धनबाद, वरीय संवाददाता
इंद्रियां और मन सदा ही जड़ पदार्थ में सुख खोजते रहते हैं किंतु उस सुख की प्राप्ति होने पर भी वे संतुष्ट नहीं होते। प्रत्येक जीव को इस बात का जन्मों जन्म का अनुभव है। अतः एक बुद्धिमान व्यक्ति को कभी भी इंद्रिय सुख की अभिलाषा नहीं करनी चाहिए। स्वर्ग की अभिलाष भी इंद्रिय सुख की अभिलाषा ही है, जहां पहुंचने के उपरांत भी जीवात्मा को संतुष्टि नहीं मिलती। उक्त बातें मायापुर से पधारे कथावाचक नारू गोपाल दास ने कहीं। वह रविवार को इस्कॉन के जगजीवन नगर स्थित मेडिटेशन सेंटर में आयोजित सत्संग में प्रवचन कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि कलियुग में इस जीवन को सार्थक करने का एक मात्र उपाय हरिनाम का जप और कीर्तन ही है। यही संदेश देने के लिए श्रीकृष्ण, श्री चैतन्य महाप्रभु के रूप में आज से 500 वर्ष पूर्व अवतरित हुए तथा श्रील प्रभुपाद ने आज से 50 वर्ष पूर्व अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ की स्थापना की, जिसका लाभ आज हम और समग्र पृथ्वीवासी उठा रहे हैं।
प्रभु को पा लेने का मास है सावन
नारू गोपाल प्रभु ने पवित्र सावन मास की महिमा पर भी प्रकाश डाला। कहा कि सावन दिव्य चातुर्मास का सबसे प्रथम महीना है। शास्त्रों और कवियों द्वारा बताया गया है कि सावन मास भक्ति के पांच अंग स्वाध्याय, साधना, श्रवण, सेवा तथा सदाचार में अपना निवेश अधिक करने के लिए बहुत सुंदर अवसर है। इस मास में दान, जप और अध्ययन की महिमा अन्य महीनों की तुलना में कई गुना बढ़ जाती है।
हरिनाम संकीर्तन से माहौल हुआ भक्तिमय
मायापुर से आए विशेष कीर्तनिया हरिकांत प्रभु और मृदंग में कौशल श्याम मोहन प्रभु ने अत्यंत मधुर और सुंदर कीर्तन से उत्सव का आरंभ किया। सैकड़ों भक्तों ने आनंद से कीर्तन दोहराया तथा वातावरण में भगवन को आमंत्रित किया। कथा के उपरांत श्री भगवान की महाआरती हुई। श्रद्धालुओं के बीच महाप्रसाद का वितरण किया गया।
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